Lok Sabha Election 2019: देश की सियासत में कई दशकों से राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद अहम है। लेकिन बार चुनाव में यह मसला तुलनात्मक रूप से कम चर्चा में है। अयोध्या के बाजार में विवादित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल के पास भगवा कपड़े पहने और माथे पर टीका लगाए बैठे कैलाश सिंह दास धार्मिक किताबों पर जमी धूल साफ करने में व्यस्त हैं। उनकी दुकान पर भगवद गीता जैसी किताबें रखी हैं। सड़क के उस पार अतीक अहमद भी अपनी इत्र-परफ्यूम की दुकान में ग्राहकों का इंतजार कर रहे हैं। वो उम्मीद कर रहे हैं कि ढलते सूरज के साथ तापमान घटेगा और ग्राहक बढ़ेंगे। दास की उम्र करीब 70 साल है, जबकि अहमद करीब 20 साल के हैं। जब जिक्र 27 साल पुराने विवाद का होता है तो वे दोनों अलग-अलग पक्ष में खड़े होते हैं। लेकिन दोनों यह बात मानते हैं कि इस बार के चुनाव में राम मंदिर पर उतना ध्यान नहीं है। यहां के मतदाता कहते हैं कि मंदिर सिर्फ एक आस्था का विषय है, वो विकास, रोजगार, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं चाहते हैं।

कुछ लोग कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस क्षेत्र में सिर्फ एक रैली की है वो भी विवादित जमीन से 25 किमी दूर, वो विवादित जमीन तक गए ही नहीं। फैजाबाद के अंतर्गत आने वाले अयोध्या में सोमवार (6 मई) को मतदान हो रहा है। यहां लड़ाई मोटेतौर पर मोदी के नाम और सपा-बसपा गठबंधन के बीच है। बीजेपी ने यहां एक बार फिर मौजूदा सांसद लल्लू सिंह को उतारा है, वहीं गठबंधन की तरफ से पूर्व विधायक आनंद सेन यादव को मौका दिया है। उनके पिता मित्रसेन यादव यहां से तीन बार सांसद रहे हैं।

 

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आनंद सेन की आपराधिक पृष्ठभूमि को मद्देनजर रखते हुए अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ मतदाता साफ छवि वाले कांग्रेस प्रत्याशी निर्मल खत्री के साथ दिख रहे हैं। आनंद सेन की तरह ही बाकि दोनों नाम भी चित-परिचित हैं। खत्री 2009 में फैजाबाद से सांसद चुने गए थे, इसके बाद वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। वहीं मौजूदा सांसद लल्लू सिंह अयोध्या से कई बार विधायक रह चुके हैं।

ज्यादातर लोग मानते हैं कि बीजेपी सरकार में घाटों का विकास हुआ, अंडरग्राउंड बिजली केबल बिछाई गई, सीवर का काम हुआ। वहीं अहमद जैसे कुछ लोग मानते हैं कि अयोध्या शहर में सीमित विकास हुआ, बाकी फैजाबाद संसदीय क्षेत्र के भी हालात अच्छे नहीं हैं। हालांकि सांसद के रूप में अपनी पसंद बताने से थोड़ा झिझकते हुए वे सिर्फ इतना कह रहे हैं कि खत्री अच्छे आदमी हैं जो सबकी सुनते हैं।

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वे कहते हैं, ‘दास ने भी छोटे-छोटे काम किए हैं, लेकिन अच्छी शिक्षा और रोजगार का अभी भी इंतजार है। मंदिर कौन नहीं चाहता? राम की नगरी में कौन नहीं चाहता कि राम मिल जाएं? पर वोट विकास का है, शिक्षा का है, वोट उसका है जो हमारा काम करा सके।’

शहर से करीब 20 किमी दूर जिसे पहले फैजाबाद कहा जाता था, बीजेपी सरकार ने उसे अयोध्या नाम दे दिया। चाय और पकोड़े बेचने वाले राम दास यादव कहते हैं, ‘मंदिर के नाम पर कौन वोट देगा? वे पिछले पांच सालों से क्या कर रहे थे? हमारी भी आस्था जुड़ी है लेकिन मुझे बताइये, मोदी रामलला के स्थान पर क्यों नहीं गए? विकास प्रतिबंधित क्षेत्र को लेकर ही अटक गया। हम तो पकोड़े ही तलते रह गए।’

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अयोध्या में चाय-पकोड़े बेचने वाले रामदास यादव (एक्सप्रेस फोटो- विशाल श्रीवास्तव)

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उनकी चाय की दुकान में करीब पांच लोग बैठे थे। उनकी बातचीत सर्जिकल स्ट्राइक के आसपास घूमती रही। मजदूरी करने वाले जमील कुरैशी ने कहा, ‘भारत ने भी जवान खोए हैं। दूसरी तरफ से हमला हुआ था, जिस पर सरकार ने जवाब दिया। उन्होंने भी ठीक यही किया।’ कुरैशी के मुताबिक मुकाबला बीजेपी और गठबंधन के बीच है।

फैजाबाद में कई अलग-अलग पार्टियों का कब्जा रहा है। मित्रसेन यादव यहां 1989, 1998 और 2004 में क्रमशः सीपीआई, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर जीते। 1990 के दशक में विश्व हिंदू परिषद के विनय कटियार तीन बार सांसद बने। 2014 में लल्लू सिंह को 4.91 लाख वोट मिले जो सपा प्रत्याशी मित्रसेन के लगभग दोगुने थे, बीएसपी के जितेंद्र सिंह के लगभग 1.41 लाख वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे। वहीं खत्री को महज 1.29 लाख वोट ही मिल पाए, वे यहां चौथे नंबर पर रहे।

 

मोदी लहर की अनुपस्थिति में गठबंधन को उम्मीद है कि सपा-बसपा मिलकर लल्लू सिंह को पछाड़ देंगे। इसी बीच सरयू घाट पर संध्या आरती की तैयारियों के बीच भी चुनावी चर्चाएं चलती रहीं। दूसरे बीजेपी समर्थकों की तरह रिटायर्ड हो चुके संस्कृत शिक्षक रघुनाथ प्रसाद पांडेय ने कहा कि यह देश के प्रधानमंत्री के लिए चुनाव है। वे कहते हैं कि बीजेपी की सरकार में सेना का मनोबल बढ़ा है और सर्जिकल स्ट्राइक ने राम मंदिर के मुद्दे को पीछे छोड़ दिया है।

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