कर्नाटक चुनाव परिणाम से जहां बीजेपी की पांच साल बाद राज्य की सत्ता में वापसी हो रही है और कांग्रेस की विदाई, वहीं विपक्षी जेडीएस इस चुनाव में अपनी इज्जत बचाने में कामयाब रही है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस का प्रदर्शन साल 2013 के विधान सभा चुनावों के नतीजों के आसपास ही रहा। साल 2013 में जेडीएस को 40 सीटें मिली थीं। राज्य में एंटी इन्कमबेंसी फैक्टर और मोदी लहर की वजह से मतदाता कांग्रेस से छिटक गए और वो बीजेपी की तरफ चले गए मगर जेडीएस ने दलित-मुस्लिम कार्ड खेलते हुए अपनी जमीन बचा ली। राज्य की 17 फीसदी आबादी वाला वोक्कालिगा समुदाय पारंपरिक तौर पर जेडीएस का वोटर रहा है। इसके अलावा कुछ पिछड़ी जातियां भी जेडीएस को समर्थन देती रही हैं। इस बार जेडीएस ने दलितों और मुसलमानों पर भी नजरें गड़ा रखी थीं। इसलिए मायावती से दोस्ती कर उसे 20 सीटें दी थीं।

मैसूर इलाके में कांग्रेस का अच्छा प्रभाव माना जाता रहा है लेकिन मायावती की बीएसपी और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी से दोस्ती कर जेडीएस दलित और मुस्लिम वोटरों को कांग्रेस से छीन अपने पाले में करने में कामयाब रही है। जब पीएम मोदी ने चुनावी सभाओं में पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा की तारीफ की तो राजनीतिक जानकारों को लगा कि पीएम मोदी जेडीएस का खेल बिगाड़ रहे हैं लेकिन 84 साल के देवगौड़ा ने भी बदले में उनकी तारीफ तो की लेकिन अपनी चुनावी सभाओं में वोटरों को इस तरह बांधा कि वो खिसक न सके। देवगौड़ा उस आशंका को खारिज करने में जुट गए कि मोदी की तारीफ करने से जेडीएस के दलित और मुस्लिम वोटर कांग्रेस की तरफ जा सकते हैं।

बता दें कि कर्नाटक विधान सभा की 224 सीटों में से 222 पर शनिवार (12 मई) को चुनाव हुए थे। दो सीटों (आरआर नगर और विजयनगर) पर चुनाव टल गए हैं। वहां बाद में चुनाव होंगे। मतदाताओं ने करीब 72 फीसदी मतदान किए थे। एक-दो छोड़ तमाम एग्जिट पोल के मुताबिक त्रिशंकु विधान सभा के आसार जताए गए थे लेकिन चुनावी नतीजों और रुझान ने उसे गलत साबित कर दिया है।

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