Vikas Pathak

लोकसभा चुनाव से एक महीने से भी कम समय पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद चर्चा तेज हो गई है। उनकी गिरफ्तारी से विपक्ष भी एक्टिव हो गया है। अब बड़ा सवाल उठता है कि इसका फायदा उसे आने वाले लोकसभा चुनाव में मिलेगा।

AAP का क्या होगा?

यदि केजरीवाल को जल्द अदालत से राहत नहीं मिलती है, तो आप को अस्तित्व के संकट का सामना करना पड़ सकता है। उसे ऐसे नेता की कमी खलेगी, जिसका जनता के बीच अपील के मामले में पार्टी में कोई सानी नहीं है। इससे पार्टी के लिए गंभीर चुनौती खड़ी होने की संभावना है और पंजाब जैसे राज्य में तो इससे मतदाता कांग्रेस की ओर और भी अधिक झुक सकते हैं।

इसके अलावा AAP प्रमुख केजरीवाल, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और भारत राष्ट्र समिति (BRS) की के. कविता की हाल ही में हुई गिरफ्तारी से इन दलों के और नेता भाजपा के साथ जुड़ सकते हैं।

क्या AAP दिल्ली में कमाल कर सकती है?

पिछले 10 सालों से दिल्ली की राजनीति में मतदाता अलग-अलग चुनाव के लिए अलग-अलग विकल्प चुनते आए हैं। विधानसभा चुनाव में उन्होंने अरविंद केजरीवाल का समर्थन किया, उनकी कल्याणकारी राजनीति का समर्थन किया, जिसमें सरकारी स्कूल और स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था में सुधार के लिए काम किया गया है। आंकड़े बताते हैं विधानसभा चुनाव में AAP को वोट देने वालों ने लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को चुना, जो दिल्ली में स्थानीय मुद्दों पर नहीं बल्कि राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा गया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली में सभी सीटें जीतीं और 46.6% वोट हासिल किए, जबकि AAP ने 33% वोट हासिल किए और खाता भी नहीं खोल सकी। कांग्रेस का वोट शेयर 15% था। कुछ महीनों बाद विधानसभा चुनाव में AAP ने 54.5% वोट हासिल किए और 70 में से 67 सीटें जीतीं, जबकि भाजपा ने 32.3 प्रतिशत वोट के साथ सिर्फ तीन सीटें जीतीं।

पांच साल बाद भी यही पैटर्न रहा। 2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा ने लगभग 57% वोट शेयर के साथ सभी सात सीटें जीतीं और कांग्रेस और AAP क्रमशः 22.5% और 18.1% वोट शेयर के साथ एक भी सीट नहीं जीत पाई। अगले वर्ष हुए विधानसभा चुनावों में AAP ने 53% वोटों के साथ 70 में से 62 सीटें जीतीं और भाजपा ने 38% वोटों के साथ आठ सीटें जीतीं।

ऐसी संभावना है कि केजरीवाल की हाई-प्रोफाइल गिरफ्तारी AAP को इस पैटर्न को तोड़ने में मदद करेगी। अब दिल्ली में लोकसभा चुनावों में केवल राष्ट्रीय मुद्दे ही हावी नहीं होंगे, बल्कि मौजूदा सीएम की गिरफ्तारी से उठे सवाल भी इसमें शामिल होंगे। मुख्य बात यह होगी कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले हिंदू मतदाता, जो केजरीवाल की लोकलुभावन राजनीति के लाभार्थी रहे हैं, क्या वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वोट देंगे या कुछ हद तक AAP की ओर रुख करेंगे? अगर वे ऐसा करते हैं, तो दिल्ली में इस बार कुछ लोकसभा क्षेत्रों में लड़ाई देखने को मिल सकती है और कांग्रेस-AAP गठबंधन चुनावों में खाता खोल सकता है।

क्या AAP पंजाब में बढ़त हासिल कर सकती है?

एक राज्य जहां केजरीवाल के लिए संभावित सहानुभूति का सबसे बड़ा संभावित प्रभाव हो सकता है, वह है पंजाब, जहां 13 सीटें हैं। पंजाब में भाजपा कमजोर है। पंजाब में मुकाबला AAP और कांग्रेस के बीच लगता है, जो दिल्ली, गोवा, गुजरात और हरियाणा में एक-दूसरे के सहयोगी हैं, लेकिन पंजाब में सीधे मुकाबले में हैं। अगर पंजाब में केजरीवाल के लिए सहानुभूति होती है, तो 2019 में 8 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत हासिल करने वाली कांग्रेस पर हार का खतरा मंडराएगा।

क्या विपक्ष एकजुट हो सकता है?

पिछले दो महीनों की कहानी एनडीए के मजबूत होने और विपक्षी भारत गठबंधन के टूटने की रही है। केजरीवाल की गिरफ्तारी विपक्ष को दिल्ली के सीएम के इर्द-गिर्द लामबंद होने का संकेत दे रही है।

गुरुवार रात ईडी द्वारा दिल्ली के सीएम को हिरासत में लेने के तुरंत बाद राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर एमके स्टालिन, पिनाराई विजयन और अखिलेश यादव तक विपक्षी नेताओं ने ईडी की आलोचना की। ममता बनर्जी ने केजरीवाल की पत्नी सुनीता को एकजुटता दिखाने के लिए फोन भी किया। सवाल यह है कि विपक्षी दल किस हद तक एकजुट होंगे और चुनाव के करीब वे क्या ठोस उपाय कर सकते हैं क्योंकि कांग्रेस और प्रमुख क्षेत्रीय दलों के हितों का टकराव भी बड़ा मुद्दा है।