लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी एकजुटता की कवायद तेज हो गई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार विपक्ष के बड़े नेताओं से मिल एक सियासी गठबंधन तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ कुछ दल थर्ड फ्रंट को भी हवा दे रहे हैं जिसमें बिना कांग्रेस के ही विपक्षी एकता की कल्पना की जा रही है। ऐसा ही एक दल मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव का BRS भी रहा है जिसने लंबे समय तक थर्ड फ्रंट बनाने की पैरवी की है। लेकिन अब चंद्रशेखर की पार्टी कुछ नरम पड़ी है। वो 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस से हाथ मिला सकती है। सूत्रों के हवाले से पता चला है कि पार्टी के अंदर इस बात को लेकर चर्चा तेज हुई है कि विपक्षी एकजुटता में कांग्रेस को भी शामिल किया जाए।
बिना राहुल गांधी वाली विपक्षी एकता कांग्रेस को स्वीकार?
पार्टी के ही एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि अगर कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टियों को उचित सम्मान देना शुरू कर दे, अगर उसकी तरफ से उन्हें भी सम्मानजनक सीटें दी जाएं, तो बात बन सकती है। वो नेता कहते हैं कि हम बस इतना कह रहे हैं कि कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें मिलनी चाहिएं, जहां वो मजबूत है, उसे लड़ना चाहिए। लेकिन जहां दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हैं, कांग्रेस को उनके लिए जगह छोड़नी चाहिए। इसी तरह से विपक्षी एकता संभव भी है और ज्यादा शक्तिशाली भी रहेगी। बड़ी बात ये है कि इस विपक्षी एकता में भी BRS की तरफ से एक शर्त रख दी गई है। वो शर्त कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लेकर है।
क्या मोदी बनाम राहुल नेरेटिव से विपक्ष को नुकसान?
असल में बीआरएस नहीं चाहती कि 2019 की तरह फिर 2024 में भी मोदी बनाम राहुल गांधी का मुकाबला बन जाए। तर्क दिया गया है कि जब भी ऐसा नेरेटिव सेट हुआ है, विपक्ष को नुकसान ही झेलना पड़ा है और पिछले लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही हुआ था। BRS नेता ने कहा कि हम उस स्थिति से बिल्कुल भी सहज नहीं है जहां पर मुकाबला मोदी बनाम राहुल गांधी का बना दिया जाए। उस स्थिति में विपक्ष का हारना तय है। विपक्ष के ही कई नेता हैं, फिर चाहे नीतीश कुमार रहें या फिर हों ममता बनर्जी, उनके पास सरकार चलाने का अनुभव है, राहुल गांधी ने क्या हासिल किया है? वे तो अभी औपचारिक तौर पर अपनी पार्टी के भी नेता नहीं हैं।
क्यों हो रहा KCR का हृदय परिवर्तन?
अब एक सवाल उठता है कि आखिर अचानक से केसीआर की पार्टी का स्टैंड कांग्रेस को लेकर इतना क्यों बदल गया, क्यों अब फिर कांग्रेस से हाथ मिलाने की बात होने लगी। इस सवाल के जवाब में बीआरएस नेता साफ कहते हैं कि इस समय सेंट्रल एजेंसियों द्वारा विपक्ष की आवाज को दबाने का काम किया जा रहा है, ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही हम पाकिस्तान बन जाएंगे। पहले जब इमरान सत्ता में थे तो विपक्ष के नेता विदेश भागते थे, अब किसी और की सरकार आ गई है तो इमरान भाग रहे हैं। अभी देश में स्थिति काफी मुश्किल है और सभी का साथ आना जरूरी है। इस समय आपसी मतभेदों को भुलाकर बीजेपी को हराने के लिए, देश बचाने के लिए साथ आना होगा।
विचारधारा में फर्क, तेलंगाना में आमने-सामने, कैसे मिलेंगे दिल?
वैसे केसीआर की पार्टी कांग्रेस से हाथ तो मिलाना चाहती है, लेकिन वो उसे उसकी सियासी स्थिति का भी पूरा आईना दिखा रही है। बिहार के ही पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर कहा गया है कि तब आरजेडी द्वारा कांग्रेस को कई सीटें दी गई थीं, लेकिन पार्टी कई सीटों पर हार गई और इसका नुकसान तब पूरे गठबंधन को उठाना पड़ा। यहां ये समझना जरूरी है कि इस समय केसीआर की पार्टी और कांग्रेस की विचारधारा में भी अंतर देखने को मिल रहा है।इस बारे में BRS नेता जोर देकर कहते है कि राहुल गांधी सिर्फ अडानी मुद्दे को उठा रहे हैं, जबकि हमारे लिए वो सिर्फ कई मुद्दों का ही एक हिस्सा है। हमे इस सरकार को पूरी तरह एक्सपोज करने की जरूरत है। जनता को बताना पड़ेगा कि जो भी वादे किए गए, वो पूरे नहीं हुए।
वैसे केसीआर उस समय कांग्रेस से हाथ मिलाने की बात कर रहे हैं जब अभी तेलंगाना में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। बड़ी बात ये है कि उस चुनाव में दोनों कांग्रेस और BRS एक दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं। राहुल गांधी तो एक रैली के दौरान BRS पर नाम बदलने को लेकर तंज भी कस चुके हैं। ऐसे में राज्य में बने सियासी दुश्मन कैसे लोकसभा चुनाव के दौरान साथी बन जाते हैं, ये देखना दिलचस्प रहेगा।