यूपी में 69 हजार शिक्षकों भर्ती की पूरी लिस्ट रद्द कर दी गई है। यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने दिया है। मामला आरक्षण में हुए भ्रष्टाचार को लेकर है। जिसमें हाईकोर्ट की डबल बेंच ने फैसला सुनाते हुए 2019 की 1 जून 2020 को जारी पूरी मेरिट सूची को ही रद्द कर दिया।

कोर्ट ने मामले में 13 मार्च 2023 के एकल पीठ के आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि सामान्य श्रेणी के लिए निर्धारित मेरिट में आने पर आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी को सामान्य श्रेणी में ही माइग्रेट किया जाएगा।

यह फैसला न्यायमूर्ति एआर मसूदी औऱ न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने महेंद्र पाल समेत 90 विशेष अपीलों पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया।

इसके साथ ही कोर्ट ने यूपी सरकार को आदेश दिया कि तीन महीने के भीतर नई मेरिट लिस्ट बनाई जाए। नई मेरिट लिस्ट में बेसिक शिक्षा नियमावली और आरक्षण नियमावली का पालन होना चाहिए। दरअसल, कैंडिडेट्स ने पूरी भर्ती पर सवाल उठाया था और कहा था कि 19 हजार शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण घोटाला हुआ है।

क्या है पूरा मामला?

अखिलेश यादव सरकार के राज्य में 1.72 लाख शिक्षामित्रों को सहायक शिक्षक के रूप में समायोजित किया गया था। इसे हाईकोर्ट ने कैंसिल कर दिया था। इसके बाद कोर्ट ने नए सिरे से सहायक शिक्षकों की भर्ती करने का आदेश दिया था। इसके बाद 68,500 सहायक शिक्षकों की भर्ती हुई थी। इस भर्ती पर भी सवाल उठे और जब सीबीआई ने मामले की जांच भी की।

कब हुई थी शिक्षकों की भर्ती?

यूपी सरकार ने 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती के लिए दिसंबर 2018 में विज्ञापन निकाला थी। जिसके लिए जनवरी 2019 में परीक्षा का आयोजन किया गया था। इस परीक्षा भर्ती में 4 लाख 10 हजार उम्मीदवारों ने भाग लिया था। जिसमें से लाख 40 हजार कैंडिडेट्स सफल भी हुए थे। इसके बाद जब मेरिट लिस्ट निकाली गई तो नया बखेड़ा खड़ा हो गया। जिन कैंडिडेट्स को उम्मीद था कि उनका सेलेक्शन हो जाएगा, वे खाली हाथ रह गए थे।

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