Lok Sabha Election 2019: बिहार की राजनीति में एक कहावत प्रचलित है, ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का।’ 1967 से 2014 तक मधेपुरा संसदीय सीट पर कुल पंद्रह बार (1968, 2004 का उप चुनाव जोड़कर) लोकसभा के चुनाव हुए और सभी बार एक ही जाति (यादव) के उम्मीदवार की जीत हुई है। इनमें से सबसे ज्यादा, चार बार यहां से सांसद बनने का रिकॉर्ड पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के नाम है। शरद यादव 1991 और 1996 में जनता दल और उसके बाद 1999 और 2009 में जदयू के टिकट पर यहां से सांसद चुने गए हैं। पिछली बार 2014 में उन्हें राजद के पप्पू यादव ने हराया था लेकिन इस बार राजनीतिक समीकरण और हालात बदले हुए हैं। शरद यादव जदयू छोड़ चुके हैं और वो महागठबंधन की तरफ से राजद के लालटेन छाप पर चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि पप्पू यादव इस बार अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी के सिंबल पर चुनावी मैदान में हैं। उधर, एनडीए की तरफ से जदयू के दिनेश चंद्र यादव मैदान में हैं।
जदयू उम्मीदवार दिनेश चंद्र यादव राज्य की नीतीश कुमार सरकार में आपदा प्रबंधन मंत्री हैं, जो 1990 के दशक में लालू यादव के खासम-खास हुआ करते थे। बाद में वो जनता दल यूनाइटेड में शरद यादव के काफी करीबी रहे। दिनेश चंद्र यादव जमीनी नेता रहे हैं। युवावस्था में आनंद मोहन को कड़ी टक्कर दे चुके हैं। सहरसा के रहने वाले दिनेश चंद्र यादव पहले भी तीन बार सांसद रह चुके हैं। सहरसा समेत कोशी इलाके में उनकी अलग पहचान है। कहा जाता है कि दिनेश चंद्र यादव ने अपने घर का डिजायन संसद भवन की तरह बना रखा है। यादव के साथ-साथ अन्य जातियों पर भी उनकी अच्छी पकड़ है। इसीलिए जब 2017 में नीतीश कुमार ने महागठबंधन से नाता तोड़ा, तब कोशी इलाके में अपनी पैठ बचाए रखने के लिए एनडीए की नई सरकार में दिनेश चंद्र यादव को दोबारा मंत्री बनाया। ताकि शरद यादव की काट के रूप में उन्हें इस्तेमाल किया जा सके। वो 1996, 1999 और 2009 में सहरसा से सांसद रह चुके हैं।
यानी मधेपुरा में मुकाबला त्रिकोणीय है। वैसे यहां कुल तेरह उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। 23 अप्रैल को यहां वोटिंग है। यह संसदीय सीट राजद के माई समीकरण का गढ़ रहा है। यहां 13 फीसदी मुस्लिम और 22 फीसदी यादव मतदाता हैं, जिसकी संख्या करीब पांच लाख से ऊपर है। अगड़ी जाति के मतदाताओं की भी अच्छी आबादी है। एक अनुमान के मुताबिक करीब ढाई लाख सवर्ण मतदाता हैं, जबकि दो लाख के करीब दलित मतदाता हैं। कुर्मी, कोइरी, धानुक मतदाताओं की आबादी भी करीब डेढ़ लाख से ज्यादा है। इनके अलावा वैश्य और बनिया समुदाय के मतदाताओं की आबादी भी करीब साढ़े तीन लाख है।
इस सीट पर यादव और गैर यादव मतों के बीच ध्रुवीकरण की राजनीति हमेशा से होती रही है। जहां यादव और मुस्लिम वोट राजद का आधार माना जाता रहा है, वहीं जदयू गैर यादव मतों को अपने पाले में करता रहा है। इसी वजह से 1996 के बाद (जनता दल के विभाजन) से दो बार 1999 और 2009 में जदयू की जीत हुई है। जदयू फिर से सवर्ण मतदाताओं और पिछड़ी जाति के मतदाताओं को लामबंद कर सीट जीतने की कोशिश में लगी है तो पप्पू यादव पुराने समीकरण को ध्वस्त करने में लगे हैं।
2019 के चुनावों से पहले बन रहे महागठबंधन में शरद यादव ने पप्पू यादव को भी साथ लाकर मधेपुरा सीट पर अपनी जीत पक्की करनी चाही थी लेकिन राजद नेता तेजस्वी यादव ने पप्पू यादव को राजद में फिर शामिल करने से मना कर दिया। नतीजतन, पप्पू यादव फिर से मधेपुरा से शरद यादव के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं। बता दें कि पप्पू यादव दो बार शरद यादव को हरा चुके हैं। हालांकि, आठवीं बार लोकसभा में पहुंचने के लिए शरद यादव शर्तों पर राजद के सिंबल पर चुनाव लड़ रहे हैं। सियासी जानकार कहते हैं कि जीत के बाद उन्हें अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल का राजद में विलय करना होगा। राजद के साथ उनकी यह चुनाव पूर्व शर्त है।

