बिहार चुनाव में प्रचार के दौरान राजनेताओं द्वारा कई वादे किए जा रहे हैं। चूंकि बिहार में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है, इसलिए तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरियों के वादे की यहां खूब हवा है। तेजस्वी यादव ने वादा किया है कि उनकी सरकार बनने पर पहली कैबिनेट मीटिंग में पहला हस्ताक्षर 10 लाख सरकारी नौकरी देने के आदेश पर करेंगे। तेजस्वी यादव का कहना है कि बजट में 4.5 लाख नौकरियों के पद खाली हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक 5.5 लाख और सरकारी नौकरियां बिहार के विकास के लिए जरुरी हैं। इसलिए अगर इच्छा है तो यह संभव भी है।
तेजस्वी यादव के अनुसार, जो नई 5.5 लाख नौकरियां सृजित की जाएंगी, वो स्वास्थ्य, शिक्षा और पुलिस विभाग समेत अन्य सेवाओं में होंगी। तेजस्वी यादव की जनसभाओं में उमड़ रही भीड़ को देखते हुए एनडीए ने इस वादे पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। बिहार के डिप्टी सीएम और भाजपा नेता सुशील मोदी ने कहा कि 10 लाख सरकारी नौकरी देने का मतलब है कि वार्षिक बजट में 58 हजार करोड़ रुपए का खर्च जोड़ना। उन्होंने कहा कि अगर 1.25 लाख डॉक्टर्स, 2.5 लाख पैरा मेडिकल स्टॉफ को नौकरी दी जाती है तो उनकी सैलरी पर 22,270 करोड़ रुपए खर्च होंगे।
इसी तरह 2.5 लाख टीचर्स की भर्ती पर उनकी सैलरी के लिए 20,352 करोड़ रुपए चाहिए और 95 हजार पुलिस अधिकारियों की भर्ती पर 3604 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे। 75 हजार इंजीनियर्स पर 5780 करोड़ रुपए खर्च होंगे और 2 लाख चपरासियों की भर्ती पर 6406 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। यह कुल मिलाकर हुआ 54,415 करोड़ रुपए।
सुशील मोदी ने सवाल उठाया कि अगर विपक्षी पार्टियां कर्मचारियों की सैलरी देने पर इतना खर्च करेगी तो वह अन्य खर्च जैसे पेंशन, छात्रों को स्कॉलरशिप, साइकिल, यूनिफॉर्म, मिड-डे मील और बिजली आदि के खर्च कहां से करेंगे? सुशील मोदी ने बताया कि बिहार का कुल बजट ही 2.11 लाख करोड़ रुपए का है।
आंकड़ों की बात करें तो देश में मासिक बेरोजगारी की दर लॉकडाउन से पहले मार्च माह में 8.8 प्रतिशत थी। वहीं बिहार में यह आंकड़ा 15.4 फीसदी था। लॉकडाउन में जब देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हुई और उद्योग धंधे बंद हुए तो देश में बेरोजगारी की दर बढ़कर अप्रैल माह में 23.5 फीसदी हो गई थी। बिहार में हालात सबसे ज्यादा बुरे थे और राज्य में बेरोजगारी दर लॉकडाउन के दौरान 46 फीसदी के भी पार चली गई थी।
लॉकडाउन के बाद अब अक्टूबर में देश में बेरोजगारी दर मासिक 7 फीसदी है और बिहार में यह आंकड़ा 9.8 फीसदी है। तिमाही आंकड़ों की बात करें तो यहां भी बिहार का हाल बुरा है। लॉकडाउन से पहले की तिमाही में बिहार में बेरोजगारी 17.2 फीसदी थी, जिनमें पुरुष बेरोजगार 16.3 फीसदी और महिला बेरोजगार 53.3 फीसदी थे।
लॉकडाउन की मई-अगस्त की तिमाही में बिहार में बेरोजगारी दर बढ़कर 23.6 फीसदी हो गई। बिहार में बेरोजगारी की मार शहरी और ग्रामीण इलाकों में लगभग बराबर पड़ी। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी लॉकडाउन के दौरान 23 फीसदी रही, वहीं ग्रामीण इलाकों में 23.7 फीसदी। आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि राष्ट्रीय औसत के मुकाबले बिहार में बेरोजगारी दर हमेशा ही ज्यादा रही है।
तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरी के वादे के जवाब में भाजपा ने भी 19 लाख नौकरियां देने का वादा कर दिया है। हालांकि भाजपा का वादा नौकरी देने का नहीं बल्कि नौकरी पैदा करने का ज्यादा है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का कहना है कि आईटी सेक्टर से राज्य में एक लाख नौकरियां पैदा होगीं और बाकी कृषि वह अन्य क्षेत्र में पैदा होंगी।
राजद नेता शिवानंद तिवारी का कहना है कि तेजस्वी यादव ने ऐसा एजेंडा सेट कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार को भी इसका जवाब देने में परेशानी हो रही है।
राज्य में 4.5 लाख सरकारी पद खाली होने के तेजस्वी के आरोप पर जदयू का कहना है कि करीब 1 लाख रिक्तियां खाली हैं, जिनमें से 75 हजार को भरने के लिए विज्ञापन भी दिया जा चुका है।
कांग्रेस भी नीतीश सरकार पर बेरोजगारी के मुद्दे पर हमलावर है। कांग्रेस का कहना है कि नीतीश सरकार में स्वास्थ्य सेवाएं वेंटिलेटर पर पहुंच गई हैं। राज्य में 60 फीसदी डॉक्टर्स और 71 फीसदी नर्स की कमी है। कांग्रेस का दावा है कि महागठबंधन की सरकार बनने पर ये रिक्तियां ‘लोक सेवा आयोग को बाईपास’ करके भरी जाएंगी। कांग्रेस ने विशेषज्ञ डॉक्टरों को भर्ती करने और बिहार में पीएचसी की संख्या बढ़ाने का भी वादा किया है।