लोकसभा चुनाव से पहले बिहार की राजनीति में इन दिनों चीजें कुछ ठीक नहीं हैं। खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उन्हीं की पार्टी के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के बीच में। हाल ही में इस बात के संकेत जद (यू) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर के एक बयान में देखने को मिले। उन्होंने कहा कि वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ दोबारा गठजोड़ करने के अपनी पार्टी के अध्यक्ष नीतीश कुमार के तरीके से सहमत नहीं हैं। उनके मुताबिक, महागठबंधन से निकलने के बाद भगवा पार्टी नीत राजग में शामिल होने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री को आदर्श रूप से नए सिरे से जनादेश हासिल करना चाहिए था।
चुनावी रणनीतिकार से नेता बने किशोर ने एक समाचार पोर्टल के साथ साक्षात्कार में यह बात कही। पोर्टल ने गुरुवार को एक घंटे से अधिक का वीडियो अपलोड किया। किशोर के बयान से उनकी अपनी ही पार्टी में नाराजगी है क्योंकि यह साक्षात्कार शुक्रवार को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। बहरहाल, साक्षात्कार में किशोर ने इस बात को रेखांकित किया कि नेताओं का पाला बदलना कोई नयी बात नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘आप चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक और द्रमुक जैसी पार्टियों को देखें। पीछे की ओर देखें तो हमारे पास वी पी सिंह सरकार का भी उदाहरण है। इसे भाजपा और वाम दलों दोनों ने समर्थन दिया था।’’ किशोर बोले- महागठबंधन से जुलाई 2017 में अलग होने का नीतीश का फैसला सही था या नहीं इसे मापने का कोई पैमाना नहीं है। महागठबंधन में राजद और कांग्रेस भी शामिल थी।
उन्होंने कहा, ‘‘जो लोग उनमें (नीतीश) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने की संभावना देखते थे, वे इस कदम से निराश हुए। लेकिन जिन लोगों की यह राय थी कि उन्होंने मोदी से मुकाबला करने के उत्साह में शासन से समझौता करना शुरू कर दिया, वो सही महसूस करेंगे।’’ उस प्रकरण पर टिप्पणी करने को कहे जाने पर किशोर ने कहा, ‘‘बिहार के हितों को ध्यान में रखते हुए मेरा मानना है कि यह सही था। लेकिन जो तरीका अपनाया गया उससे मैं सहमत नहीं हूं। मैंने ऐसा पहले भी कहा है और मेरी अब भी यह राय है कि भाजपा नीत गठबंधन में लौटने का फैसला करने पर उन्हें आदर्श रूप में नया जनादेश हासिल करना चाहिये था।’’
किशोर ने 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम किया था। उस चुनाव में नीतीश महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे। राजद प्रमुख लालू प्रसाद के छोटे बेटे और राज्य के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों ने नीतीश को असहज किया और उन्होंने आखिरकार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया। लेकिप नाटकीय घटनाक्रम में भाजपा के समर्थन कर देने से उन्होंने 24 घंटे के भीतर फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली।