पांच राज्यों के चुनाव संपन्न हो गए हैं, नतीजे सामने आए हैं- बीजेपी ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की है, कांग्रेस की अप्रत्याशित चार राज्यों में हार हुई है और पीएम मोदी की लोकप्रियता फिर छप्पर फाड़ दिखाई पड़ी है। जिस ब्रांड मोदी को कर्नाटक चुनाव के बाद पूरे विपक्ष ने नकार दिया था, उसने फिर अपना जादू चलाया है, उसने फिर जनता का विश्वास जीता है और बीजेपी हिंदी पट्टी राज्यों में फिर सबसे बड़ी पार्टी बन गई है।
इस बार के चुनाव में बीजेपी का तीनों हिंदी पट्टी राज्य में मुकाबला कांग्रेस से था। अब बीजेपी का चेहरा तो पीएम मोदी थे, लेकिन कांग्रेस ने हर राज्य में अपना सीएम फेस घोषित कर रखा था। राजस्थान में अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और एमपी में कमलनाथ। इसके साथ-साथ कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लगातार हुई रैलियों ने भी माहौल बनाने का काम किया। राहुल की तो भारत जोड़ो यात्रा भी इन राज्यों से होकर गुजरी थी, ऐसे में उनकी भूमिका को बिल्कुल भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
इसका मतलब ये हुआ कि अगर बीजेपी की तरफ से ब्रांड मोदी की ये सबसे बड़ी परीक्षा थी, तो कांग्रेस को भी ब्रांड राहुल को साबित करना था। लड़ाई मुश्किल थी क्योंकि ब्रांड मोदी तो 2014 के बाद से लगातार ही मजबूत होता जा रहा है, वहीं ब्रांड राहुल हाल ही में भारत जोड़ो यात्रा और कर्नाटक जीत के बाद ज्यादा सक्रिय दिखाई पड़ा।लेकिन अब इन चुनावी नतीजों के बाद दोनों ब्रांड का एक बार फिर विश्लेषण करना जरूरी हो जाता है-
ब्रांड मोदी का विश्लेषण
पीएम नरेंद्र मोदी इस समय भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़ा चेहरा हैं। 2014 से पहले जो नरेंद्र मोदी सिर्फ गुजरात की राजनीति तक सीमित थे, दिल्ली में उनके कदम पड़ते ही सबकुछ बदल गया। उनके खुद के सियासी करियर में तो बड़ा बदलाव आया ही, बीजेपी का स्वरूप भी बदल सा गया। ये ज्यादा आक्रमक बीजेपी थी, ये ज्यादा खुलकर अपनी विचारधारा पर चलने वाली बीजेपी थी और सबसे बढ़कर जनता से इस बीजेपी का कनेक्ट सबसे ज्यादा मजबूत दिखाई दिया।
अब ये सारे बदलाव जो पिछले 10 सालों में बीजेपी में दिखाई पड़े हैं, असल में ये पीएम मोदी की ही शख्सियत का हिस्सा हैं। इस चुनाव में पीएम की उसी शख्सियत ने बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाया है। इसे ऐसे समझना चाहिए कि पीएम मोदी का चेहरा इस समय बीजेपी के किसी भी सीएम या किसी भी बड़े मंत्री से भी ज्यादा बड़ा है। ये भी कहा जा सकता है कि उनके दम पर ही तीनों राज्यों में बीजेपी ने हारी हुई बाजी पलटने का काम किया है।
इस जीत ने तीन बातें एकदम साफ कर दी हैं- पहली- जनता के मन में पीएम मोदी को लेकर अटूट विश्वास है। ऐसा इसलिए क्योंकि वादे तो हर नेता करते हैं, वादे तो कांग्रेस ने भी कई किए, लेकिन जब पीएम मोदी ने बोल दिया कि ये मेरी गारंटी है, सबकुछ बदल गया। जनता के मन में जो भी सवाल थे, जैसा भी संशय था, वो खत्म हो गया। दूसरी बात ये साफ होती है कि पीएम होने के बाद भी अगर जमीन पर सबसे ज्यादा मोदी प्रचार करते हैं तो उसका फायदा भी पार्टी को पहुंचता है।
