North East Delhi Lok Sabha Chunav: ये कन्हैया कुमार हैं, वही जेएनयू वाले…। उत्तर पूर्वी दिल्ली से इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार की इस पहचान से आम लोग भी जुड़कर उनका भाषण सुनने आ रहे हैं। वोट किसको देंगे के परे लोगों का कहना है कि जेएनयू वाला है तो बोलना आता है।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार लोकसभा चुनाव में उत्तर पूर्व दिल्ली सीट से कांग्रेस उम्मीदवार हैं। जीत-हार के परे कन्हैया कुमार के चुनाव प्रचार के तरीके ने एक बार फिर से उनकी जेएनयू वाली छवि की याद दिला दी है।
कन्हैया ऐसे पहले जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष नहीं हैं जो सक्रिय राजनीति में उतरे हैं। उनसे पहले भी कइयों ने राजनीति में न केवल हाथ आजमाया है बल्कि बहुत सफल भी रहे हैं।
साल 2015 में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने कन्हैया 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की बेगुसराय लोकसभा सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ चुके हैं। कन्हैया को इस सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता गिरिराज सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।कन्हैया मूल रूप से बेगुसराय के रहने वाले हैं और इस बार उत्तर पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से भाजपा नेता व भोजपुरी अभिनेता व गायक मनोज तिवारी के सामने मैदान में हैं।
JNU ने देश की राजनीति को दिए हैं कई बड़े चेहरे
साल 1969 में स्थापित जेएनयू ने देश को कई बड़े नेता दिए हैं। जेएनयू छात्रसंघ के कई पूर्व अध्यक्ष देश और राज्यों की राजनीति में चर्चित चेहरा बनकर उभरे। इनमें डीपी त्रिपाठी, प्रकाश करात, सीताराम येचुरी, चंद्रशेखर प्रसाद, शकील अहमद खान और तनवीर अख्तर प्रमुख है। इनमें से तनवीर अख्तर को छोड़कर सारे नेताओं ने वामपंथी छात्र संगठनों में रहते हुए ही जेएनयू छात्र संघ की अगुआई की थी। वहीं, तनवीर को यह कामयाबी कांग्रेस से जुड़ी छात्र इकाई भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआइ) से मिली थी।
जेएनयू में पहली बार 1975-76 में छात्र संघ का चुनाव हुआ। स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया (एसएफआइ) के डीपी त्रिपाठी अध्यक्ष चुने गए। वह आपातकाल के दौरान जेल भी गए। डीपीटी राजनीति की शुरुआत में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर से जुड़े। इसके बाद उन्होंने राजीव गांधी और पीवी नरसिंह राव के साथ भी काम किया। 1999 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया। 2012 से 2018 के बीच वह राज्यसभा के सदस्य भी रहे।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता प्रकाश करात 1976-77 में जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष बने। करात हरिकिशन सिंह सुरजीत के बाद 2005 से 2015 तक माकपा के महासचिव रहे। माकपा के ही नेता सीताराम येचुरी 1977-78 में छात्र संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव जीता। करात के बाद येचुरी माकपा के महासचिव हैं। उन्होंने 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम का मसविदा तैयार करने के लिए पी.चिदंबरम के साथ काम किया था।
चंद्रशेखर प्रसाद 1993 में छात्रसंघ के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए। उसके बाद वह दो बार छात्र संघ के अध्यक्ष बने। विश्वविद्यालय से बाहर निकलकर वह अपने गृह जिले सिवान लौट आए और भाकपा (माले) के लिए काम करने लगे। लेकिन मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश करने से पहले ही 1997 में उनकी हत्या कर दी गई।
तनवीर अख्तर 1991-92 में छात्र संघ के अध्यक्ष थे। अख्तर ने छात्र संघ का चुनाव एनएसयूआइ से लड़ा था। वह जेएनयू से बाहर आने के बाद कांग्रेस के विधानपरिषद के सदस्य बनाए गए। वह बिहार प्रदेश कांग्रेस समिति के उपाध्यक्ष और बिहार यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। बाद में तनवीर जनता दल (एकी) में शामिल हो गए। 2021 में कोरोना से उनकी मृत्यु हुई।
शकील अहमद खान 1992-93 में छात्र संघ के अध्यक्ष थे। इसके बाद वह छात्र संघ के उपाध्यक्ष भी बने। खान ने छात्र संघ का चुनाव स्टूडेंट फेडरेशन आफ इंडिया (एसएफआइ) से लड़ा था। विश्वविद्यालय छोड़ने के बाद वह कांग्रेस से जुड़ गए। वर्तमान में वह बिहार विधानसभा के सदस्य हैं।
बांका के दिवंगत पूर्व सांसद दिग्विजय सिंह भी 1982 में जेएनयू छात्र संघ के महासचिव रह चुके हैं। वह स्टूडेंट्स फार डेमोक्रेटिक सोशलिज्म (डीवाईएस) संगठन से जुड़े थे। 2019 में छात्र संघ की अध्यक्ष चुनी गईं आइसी घोष 2021 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जमुरिया विधानसभा से माकपा की उम्मीदवार थीं। घोष तृणमूल कांग्रेस के हरेराम सिंह से हार गईं।
जयशंकर और निर्मला सीतारमण भी जेएनयू से
वर्तमान केंद्र सरकार में विदेश मंत्री एस जयशंकर और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी दिल्ली के इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है। हालांकि, इन दोनों ने विश्वविद्यालय में रहते हुए छात्र राजनीति में भाग नहीं लिया। जयशंकर ने जेएनयू से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पीएचडी की, जहां उन्होंने परमाणु कूटनीति में विशेषज्ञता हासिल की। दूसरी ओर, निर्मला सीतारमण 1984 में जेएनयू से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर और एमफिल की डिग्री पूरी करने के लिए दिल्ली आ गईं।