सर्वेश कुमार
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस भी जीत के लिए पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को अपने पाले में करने में जुटी है। भाजपा ने चुनावी जंग में पिछड़े वर्ग के 33 प्रत्याशियों को उतारा है। उधर, कांग्रेस भी दोबारा सत्ता मिलने पर जातीय जनगणना के वादे के साथ पिछड़ा वर्ग के 29 प्रत्याशियों पर भरोसा जताया है। किसानों के कर्ज माफी, निशुल्क शिक्षा और 17.5 लाख मकान देने की घोषणा कर सत्ता में दोबारा काबिज होने की हरसंभव कोशिश में है।
प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की आबादी करीब 43-44 फीसद है। इस वजह से सियासी दलों के चुनावी परिणाम में इस वर्ग की अहम भूमिका है। सियासी पार्टियां पिछड़ा वर्ग के लिए खुद को हितैषी साबित कर सत्ता में वापसी के लिए हर दाव आजमा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक भाजपा ने भले ही पिछड़े वर्ग के कार्यकर्ताओं को प्रमुख पद सौंपने के साथ ही कांग्रेस से अधिक प्रत्याशी भी बनाए हैं।
फिर भी देखना होगा कि भाजपा को इस वर्ग का कितना समर्थन मिलता है। कांग्रेस ने पहले ही छत्तीसगढ़ में जातीय जनगणना का कार्ड खेलते हुए पिछड़ा वर्ग को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कांग्रेस ने 90 में से 29 पर अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशियों को उतारा है और यह करीब एक तिहाई है।
रायपुर के दुर्गा कालेज में राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष डा अजय चंद्राकर के मुताबिक प्रदेश में 43-44 फीसद पिछड़ा वर्ग है। इनमें साहू, कुर्मी, यादव, निषाद, कोल्ता, रजवार सहित कई और जातियां हैं। लंबे अर्से बाद जातीय जनगणना की कवायद के बाद जाति के आधार पर आरक्षण देने की वकालत करती आ रही है। पिछड़ा वर्ग में भूमिहीन किसानों के लिए सरकार ने सालाना सात हजार रुपए दे रही है तो 35 किलोग्राम निशुल्क राशन जैसी सुविधाएं दी जा रही है, जिसे कांग्रेस भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।