कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी साल 2004 से अब तक लगातार अमेठी संसदीय सीट से लोकसभा के सांसद चुने जाते रहे हैं। संभवत: चौथी बार भी वह अमेठी से चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, उनकी राह में भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सियासी रोड़ा अटकाने की पुरजोर कोशिश कर रही हैं। शुक्रवार (04 जनवरी) को भी स्मृति ईरानी ने अमेठी का दौरा किया और राहुल पर तंज कसा कि जब मायावती, ममता बनर्जी और अखिलेश यादव में से कोई भी उन्हें आशीर्वाद नहीं दे रहा, तब भी वो पीएम बनने का मुंगेरीलाल जैसा हसीन सपना कैसे देख रहे हैं? बता दें कि साल 2014 के चुनावों में स्मृति ईरानी ने अमेठी से पहली बार चुनाव लड़ा था और राहुल को कड़ी टक्कड़ दी थी। तब राहुल को कुल चार लाख, आठ हजार 651 (46.71 फीसदी) वोट मिले थे जबकि स्मृति ईरानी को तीन लाख 748 (34.38 फीसदी) वोट मिले थे। यानी दोनों के बीच मतों का अंतर करीब एक लाख ही था। इससे पहले के दो चुनावों में राहुल गांधी की जीत का अंतर करीब तीन लाख वोट रहा था।

बता दें कि अमेठी संसदीय सीट नेहरू-गांधी परिवार की पुश्तैनी सीट रही है। इस परिवार से सबसे पहले संजय गांधी ने 1977 का लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप सिंह के हाथों करीब 75 हजार वोट के अंतर से हारना पड़ा था। उस वक्त देश में कांग्रेस खासकर इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश था। इसके बाद 1980 के चुनावों में संजय गांधी ने करीब सवा लाख के मतों के अंतर से रविंद्र प्रताप सिंह को हराकर जीत हासिल की थी लेकिन छह महीने बाद ही 23 जून, 1980 को एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। इसके साल भर बाद संजय गांधी के बड़े भाई राजीव गांधी को कांग्रेस पार्टी ने अमेठी से चुनाव लड़ाने का फैसला किया।

राजीव गांधी ने अमेठी से पहली बार 1981 में उप चुनाव लड़ा और जीतकर संसद पहुंचे। लोकदल के शरद यादव ने तब राजीव गांधी को चुनौती दी थी लेकिन सहानुभूति की लहर में शरद यादव उखड़ गए और अमेठी के लोगों ने राजीव गांधी को बंपर वोटों से जीत दिलाई। तब राजीव गांधी को कुल 2 लाख 58 हजार 884 (84.18 फीसदी) वोट मिले थे, जबकि शरद यादव को मात्र 21 हजार 188 (6.89 फीसदी) वोट ही मिले थे। यह सातवीं लोकसभा का चुनाव था। उस वक्त इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं लेकिन तीन साल बाद ही 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। कुछ दिन बाद कांग्रेस नेताओं ने देश की बागडोर राजीव गांधी के हाथों में सौंपने का फैसला किया। राजीव नए नवेले सांसद थे, फिर भी उन्होंने 40 साल की उम्र में देश की गद्दी संभाली।

दिसंबर 1984 में आठवीं लोकसभा के चुनाव हुए। राजीव गांधी ने फिर से अमेठी से चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की। यह चुनाव इसलिए भी अहम था क्योंकि राजीव गांधी का मुकाबला घर के ही लोगों से था। छोटे भाई की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अमेठी से मैदान में थीं। तब उन्हें मात्र 50 हजार 163 (11.50 फीसदी) वोट मिले थे जबकि राजीव गांधी को कुल तीन लाख, 65 हजार, 41 (83.67 फीसदी) वोट मिले थे। राजीव गांधी ने नौंवी लोकसभा का चुनाव भी 1989 में अमेठी से ही लड़ा। उन्हें तब 2 लाख 71 हजार, 407 (67.43 फीसदी) वोट मिले थे। उनके खिलाफ जनता दल के राजमोहन गांधी थे जिन्हें 67 हजार, 269 वोट मिले थे। राजीव गांधी ने 1991 में दसवीं लोकसभा का चुनाव अमेठी से लड़ा था करीब एक लाख वोटों से भाजपा कैंडिडेट को हराया था लेकिन चुनाव नतीजे आने से पहले ही उनकी चुनावी सभा में एक आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई थी। इसके बाद हुए उप चुनाव में कांग्रेस के सतीश शर्मा ने जीत दर्ज की।

सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति में प्रवेश करते हुए 1999 के तेरहवीं लोकसभा चुनावों में अमेठी और कर्नाटक के बल्लारी से चुनाव लड़ा था। उन्हें अमेठी में चार लाख, 18 हजार, 960 वोट मिले थे। इसके बाद 14वीं लोकसभा के लिए 2004 में हुए चुनावों में सोनिया गांधी ने ये सीट बेटे राहुल गांधी के लिए छोड़ दी। राहुल 2004, 2009 और 2014 का चुनाव अमेठी से जीत चुके हैं और 2019 की तैयारियों में लगे हुए हैं। इस तरह राहुल 2019 में चौथी बार अमेठी से चुनाव लड़कर पिता राजीव गांधी की बराबरी करेंगे मगर 40 साल में पहली बार संसद पहुंचकर पीएम बनने का उनका रिकॉर्ड नहीं तोड़ पाए।

यानी अमेठी से राहुल गांधी के चाचा, चाची, मम्पी, पापा ने भी चुनाव लड़ा है लेकिन सबसे ज्यादा मतों से जीत का रिकॉर्ड राहुल गांधी के नाम दर्ज है। आंकड़ों पर गौर करें तो 1980 के चुनाव में संजय गांधी 1 लाख 28 हजार, 545 मतों के अंतर से जीते थे तो राजीव गांधी ने 1981 के उप चुनाव में 2 लाख 37 हजार 696 वोट से जीत दर्ज की थी। 1984 में जब सहानुभूति की लहर थी तब राजीव गांधी ने 3 लाख 14 हजार 878 वोट से जीत हासिल की थी। 1989 में राजीव गांधी की जीत का अंतर 2 लाख दो हजार 138 वोट और 1991 में एक लाख 12 हजार 85 वोट था। 1999 में जब सोनिया ने चुनाव लड़ा था तो उन्होंने तीन लाख 12 वोट के अंतर से जीत दर्ज की थी। 2004 में राहुल ने दो लाख 90 हजार 853 वोट और 2009 में सबसे ज्यादा रिकॉर्ड तीन लाख 70 हजार 198 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। 2014 में उनकी जीत का अंतर घटकर एक लाख, सात हजार 903 रह गया था।