कर्नाटक चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहा है, जमीन पर सियासत भी उतनी ही तेज होती जा रही है। हर जिला, हर सीट के अपने समीकरण हैं, अलग-अलग जातियों का बोलबाला है और पार्टियां अपने स्तर पर सोशल इंजीनियरिंग कर रही हैं। राज्य की एक ऐसी ही सीट है बेंगलुरू जहां पर इस बार माहौल एकदम अलग चल रहा है। दंगों का दर्द है, ड्रग्स और बढ़ते क्राइम की चिंता है और ध्रुवीकरण करने की जमीन पर कोशिश हो रही है।
क्या हुआ था 2020 में?
बेंगलुरू सीट के इस बार के समीकरणों को समझने के लिए तीन साल पुरानी एक घटना का समझना जरूरी हो जाता है। राज्य में साल 2020 में भयंकर हिंसा देखने को मिली थी, इसी बेंगलुरू में एक सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर ऐसा बवाल देखने को मिला कि आगजनी से लेकर उपद्रव तक, सबकुछ हो गया। असल में 11 अगस्त 2020 में पूर्व कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति के भांजे ने फेसबुक पर पैगंबर मोहम्मद के लिए विवादित टिप्पणी कर दी थी। उस एक टिप्पणी के बाद DJ Halli पुलिस स्टेशन पर हमला किया गया था और मूर्ति के घर को भी आग के हवाले कर दिया गया।
अब इस बार माहौल उस दंगे की वजह से बदल चुका है। कांग्रेस ने अपने ही विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति को टिकट नहीं दिया है, वे बसपा की तरफ से मैदान में उतरे हैं। वहीं इस बदले हुए माहौल मुस्लिमों को अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस ने एसी श्रीनिवास को मौका दिया है जो चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व रेल मंत्री सीके जाफर शरीफ की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। बीजेपी ने यहां से एक मुराली को अपना उम्मीदवार बनाया हुआ है। इस समय बेंगलुरू सीट पर मुस्लिम बहुल इलाकों में अलग माहौल देखने को मिल रहा है और जहां तमिल आबादी ज्यादा है, वो दूसरे बड़े हैं। यानी कि एक ही सीट पर अलग-अलग समीकरण बन रहे हैं।
बेंगलुरू सीट पर क्या समीकरण हैं?
उदाहरण के लिए बसपा की टिकट से चुनाव लड़ रहे मूर्ति के प्रति मुस्लिम बहुल डीजे हाली और मुनेश्वर नगर इलाकों में गुस्सा है तो वहीं पुलकेशी नगर में इस दलित नेता को अच्छा समर्थन मिल रहा है। बेंगलुरु सीट पर कुल 2.3 लाख वोटर हैं, जहां एक लाख के करीब मुस्लिम हैं तो वहीं 75 हजार तमिल। अब इन समीकरणों के बीच कांग्रेस के पूर्व विधायक मूर्ति के लिए स्थिति असमंजस की बनी हुई है, कुछ लोग मानते हैं कि अगर वे निर्दलीय भी मैदान में उतरते तो अपनी लोकप्रियता के दम पर सीट निकाल सकते हैं, वहीं कुछ मान रहे हैं कि हिंसा के बाद से उनकी सियासी जमीन कुछ कमजोर हो गई है।
प्रचंड जीत दर्ज करने वाले विधायक के क्या हाल?
इस बारे में मुस्लिम नेता मौलाना जैनूलाबदीन शावली कहते हैं कि 2018 के चुनाव में तो हमने जमीन पर मेहनत की थी, उसी वजह से मूर्ति को अल्पसंख्यक का सारा वोट मिला। लेकिन 2020 के दंगों के बाद स्थिति बदल चुकी है। मूर्ति को खुद ही अपने रिश्तेदार के खिलाफ एक्शन लेना चाहिए था। वैसे भी उस एक घटना की वजह से कई मुस्लिम परिवार तबाह हो गए क्योंकि पुलिस ने उनके रिश्तेदारों को ही गिरफ्तार कर लिया। मुझे लग रहा है कि इस बार मुस्लिम कांग्रेस के साथ जाने वाले हैं।
वैसे 2018 के विधानसभा चुनाव में तो मूर्ति को कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने का मौका भी मिला था और 77 फीसदी वोट के साथ प्रचंड जीत भी हुई थी। लेकिन इस बार वैसी स्थिति बनती नहीं दिख रही है, एक तरफ मुस्लिम वोटों में बिखराव होता दिख रहा है तो वहीं तमिल वोटरों का कुछ हिस्सा बीजेपी की झोली में जा सकता है।
कर्नाटक चुनाव कब, पिछली बार किसे कितनी सीटें?
कर्नाटक चुनाव की बात करें तो 10 मई को वोटिंग होने वाली है और 13 मई को नतीजे आएंगे। वर्तमान में राज्य में बीजेपी की सरकार है और बसवराज बोम्मई मुख्यमंत्री हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. उस समय बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसके खाते में 104 सीटें गई थीं, कांग्रेस की बात करें तो उसका आंकड़ा 80 पहुंच पाया था और जेडीएस को 37 सीटों के साथ संतुष्ट करना पड़ा था।