Lok Sabha Election 2019: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष के सुदूर केरल की इस संसदीय सीट से चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद से ही यह इलाका चर्चाओं के केंद्र में है। एक आकलन के मुताबिक, इस संसदीय सीट पर दलित और किसानों की कुल आबादी में भागेदारी करीब 20 पर्सेंट है। हालांकि, स्थानीय सामाजिक संगठनों की राय है कि समाज के इस तबके को सरकारी योजनाओं का कोई खास लाभ नहीं मिला। ऐसे में पार्टियां किसानों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश में नजर आ रही हैं। इसी क्रम में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी हाल ही में यहां किसानों की विधवाओं से मुलाकात की। ये वे महिलाएं थीं, जिनके पतियों ने आर्थिक विषमताओं से तंग आकर अपनी जान दे दी थी। केरल कांग्रेस के सचिव केके अब्राहम के मुताबिक, आर्थिक दुश्वारियों की वजह से बीते 5 महीने में केरल के 25 किसानों ने जान दे दी है। इनमें से 8 वायनाड से थे।
मुसीबत का सामना कर रहे राज्य के किसानों में से एक धानिल दिवाकरन बचपन से ही संघ परिवार से जुड़े हुए हैं। द टेलिग्राफ में प्रकाशित खबर के मुताबिक, एमबीए की डिग्री धारक यह किसान फिलहाल यह तय कर रहा है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को वोट दे या फिर सीपीआई के पीपी सुनीर को। हालांकि, दिवाकरन यह तय कर चुके हैं कि वह पांच साल पुरानी गलती को नहीं दोहराएंगे। मतलब वह बीजेपी को दोबारा से वोट नहीं देंगे। 2014 में उन्होंने पीएम मोदी के नाम पर अपने संसदीय क्षेत्र में एनडीए प्रत्याशी को वोट दिया था। बता दें कि यहां किसानों के हालात बदतर हो चले हैं। बैंकों के बढ़ते लोन के बोझ और फसलों की सही कीमत न मिलने की वजह से किसानों का आत्महत्या करना जारी है।
वहीं, पलपल्ली के रहने वाले 36 वर्षीय चथामंगलम कुन्नू ने बताया, ‘मेरे पिता एक मेहनती किसान थे। वह बीजेपी की विचारधारा को मानते थे। उन्होंने पिछले साल 20 दिसंबर को आत्महत्या कर लिया।’ कुन्नू के मुताबिक, लोन न चुका पाने के बाद
बैंक की ओर से लोन रिकवर की प्रक्रिया शुरू करने के बाद उनके पिता ने यह कदम उठा लिया। अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, कन्नू ने कहा, ‘मैं कर्ज में गले तक डूबा हूं और उनके भुगतान का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा। मोदी ने कभी भी मुश्किलों से जूझ रहे किसानों का समर्थन नहीं किया। कॉरपोरेट घरानों को खुश करने के लिए केंद्र ने किसान विरोधी आयात नीतियों को जारी रखा है। किसान कभी भी मोदी की प्राथमिकता में शामिल नही रहे।’ कुन्नू की मानें तो इलाके के एनडीए प्रत्याशी एक राजनेता नहीं, बल्कि अमीर शख्स हैं, जिन्हें वायनाड की किसानी से जुड़ी समस्याओं का कोई अंदाजा नहीं है।
किसानों के एक स्वतंत्र संगठन के अध्यक्ष जॉन पीटी ने कुछ वक्त पहले डाउन टु अर्थ से बातचीत में बताया था कि सरकार की किसानों को लेकर अप्रासंगिक कार्यक्रमों की वजह से दुश्वारियां कम नहीं हो रहीं। उनके मुताबिक, अगस्त 2018 में बाढ़ आने के बाद किसानी को जो नुकसान हुआ, उसके बाद से ही किसानों का आत्महत्या करना जारी है। उनके मुताबिक, खेती की दुश्वारियों के मद्देनजर अक्टूबर 2019 तक ऋण स्थगन लागू है, लेकिन बैंक सरकार के आदेश का पालन नहीं कर रहे और रिकवरी के लिए किसानों को लगातार नोटिस भेजकर उनका उत्पीड़न कर रहे हैं। ऐसे में किसानों को आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। जॉन के मुताबिक, बाढ़ की वजह से वायनाड में सैकड़ों एकड़ जमीन बुरी तरह प्रभावित हुई।