Lok Sabha Election 2019: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जाति को लेकर पिछले कुछ दिनों से सियासी घमासान जारी है। इस बीच केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली भी इसमें कूद पड़े हैं। सोमवार को जेटली ने दावा किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने कभी भी जाति की राजनीति नहीं की। उन्होंने वोट पाने के लिए जाति को नहीं घुसाया बल्कि वो हमेशा विकास के नाम पर लोगों से वोट मांगते रहे और विकास के एजेंडे पर ही राजनीति करते रहे लेकिन जेटली का यह दावा सच नहीं है। 2014 के चुनावों (जब नरेंद्र मोदी पीएम पद के उम्मीदवार थे) से लेकर आज तक नरेंद्र मोदी जाति कार्ड को भुनाते रहे हैं। यहां तक कि मौजूदा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान पीएम मोदी ने पिछले पंद्रह दिनों के अंदर ही चार बार जाति का जिक्र रैलियों में किया है। गौर करने वाली बात है कि मोदी अधिकांश हिन्दीभाषी राज्यों खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश और गुजरात की चुनावी सभाओं में ही जाति का जिक्र करते रहे हैं, जहां जातीय आधार पर चुनावी समीकरण बनते-बिगड़ते रहे हैं और इसी आधार पर वोटिंग पैटर्न रहा है।

27 अप्रैल, 2019: पीएम मोदी ने कन्नौज की चुनावी रैली में कहा, “मायावतीजी मैं सबसे पिछड़ा हूं… मैं हाथ जोड़कर विनती करता हूं कि मुझे जाति की राजनीति में न घसीटें; 130 करोड़ लोग मेरे परिवार हैं।” पीएम ने कहा, “इस देश ने मेरी जाति को तब तक नहीं जाना था, जब तक कि मेरे विरोधियों ने मेरे साथ दुर्व्यवहार नहीं किया… मैं मायावतीजी, अखिलेशजी, कांग्रेस के लोगों और महामिलावटियों का शुक्रगुजार हूं कि वे मेरी जाति पर चर्चा कर रहे हैं… मेरा मानना है कि मैंने एक पिछड़ी जाति में जन्म लेकर देश की सेवा करने का अवसर पाया है।” पीएम का यह बयान मायावती के उस बयान के एक दिन बाद आया, जिसमें मायावती ने आरोप लगाया था कि राजनीतिक फायदा लेने के लिए मोदी जी ने गुजरात में अपनी जाति को ओबीसी में शामिल करवा लिया था।

25 अप्रैल, 2019: सपा-बसपा गठबंधन पर निशाना साधते हुए पीएम मोदी ने कहा कि ये लोग उनकी जाति पर राजनीति खेल रहे हैं। लगे हाथ उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि नामदार (नेहरू-गांधी के वंशज) उनकी जाति के पूरे समुदाय के प्रति नफरत की वजह से उन्हें चोर कह रहे हैं।

20 अप्रैल, 2019: नरेंद्र मोदी ने यूपी के बरेली में रैली को संबोधित करते हुए कहा कि विपक्षी महागठबंधन और महामिलावटी लोग दो चरणों में हुए चुनाव के बाद हताश और निराश हो गए हैं और वो इतने नीचे उतर आए हैं कि चुनावों में वे लोग उनकी जाति को घसीट रहे हैं।

17 अप्रैल, 2019: इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा में कहा कि सभी भगोड़े मोदी सरनेम वाले हैं। इस पर पलटवार करते हुए पीएम मोदी ने खुद को पिछड़ी जाति का बताते हुए कहा कि गांधी-नहेरू परिवार के लोग उनके समुदाय को गाली दे रहे हैं। पीएम ने कांग्रेस पर दलित विरोधी होने का भी आरोप लगाया।

साल 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान भी नरेंद्र मोदी ने जाति कार्ड खेला था। 20 जनवरी, 2014 को सबसे पहले नरेंद्र मोदी ने खुद को नीची जाति का बताया था। इससे पहले कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि मोदी कभी पीएम नहीं बन सकते हैं। वो कांग्रेस दफ्तर के बाहर चाय बेचना चाहें तो स्वागत है। इस पर पलटवार करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा था, “कांग्रेस यह नहीं चाहती है कि नीची जाति का एक चायवाला जिसकी मां घरों में झाड़ू-पोछा करती थी, वह प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव लड़े।” उसी साल 6 मई को यूपी के डुमरियागंज में प्रियंका गांधी द्वारा भाजपा की ‘नीच राजनीति’ के बयान को नरेंद्र मोदी ने जातीय रंग दिया और कहा, “मैं इससे इनकार नहीं कर सकता कि मैं एक नीच जाति में पैदा हुआ हूं लेकिन क्या यह गुनाह है?”

2015 के बिहार विधान सभा चुनावों के दौरान भी पीएम नरेंद्र मोदी ने जाति कार्ड खेला था। 25 अक्टूबर, 2015 को नालंदा की रैली में उन्होंने अपने बारे में कहा था, “चाय बेचने वाले का बेटा हूं जो अत्यंत पिछड़ी जाति में पैदा हुआ है।” इसके अगले दिन बक्सर में कहा था, “अत्यंत पिछड़ी जाति में जन्म लेने वालों की पीड़ा मैं समझ सकता हूं।”

2017 के गुजरात विधान सभा चुनावों में भी पीएम मोदी ने तब जाति कार्ड और गुजराती अस्मिता कार्ड भुनाया था, जब राज्य में भाजपा के खिलाफ एंटी इन्कमबेंसी लहर हावी थी। उस वक्त भी कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर के एक बयान पर बवाल खड़ा हुआ था। अय्यर ने तब पीएम को ‘नीच किस्म का आदमी’ कहा था, जिसे पीएम ने चुनावों में भुनाया था और कहा था, “वे लोग चाहे मुझे जो कह लें, गदहा,नीच, गंदी नाली के कीड़े। गुजरात की जनता उन्हें ऐसी गंदी भाषा का करारा जवाब देगी। वे मुझे नीच कहते हैं- हां मैं गरीब समाज से हूं और अपनी जिंदगी का हर पल गरीबों, दलितों, आदिवासियों और ओबीसी के लिए काम करने में लगा दूंगा।”