भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार तय करने के लिए पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति की कई बैठकें होने के बावजूद एक भी उम्मीदवार का नाम घोषित नहीं किया गया। चुनाव के दो चरणों की अधिसूचना घोषित होने के बावजूद भाजपा के उम्मीदवार घोषित नहीं होना चौंका रहा है और खबरें पार्टी सूत्रों से निकल कर आ रही हैं, उससे लगता है कि हर राज्य में बगावत का माहौल बनता जा रहा है।

बिहार में लोजपा से समझौता के नाम पर नवादा के सांसद, केंद्रीय मंत्री और भूमिहार नेता गिरिराज सिंह नाराज हैं। वे आसानी से बेगूसराय से चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हैं। बेगूसराय के सांसद भोला सिंह का कुछ समय पहले निधन हो गया था। इसी तरह भाजपा के सबसे पुराने मुसलिम चेहरे सैयद शहनवाज हुसैन के टिकट पर रार मची हुई है। पार्टी ने बगावत की थाह को पाने के लिए कम चर्चा में रहने वाले छत्तीसगढ़ के सभी मौजूदा दसों सांसदों के टिकट काटने की घोषणा की। उसमें वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे रमेश वैश्य और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य मंत्री रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह का भी नाम शामिल है। कहा जा रहा है कि बेटे की जगह इस बार रमन सिंह को और पार्टी के एक और बड़े नेता ब्रजमोहन अग्रवाल को टिकट दिया जा सकता है।

माना जा रहा है कि पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने आधे से ज्यादा नाम तय कर दिए हैं। पहले सत्ता में रहने के दौरान जो हाल कांग्रेस का होता था, इस बार भाजपा है। कांग्रेस आखिरी समय में अपने उम्मीदवारों को चुनाव निशान देकर नामांकन भरने के लिए कहती थी ताकि बगावत कम हो। पहले ही दो चरणों में दो सौ से ज्यादा सीटों पर मतदान होना है जिसके लिए 24 मार्च (पहला चरण) और 26 मार्च (दूसरा चरण) तक नामांकन पत्र भरा जाना है।

मंगलवार को बैठक के बाद पार्टी महासचिव अनिल जैन ने पत्रकारों को बताया कि छत्तीसगढ़ में पार्टी अपने सभी सांसदों का टिकट काटेगी। इसके अलावा जो जानकारी मिली है उसके हिसाब से 75 साल से ज्यादा उम्र वाले नेताओं को पार्टी ने खुद चुनाव लड़ने पर फैसला लेने की जिम्मेदारी सौंपी है। माना जा रहा है कि वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन फिर से अपनी परंपरागत इंदौर से और कलराज मिश्र देवरिया से चुनाव लड़ेंगे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनाव की अलग रणनीति रही है। वे जीत पर जरा भी शंका होने पर उम्मीदवार बदलते रहे हैं। गुजरात में तो संयोग से ही कोई सांसद ऐसा होगा जिसे कई बार सांसद रहने का मौका मिला हो। इस बार चुनाव 2014 से कठिन माना जा रहा है। माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ में सांसदों के टिकट काटने की बात सार्वजनिक करके पार्टी का मिजाज भांपने का प्रयास किया है। ज्यादा बवाल न होने पर ऐसा ही फॉर्मूला दूसरे राज्यों में पार्टी लेगी। कोई भी राज्य ऐसा नहीं है और कोई उम्मीदवार ऐसा नहीं है जिसके खिलाफ पार्टी नेतृत्व पार्टी के नेताओं ने शिकायत नहीं की। ज्यादातर केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ टिकट कटवाने का अभियान चल रहा है। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि अनेक नेताओं को नामांकन पत्र भरने की तैयारी के लिए पार्टी ने संकेत भी दे दिए हैं।