गोवा में अभी आयाराम गयाराम की सियासत का ही बोलबाला है। कौन कब पाला बदल ले, कोई नहीं जानता। तभी तो दिल्ली की आम आदमी पार्टी से लेकर पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांगे्रस पार्टी तक गोवा की सत्ता हासिल करने लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही। दोनों की देखादेखी दो पार्टियों राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी और शिवसेना ने भी गठबंधन कर गोवा चुनाव का स्वाद चखने का एलान कर दिया है।
सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके चर्चिल अलेमाओ ने पिछले दिनों एनसीपी का दामन थाम लिया था। हालत यह है कि अभी इन दोनों दलों के पास सभी 40 सीटों पर उतारने के लिए उम्मीदवार तक नहीं हैं पर सूबे में लंबे अरसे तक सत्ता में रह चुकी कांगे्रस पार्टी को ये दोनों दल न केवल अपने साथ आने की नसीहत दे रहे हैं बल्कि पहले से ही तोहमत भी लगा दी है कि भाजपा अगर सत्ता में आई तो इसकी जिम्मेदार कांगे्रस होगी।
गोवा की सत्ता पाने के फेर में अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी हर हथकंडा अपना रहे हैं। तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा कई महीने से गोवा में ही हैं। कांगे्रस के नेताओं को दल-बदल कराकर एक तरफ तो उसकी जड़ खोद रही हैं दूसरी तरफ यह नसीहत भी दे रही हैं कि कांगे्रस अगर भाजपा को गोवा की सत्ता से वाकई बेदखल करना चाहती है तो उसे तृणमूल कांगे्रस के साथ गठबंधन करना चाहिए। खुद तृणमूल कांगे्रस ने महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी से गठबंधन किया है। पर लगता नहीं किममता के मंसूबों को गोवा के लोग परवान चढ़ने देंगे।
हां, अरविंद केजरीवाल ने जरूर गोवा को लंबे समय से अपनी कर्मस्थली बना रखा है। पंजाब में वे पहले से जनाधार रखते हैं। लगता है कि उत्तराखंड, गुजरात और गोवा में चुनाव लड़ने के पीछे आम आदमी पार्टी की मंशा सत्ता पाने से ज्यादा राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने की है। लक्ष्य तो ममता और केजरीवाल दोनों का ही 2024 के चुनाव में नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा बनने का ही होगा। तो भी केजरीवाल ने किसी दल बदलू पर दांव लगाने के बजाए एक युवा वकील अमित पालेकर को मुख्यमंत्री पद का अपनी पार्टी की तरफ से उम्मीदवार घोषित कर दिया है। वे भंडारी समाज से नाता रखते हैं। केजरीवाल ने कहा भी है कि गोवा के भंडारी समाज को अतीत में न सत्ता में वाजिब हिस्सेदारी मिल पाई और न सही सम्मान।
टिकटों के बंटवारे के कारण असंतोष और बगावत से गोवा में भी कोई पार्टी अछूती नहीं है। भाजपा ने कई उन दल बदलुओं को भी टिकट न देकर निराश कर दिया है जिनकी बदौलत पांच साल तक सत्ता का सुख भोगा। वंशवाद का विरोध करने का दम भरते हुए भी दो दंपतियों को चार सीटों पर उम्मीदवार बनाया है। जातपात और मजहब की सियासत की निंदा करने वाली पार्टी 34 उम्मीदवारों की सूची जारी करते वक्त यह बताना नहीं भूली कि इनमें नौ ईसाई हैं और तीन जनजाति वर्ग के हैं। जोर आजमाइश सभी पार्टियां कर रही हैं पर मुख्य मुकाबला कांगे्रस और भाजपा के बीच ही है। पिछली बार की तरह अगर इस बार भी विधानसभा त्रिशंकु रही तो सरकार कौन बनाएगा, यह देखना और भी रोचक होगा।