राजस्थान की ही बात कर लें तो बीजेपी ने इस बार जो 115 सीटें जीतने का काम किया है, यहां पर 95 सीटें ऐसी रहीं जहां पर खुद पीएम मोदी ने प्रचार किया था, उनकी तरफ से जनता से वोट की अपील हुई थी। बड़ी बात ये है कि जहां पर भी पीएम मोदी का प्रचार हुआ, उस सीट पर बीजेपी का वोट शेयर भी 3 से 6 फीसदी तक बढ़ गया। इसके अलावा रोड शो के जरिए भी पीएम मोदी ने राजस्थान में कुल 19 सीटें कवर की थीं, नतीजे बताते हैं कि यहां 12 सीटों पर बीजेपी को बड़ी जीत मिली। यानी कि पीएम मोदी का स्ट्राइक रेट 82 प्रतिशत के करीब रहा।
पीएम मोदी को लेकर ये भी कहा जा सकता है कि पिछले 9 सालों में उन्होंने खुद को लगातार अपग्रेड किया है। उन्होंने ना बीजेपी को सिर्फ शहरी पार्टी तक सीमित रखा और ना ही उन्होंने सिर्फ सवर्ण जाति पर फोकस किया। देश की राजनीति को समझते हुए पीएम मोदी ने समय रहते गेयर स्विच किए अपनी राजनीति के केंद्र में महिलाओं को लाया, ओबीसी वर्ग को लाया और इस सब सबसे ऊपर उठकर खुद का एक लाभार्थी वोटबैंक खड़ा कर दिया।
अब तो पीएम मोदी ने एक कदम आगे बढ़कर अपनी खुद की जाति पॉलिटिक्स शुरू कर दी है। उनके लिए सिर्फ चार जातियां ही मायने रखती हैं- युवा शक्ति, किसान शक्ति, महिला शक्ति और गरीब शक्ति। यानी कि इस रणनीति के तहत पीएम एक इतना बड़ा वोटबैंक तैयार करना चाहते हैं जो धर्म से ऊपर उठकर भी उनका ही समर्थन करे।
ब्रांड राहुल का विश्लेषण
कांग्रेस नेता राहुल गांधी का सियासी सफर काफी उतार-चढ़ाव वाला रहा है। उन्हें सिर्फ कई तरह की चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा है, बल्कि कहना चाहिए एक ऐसे नेरेटिव से भी उनका लगातार सामना हो रहा है जहां पर उनकी क्षमताओं को लगातार सवालों के घेरे में लाया जा रहा है। 2014 से 2019 तक के चुनाव के दौरान तो राहुल गांधी की जो छवि बन चुकी थ, वहां पर सिर्फ इतना देखा गया कि वे समान मुद्दों पर हर बार बात करते हैं, जमीनी हकीकत से दूर सिर्फ पीएम मोदी पर हमला करने पर विश्वास रखते हैं।
लेकिन फिर एक भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल 2.0 को जन्म दिया और कांग्रेस नेता का एक नया रूप पूरी दुनिया के सामने आया। ये राहुल गांधी देश की समस्याओं को ज्यादा बेहतर अंदाज में समझ रहे थे, ये आम लोगों के बीच में ज्यादा जा रहे थे। वैसे पिछले कुछ महीनों में राहुल की कॉमन मैन पॉलिटिक्स सुर्खियों में रही है। उनका किसानों से मिलना, कुलियों के बीच में जाना, किसानों के साथ खेती करना, अचानक से किसी ट्रेन में चढ़ यात्रियों से बात करना। राहुल ने एक अलग रणनीति पर काम जरूर किया है।
दिक्कत ये रही है कि कांग्रेस नेता अभी भी पीएम मोदी पर निजी हमले करने से बाज नहीं आ रहे हैं। जानकार मानते हैं कि इस बार जो कांग्रेस को चुनावी हार मिली हैं, उसमें एक बड़ा कारण ये भी है कि मोदी पर निजी हमले हुए। राहुल ने ही सबसे बड़ा निजी हमला करते हुए पीएम को पनौती बता दिया था। अब राहुल की ये चूक उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर रही है।
इस समय कहने को वे भी एक अलग ही कॉमन मैन वाला वोटबैंक बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वे भी जाति-धर्म से ऊपर उठकर एक बड़े वर्ग को अपनी झोली में लाना चाहते हैं, लेकिन फर्क यही है कि एक की जबान किसी को और ज्यादा लोकप्रिय बनाती जा रही है, वहीं दूसरे की जबान पूरी तरह बैकफायर कर रही है।