Lok Sabha Election 2019: बिहार में महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। इसका औपचारिक ऐलान शुक्रवार (22 मार्च) को पटना में सभी घटक दलों के नेताओं की मौजूदगी में कर दिया गया। समझौते के मुताबिक लालू यादव की पार्टी राजद सबसे ज्यादा 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि कांग्रेस- नौ, रालोसपा- पांच, हम- तीन और वीआईपी भी तीन सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करेगी। राजद ने अपने कोटे से सीपीआई माले को एक सीट का ऑफर दिया है।

बता दें कि कांग्रेस ने साल 2014 में राजद के साथ गठबंधन करते हुए पिछले लोकसभा चुनाव में 12 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और इस बार कांग्रेस के नेता 11 सीटों पर दावा कर रहे थे। इसी वजह से गठबंधन में सीट शेयरिंग नहीं हो पा रही थी लेकिन सूत्र बताते हैं कि राजद अध्यक्ष लालू यादव के स्ट्रॉन्ग स्टैंड की वजह से कांग्रेस को तीन कम सीट यानी 9 पर सहमति देनी पड़ी।

दरअसल, जातीय गोलबंदी के माहिर खिलाड़ी लालू ने कांग्रेस को साफ संकेत दिया कि जबतक राज्य में बड़े पैमाने पर जातीय और सामाजिक ध्रुवीकरण नहीं होगा, तब तक भाजपा को हरा पाना मुश्किल है। राजद को ‘माय’ (MY) समीकरण की पार्टी कहा जाता रहा है। लालू ने इसी समीकरण के बल पर राज्य में 15 साल तक शासन किया। मौजूदा सियासी परिस्थितियों में कहा जा रहा है कि फिर से इस सामाजिक समीकरण का झुकाव राजद की तरफ है। यानी आंकड़ों के लिहाज से देखें तो करीब 30 फीसदी (16 फीसदी मुस्लिम और 14 फीसदी यादव) वोटरों का झुकाव राजद की तरफ है।

लालू यादव ने इस समीकरण को और पक्का करने के लिए दलित, पिछड़े और अति पिछड़ों को साथ लेकर नई सोशल इंजीनियरिंग करने की कोशिश की है, जो 1990 के दशक में की थी। इस लिहाज से राजद ने दलित (पासवान को छोड़कर, खासकर मुसहरों पर नजर जिसकी आबादी करीब 6 फीसदी का अनुमान है) वोट बैंक को साथ करने के लिए जीतन राम मांझी को नाराज करना नहीं चाहा और उन्हें तीन लोकसभा सीटें थमा दीं। इसी तरह गठबंधन का स्वरूप बड़ा हो और ओबीसी की एक बड़ी जाति (कोइरी) का भी समर्थन गठबंधन को मिले, इसलिए उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा को पांच सीटें दी गई हैं। माना जा रहा है कि इससे महागठबंधन के वोट बैंक में 5-6 फीसदी वोट का इजाफा हो सकता है।

अति पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाली मल्लाह-निषाद की आबादी भी राज्य में करीब 7-8 फीसदी के आसपास है। इसका संकेंद्रण गंगा के तटीय जिलों में है। लिहाजा, वहां की करीब आधा दर्जन लोकसभा सीटों पर ये जाति हार-जीत तय करती है। इस समीकरण को साधने के लिए राजद ने सन ऑफ मल्लाह कहे जाने वाले मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी को न केवल महागठबंधन में मिलाया बल्कि उसे तीन सीटें दी हैं।

कहा जा रहा है कि दरभंगा, मुजफ्फरपुर के अलावा एक और सीट वीआईपी को मिलेगी। इनके अलावा भूमिहीनों, खेतिहर मजदूरों, दलितों, अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आवाज बुलंद करने वाली सीपीआई माले को भी लालू ने साधने की कोशिश की है ताकि उस वर्ग का भी वोट महागठबंधन को मिल सके। माले को राजद अपने कोटे से एक सीट देने को तैयार है।

चूंकि मौजूदा समय में कांग्रेस पार्टी के पास राज्य में किसी खास जाति या समुदाय का वोट बैंक नहीं रहा, इसलिए उसे लालू की शर्तों के आगे झुकना पड़ा है। हालांकि, हाल के दिनों में भाजपा से नाराज लोगों का झुकाव कांग्रेस की तरफ तो हुआ है लेकिन वैसे नेता जिस समाज से आते हैं, उनका झुकाव अभी भी भाजपा की तरफ ही है।

संभवत: इसको ध्यान में रखते हुए ही कांग्रेस की सीटें कम की गई हैं क्योंकि पूरा का पूरा जोर महगठबंधन का कुनबा बढ़ाने और बड़े वोट बैंक पर कब्जा जमाने पर टिका हुआ है। इस कवायद से महागठबंधन के नेता दावा कर रहे हैं कि उनके पास करीब 50 फीसदी से ज्यादा वोट प्रतिशत है, जिसके बल पर वो एनडीए को लोकसभा चुनाव में हरा सकते हैं।