आज से करीब तीन साल पहले की बात है। बिहार विधानसभा चुनाव की आपाधापी थी। नीतीश कुमार राजद और कांग्रेस के साथ मिल कर विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे। जहानाबाद में वह एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे, तभी कुछ महिलाएं उनसे मिलने पहुंच गईं। उन्होंने नीतीश कुमार से गुजारिश की कि वह पूरे बिहार में शराबबंदी लागू कर दें। नीतीश कुमार ने उन्हें आश्वस्त किया कि अगर उनकी सरकार आई, तो बिना शक शराबबंदी कानून लाया जाएगा।
बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू-राजद-कांग्रेस के महागठबंधन की जीत हुई और नीतीश कुमार सीएम बन गए। सीएम बनते ही उन्होंने घोषणा की कि वर्ष 2016 में अप्रैल से बिहार में शराबबंदी कानून लागू किया जाएगा और ऐसा ही किया। वैसे इतिहास के पन्ने खंगाले जाए, तो शराबबंदी कानून लानेवाले नीतीश कुमार पहले राजनेता नहीं है। उनसे पहले वर्ष 1977-78 में तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने भी शराबबंदी कानून लागू किया था, लेकिन वह पूरी तरह विफल हो गया था। नतीजतन दो साल बाद इस कानून को रद्द कर दिया गया था।
एनडीए के लिए ‘उपलब्धि’, विपक्ष कर रहे ‘फेल’: अब जब लोकसभा चुनाव के तारीखों का एलान हो चुका है, तो बिहार की कमोबेश सभी पार्टियां शराबबंदी को मुद्दा बनाने का मन बना चुकी हैं। जदयू व भाजपा शराबबंदी को बिहार के भले के लिए युगांतकारी कदम बता कर वोट बटोलने की तैयारी में लगी हुई है। पिछले दिनों पटना में जदयू की तरफ से जो चुनावी पोस्टर चस्पा किया गया था, उसमें बिहार की एनडीए सरकार की तमाम ‘उपलब्धियों’ में शराबबंदी को भी जगह दी गई। जदयू नेताओं का कहना है कि शराबबंदी को वे सरकार की बड़ी कामयाबी के तौर पर जनता के सामने पेश करेंगे। जदयू नेता नीरज कुमार कहते हैं, यह (शराबबंदी) निश्चित तौर पर एक ऐतिहासिक कदम है और जदयू जनता के बीच जाकर इस उपलब्धि को भुनाएगी। उन्होंने आगे कहा, शराबबंदी ने न केवल महिलाओं को सशक्त बनाया है बल्कि इससे सामाजिक स्तर पर भी बिहार में बड़ा बदलाव आया है। नीरज कुमार ने यह भी दावा किया कि जो भी पार्टी शराबबंदी कानून की आलोचना करेगी, जनता उसे नकार देगी। वहीं, विपक्षी पार्टियों का कहना है कि शराबबंदी पूरी तरह विफल है। रालोसपा सांसद अरुण कुमार ने कहा कि शराबबंदी पूरी तरह विफल है और एनडीए को इसका नुकसान झेलना पड़ेगा।
शराबबंदी का फायदा भी नुकसान भीः शराबबंदी लागू तो हो गई, लेकिन यह कितनी विफल रही, इस पर अब भी बहस होती है। नीतीश कुमार अपनी हर सभा में शराबबंदी के फायदे गिनाते हैं और पूरे देश में यह कानून लागू करने की मांग करते हैं। वहीं, विपक्षी पार्टियों का कहना है कि शराबबंदी से फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ है।
इन दावों और आरोपों के बीच इस तथ्य को शायद ही कोई झुठला सकता है कि बिहार में शराब का अवैध कारोबार अब भी फूल-फल रहा है और अब तक जिन डेढ़ लाख लोगों के खिलाफ इस कानून के तहत एफआईआर दर्ज की गई, उनमें गरीब तबके की तादाद सबसे अधिक है। इन्हें कानूनी लड़ाई लड़ने में हजारों रुपए खर्च करने पड़े। वर्ष 2017 में शराबबंदी कानून में पहली सजा दो भाइयों पेंटर मांझी और मस्तान को मिली थी। हमने जब उनसे बात की, तो उनका कहना था कि कानूनी लड़ाई लड़ने में एक लाख से ज्यादा रूपए खर्च हो गये और इसके लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ा था दोनों भूमिहीन हैं और ठेला चला कर गुजारा करते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बिहार की विभिन्न जेलों में शराबबंदी कानून के तहत गिरफ्तार लोगों की जातियों का आंकड़े पेश करते हुए बताया था कि इनमें पिछड़ी जातियों की संख्या सबसे ज्यादा थी।
