राजस्थान विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के तीन दिन बाद भी कांग्रेस मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं कर पाई है। फिलहाल सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच मामला फंसा हुआ है। हालांकि, राजस्थान कांग्रेस में सीएम के लिए सियासी संघर्ष नई बात नहीं है। 1952 में जब सबसे पहले चुनाव हुए थे, तब भी सीएम पद के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ता दो गुटों में बंट गए थे। एक ओर जयनारायण व्यास के समर्थक तो दूसरी ओर टीकाराम पालीवाल के समर्थक थे। 1954 में मोहनलाल सुखाड़िया को लेकर भी ऐसे ही हालात बने। 1998 में जब कांग्रेस ने बहुमत के साथ सरकार बनाई तो परसराम मदेरणा की जगह गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया गया।

1952 : जयनारायण और टीकाराम
राजस्थान में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए, जिनमें कांग्रेस ने जीत दर्ज की। हालांकि, मुख्यमंत्री पद के दावेदार जयनारायण व्यास अपनी दोनों सीटों से हार गए। ऐसे में टीकाराम पालीवाल को मुख्यमंत्री बनाया गया। सालभर में ही व्यास ने उपचुनाव जीत दर्ज की, जिसके बाद उन्हें सीएम बना दिया गया। राजस्थान के कांग्रेसियों को व्यास का इस तरह सीएम बनना नहीं भाया और उन्होंने विद्रोह कर दिया।

1954 : जयनारायण और सुखाड़िया
जयनारायण व्यास का विरोध इतना बढ़ गया कि विधायक दल के नेता के लिए दोबारा चुनाव कराना पड़ा। व्यास और मोहनलाल सुखाड़िया से 8 वोट से हार गए। सुखाड़िया महज 38 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बने और उन्होंने 17 साल लगातार राज किया। 1967 में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला, लेकिन वे सियासी तिकड़मों से मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे।

1971 : सुखाड़िया और बरकतुल्ला
1969 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान इंदिरा गांधी सुखाड़िया से नाराज हो गई थीं। उन्होंने सुखाड़िया को सीएम पद से बेदखल करते हुए बरकतुल्ला खां की ताजपोशी कर दी, लेकिन दो साल बाद 1973 में बरकतुल्ला की असामयिक मृत्यु हो गई। इसके बाद सीएम पद के लिए हरिदेव जोशी और रामनिवास मिर्धा में मुकाबला हुआ, जिसमें जोशी जीते। उस वक्त भी सियासी माहौल गर्मा गया था।

1998 : परसराम मदेरणा और गहलोत
कांग्रेस 153 सीटों के भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी। माना जा रहा था कि जाटों के जबरदस्त समर्थन से कांग्रेस को यह कामयाबी मिली है। उस वक्त वरिष्ठ जाट नेता परसराम मदेरणा नेता प्रतिपक्ष थे और अशोक गहलोत प्रदेशाध्यक्ष। आलाकमान की पसंद पर गहलोत सीएम बने। इससे जाट नाराज हो गए, जिसका खमियाजा बाद के चुनावों में भुगतना पड़ा।

2008: सीपी जोशी और गहलोत
कांग्रेस के फिर से सत्ता में आने के बाद सीपी जोशी प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सीएम पद के बड़े दावेदार थे, लेकिन वे एक वोट से चुनाव हार गए। बुजुर्ग कांग्रेसी नेता शीशराम ओला ने ताल ठोंक दी। दिग्विजय पर्यवेक्षक बनकर आए। कांग्रेस आलाकमान ने गुप्त पर्चियों से राय जानी। इसमें अशोक गहलोत विधायक दल के नेता चुने गए।

 

2018: पायलट और गहलोत
सचिन पायलट राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं। उन्हें कमान तब मिली, जब पार्टी राजस्थान में 21 सीटों पर थी। इस आकंड़े को उन्होंने सौ सीटों तक पहुंचाया है। अशोक गहलोत दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 1998 से 2003 और 2008 से 2013 तक। इसके अलावा चार बार सांसद और दो बार केंद्रीय मंत्री भी बन चुके हैं। साथ ही, दो बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। ऐसे में दोनों के बीच सीएम पद को लेकर खींचतान जारी है।