साठ दिनों के बाद देश में बजने वाले लोकसभा चुनाव के बिगुल में 400 का आकड़ा पार करने का सब्जबाग पाले भारतीय जनता पार्टी, गुजरात की तरह उत्तर प्रदेश को विकास के नए रोल माडल के तौर पर पेश करने जा रही है। साढ़े छह साल में उत्तर प्रदेश में हुए चहुमुखी विकास को नजीर के तौर पर पेश करने में लगी भाजपा अयोध्या और काशी को केंद्र में रख कर इस योजना को अंजाम तक पहुंचाने की कोशिशोंं में जुट गई है। जबकि समूचा विपक्ष अपनी जड़ों को सुरक्षित रखने की कोशिशों से जूझ रहा है।
बनारस में काशी विश्वनाथ गलियारे के निर्माण के बाद अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा से देश भर में उमड़े आस्था के जनसैलाब को वोटों की शक्ल में हासिल करने की जुगत में जुटी भारतीय जनता पार्टी लोकसभा चुनाव में हर एक सीट पर पूरा ध्यान केंद्रित किए है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 11 सीटों का नुकसान झेल कर 62 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा को इस बार यहां से खासी उम्मीद है।
अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उसे भरोसा है कि वह प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से सभी को जीत पाने में कामयाब होगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कई बार इस बात को सार्वजनिक मंचों से दोहरा चुके हैं कि वे आगामी लोकसभा के चुनाव में प्रदेश की सभी 80 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब होंगे। साढ़े छह साल में प्रदेश में ढाई लाख करोड़ रुपए के निवेश का दावा करने वाली योगी सरकार उत्तर प्रदेश को विकास के नए माडल के तौर पर राष्ट्रीय क्षितिज पर पेश करने में कोई कर नहीं छोड़ रही है।
अब तक उत्तर प्रदेश में हुई तीन समारोह में दो लाख 11 हजार करोड़ रुपए का निवेश जमीन पर उतारने में कामयाबी हासिल करने वाली प्रदेश सरकार ने 19 फरवरी को दस लाख 23 हजार करोड़ रुपए का निवेश उतार कर गुजरात की तर्ज पर उत्तर प्रदेश को विकास के नए माडल के तौर पर देश के सामने पेश करने की कोशिश की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास की राह पर तेजी से बढ़ रहे उत्तर प्रदेश की शान में कसीदे पढ़ कर भाजपा की इस मुहिम को हवा दी है।
प्रदेश को माफिया राज और अपराध से मुक्ति दिला कर चार हजार से अधिक अपराधियों और माफिया को नेस्तनाबूद कर चुकी उत्तर प्रदेश सरकार बिजली, पानी और सड़क के साथ उद्योग को विस्तार दे कर आगामी लोकसभा चुनाव में इसे वोटों में परिवर्तित होते देखना चाहती है। जबकि कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी इस वक्त प्रदेश में अपनी जड़ों को सुरक्षित रखने की जद्दोजहद में जुटी हैं।
रायबरेली से इस बार सोनिया गांधी के चुनाव मैदान में न उतरने के बाद कांग्रेस के समक्ष रायबरेली को बचाए रखना बड़ी चुनौती बन चुका है। 2019 के लोकसभा चुनाव में स्मृति ईरानी के हाथों अमेठी गंवा चुकी कांग्रेस इस बार उत्तर प्रदेश में फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। जबकि बहुजन समाज पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव में हासिल हुई दस सीटों को वापस पाने की पुरजोर कोशिश में है।
रही बात समाजवादी पार्टी की, तो राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन टूटने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य और सलीम इकबाल शेरवानी के राष्ट्रीय महासचिव के पद से त्यागपत्र देने से पार्टी दबाव में है। साथी ही स्वामी तो सपा छोड़कर नई पार्टी बनाने जा रहे हैं। सपा के समक्ष 2019 के चुनाव में जीती गई पांच सीटों को सुरक्षित रख पाना किसी चुनौती से कम नहीं है। इस बाबत प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह कहते हैं, उत्तर प्रदेश में इस वक्त विपक्ष अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। उसके पास भाजपा से मुकाबला करने का न साहस बचा है और ना ही ताकत।