दक्षिणी राज्य कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को करारी हार का सामना करना पड़ा है। भाजपा की इस शिकस्त के पीछे राज्य में पार्टी की आंतरिक कलह और लिंगायत समुदाय के नेताओं को सही ढंग से नहीं साधना प्रमुख वजह माना जा रहा है। कर्नाटक में भाजपा की हार के पीछे बड़ा मुद्दा पार्टी की अंदरूनी खींचतान को माना जा रहा है। कर्नाटक में भाजपा को खड़ा करने में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने बड़ी भूमिका निभाई। लेकिन इस बार उनको विधानसभा चुनाव में एकदम अलग कर दिया गया। दूसरी ओर, जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी का भाजपा ने टिकट काटा जिसके बाद ये दोनों कांग्रेस में शामिल हो गए।
लगता है कि लिंगायत समुदाय के इन तीनों बड़े नेताओं को नजरअंदाज करना भाजपा के लिए महंगा पड़ गया। हालांकि, पार्टी ने लिंगायत समुदाय के लोगों की नाराजगी को शांत करने के लिए सबसे अधिक 68 लिंगायत उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे। कर्नाटक में करीब 17 फीसद लोग लिंगायत समुदाय के हैं। इसके अलावा कांग्रेस के नेता डीके शिवकुमार और सिद्धरमैया के सामने पार्टी कोई मजबूत नेतृत्व पेश नहीं कर पाई। येदियुरप्पा के बाद मुख्यमंत्री बनाए गए बसवराज बोम्मई कर्नाटक की जनता पर कोई खास असर नहीं छोड़ पाए। यही वजह रही कि अधिकतर चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में वे पीछे ही नजर आते रहे।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भ्रष्टाचार का मुद्दा काफी प्रमुखता से उठाया गया। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ शुरू से ही ‘40 फीसद पे-सीएम भ्रष्टाचार’ का एजंडा चंस्पा कर दिया और यह धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया। भाजपा इस मुद्दे पर जनता को भरोसे में नहीं ले पाई। इसके अलावा लगता है कि प्रधानमंत्री की ओर से उठाए गए ‘कांग्रेस राज में 85 फीसद कमीशन’ के मुद्दे को भाजपा अपने मतदाता को समझाने में विफल रही।
कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक चुनाव के लिए जारी अपने घोषणापत्र में जब विश्व हिंदू परिषद की इकाई बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात की तो भाजपा ने इसे हनुमान को मानने वालों पर प्रतिबंध बताया। भाजपा ने चुनाव प्रचार में बजरंगबली का मुद्दा भी खूब जोरशोर से उठाया। इसके बाद भाजपा के बड़े नेता अपनी रैली की शुरुआत ही बजरंगबली की जयघोष से करते दिखे। लेकिन चुनाव परिणाम से यह साफ है कि कर्नाटक की जनता ने बजरंग दल और बजरंगबली एक नहीं माना और राज्य के लोगों ने इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए मतदान नहीं किया।
दूसरा, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि भाजपा ने जब इस मुद्दे को उठाया तो मुसलिम समुदाय ने एकजुट होकर केवल कांग्रेस को ही अपना मत दिया। भाजपा ने किसी भी मुसलिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था। दक्षिण के इस राज्य में भाजपा की हार का बड़ा कारण सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं खोज पाना भी रहा है। राज्य सरकार और उसके कई मंत्रियों से जनता की भारी नाराजगी थी। हालांकि, भाजपा ने कई मंत्रियों और नेताओं के टिकट काटकर इस नाराजगी को शांत करने की कोशिश तो की लेकिन पार्टी सत्ता विरोधी लहर को शांत करने में विफल रही।