इधर, कानून लागू करने हो रहे नुकसान का फीडबैक मिलने पर नीतीश कुमार ने पिछले साल शराबबंदी कानून के कड़े प्रावधानों में संशोधन और कुछ धाराओं को पूरी तरह खत्म कर गरीब तबके को राहत देने की कोशिश की थी।
शराब का अवैध कारोबार किस स्तर पर हो रहा है इसका अंदाजा जब्त शराब के परिमाण से पता चलता है। एक्साइज प्राहिबिशन डिपार्टमेंट से मिले आंकड़े बताते हैं कि पिछले ढाई वर्षों में 16 लाख लीटर विदेशी और नौ लाख लीटर देशी शराब जब्त की जा चुकी है। हां, ये बात भी सही है कि कुछ लोगों को इससे फायदा भी हुआ है।
शराबबंदी के बाद हुए उपचुनावों के संकेतः वर्ष 2016 के अप्रैल महीने में शराबबंदी कानून लागू करने के बाद बिहार में तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर उप-चुनाव हुए। इन चुनावों में राजद को जीत मिली थी। जहानाबाद, भभुआ विधानसभा और अररिया लोकसभा सीट के लिए हुए चुनाव में भभुआ सीट पर भाजपा ने जीत बरकरार रखी थी, लेकिन जहानाबाद और अररिया सीटें राजद की झोली में गई थी। वहीं, जोकीहाट विधानसभा सीट के लिए हुए चुनाव में भी राजद ने ही जीत दर्ज की थी। यह जदयू की विनिंग सीट थी। इन उपचुनावों के परिणामों से पता चलता है कि शराबबंदी कानून से नीतीश कुमार को बहुत फायदा नहीं मिला।
शराबबंदी ‘निर्णायक’ मुद्दा नहींः सरकार और विपक्षी पार्टियों के दावों और आरोपों के बीच क्या है शराबबंदी हकीकत, यह जानने की रिपोर्टर ने कई लोगों से बात की। जिन लोगों ने शराबबंदी के कारण शराब छोड़ दी, उनका कहना है कि सरकार ने बढ़िया काम किया, लेकिन जिन लोगों को नुकसान उठाना पड़ा, वे सरकार को कोसते नजर आए। नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक अधेड़ ने बताया कि सरकार ने शराबबंदी तो कर दी, लेकिन शराब अब भी मिल रही है, लेकिन पहले से महंगी हो गई है। इससे हमारा खर्च बढ़ गया है। शराब की लत ऐसी है कि एक दिन न पीऊं तो लगता है कि बीमार पड़ गया हूं।
वहीं, एक महिला ने शराबबंदी का तारीफ करते हुए कहा, ‘मेरे ससुर शराब तो अब भी पी रहे हैं, लेकिन पहले सारी कमाई शराब में उड़ा देते थे, पर अब 50 से 100 रुपए खर्च कर रहे हैं।’
समाजविज्ञानी डीएम दिवाकर का कहना है कि शराबबंदी का असर पूरी तरह एकतरफा या निर्णायक नहीं होगा। उन्होंने कहा, ‘जिन लोगों को शराबबंदी से फायदा हुआ है, वे एनडीए का समर्थन करेंगे और जिन्हें नुकसान हुआ है, वे उनके खिलाफ जाएंगे। मगर, शराबबंदी के अलावा दूसरे मुद्दों की भी चुनाव में बड़ी भूमिका होगा।’ उन्होंने कहा कि शराबबंदी को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए सबसे पहले बिहार से संलग्न राज्यों की सीमा सील कर देनी चाहिए क्योंकि इन्हीं राज्यों से होकर शराब अवैध तरीके से बिहार में पहुंच रही है। इसके अलावा सरकार को अहम काम ये करना चाहिए कि वो लोगों को शराब के नुकसान को लेकर जागरूक करे।
(पटना से उमेश राय की रिपोर्ट)

