लंबे समय से COVID-19 महामारी के बीच अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के आयोजन के खिलाफ छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अपनी ओर से परीक्षाएं आयोजित कराने को लेकर पूरा जोर लगा रही है। यूजीसी ने परीक्षा रद्द करने के बजाए दो सप्ताह पहले संशोधित परीक्षा दिशानिर्देश जारी करके जवाब दिया है। अब यूजीसी ने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) को बताया है कि 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश ‘छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा’ के लिए जारी किया गया था। यूजीसी की ओर से कहा गया है कि, सभी विश्वविद्यालय / संस्थान ‘सितंबर 2020 के अंत तक टर्मिनल सेमेस्टर / अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए बाध्य हैं।’
UGC Exam Guidelines 2020: Check Here Live Updates
यूजीसी का कहना है कि महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे राज्य अगर ‘यूजी / पीजी छात्रों की या ग्रेजुएशन करने के लिए’ ‘परीक्षाएं रद्द’ करने का फैसला लेते हैं तो उन्हें ‘अंतिम वर्ष / टर्मिनल सेमेस्टर परीक्षाओं में बैठे बिना डिग्री प्रदान करना स्पष्ट रूप से यूजीसी दिशानिर्देशों के विपरीत है।’ यूजीसी ने 30 सिंतबर तक फाइनल ईयर के एग्जाम कराने के लिए उन संशोधित दिशानिर्देशों को हवाला भी दिया है जिनमें कहा गया था कि जो छात्र कोरोनावायरस महामारी के कारण इन परीक्षाओं में शामिल नहीं हो सकते हैं उनके लिए स्थिति सामान्य होने पर बाद में ‘विशेष परीक्षा’ का आयोजन किया जा सकता है।
All universities/institutions “obligated to conduct terminal semester/ final year exam by the end of September 2020”, UGC tells Supreme Court. Adds its revised guidelines provide for “special examination…as and when feasible” for students who can’t appear. @IndianExpress
— Ananthakrishnan G (@axidentaljourno) July 30, 2020
बता दें कि, गृह मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आदेशों के अनुसार यूजीसी द्वारा प्रदान किए गए संशोधित परीक्षा दिशानिर्देशों के अनुसार, अंतिम वर्ष के विश्वविद्यालय परीक्षाएं पूरे भारत में अनिवार्य हैं। परीक्षाओं को ऑनलाइन, ऑफलाइन या मिश्रित मोड में सितंबर के अंत तक आयोजित करने जरूरी है।
Sarkari Naukri 2020: Check Sarkari Jobs Notification Here
गृह मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आदेशों के अनुसार, 6 जुलाई को यूजीसी द्वारा प्रदान किए गए संशोधित परीक्षा दिशानिर्देशों के अनुसार, अंतिम वर्ष के विश्वविद्यालय परीक्षाओं को ऑनलाइन, ऑफलाइन या मिश्रित मोड में पूरे भारत में सितंबर के अंत तक आयोजित करने की आवश्यकता है।
मामले में मुख्य याचिका अनुभा श्रीवास्तव सहाय द्वारा दायर की गई थी और वकील अलख आलोक श्रीवास्तव द्वारा बहस की गई थी, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी अंतिम वर्ष के कानून मंत्री यश दुबे के लिए पेश हुए थे।
वहीं यूजीसी ने सूचित किया था कि जो छात्र सितंबर-अंत तक अंतिम-वर्ष और अंतिम-सेमेस्टर परीक्षाओं में उपस्थित नहीं हो सकते हैं। उन छात्रों के लिए विश्वविद्यालयों को "जब संभव हो विशेष परीक्षा" आयोजित करने की अनुमति है।
उच्चतम न्यायालय ने यूजीसी के दिशानिर्देशों को चुनौती देते हुए दलीलों के एक नए बैच को सुना, जिसे 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा के लिए अनिवार्य कर दिया। गुरुवार को, यूजीसी ने शीर्ष अदालत को बताया था कि वह अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को अनिवार्य बनाने वाले अपने 6 जुलाई के दिशानिर्देशों को नहीं बदलेगा।
इंडियाटुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई में गैर-सरकारी कॉलेजों के एसोसिएशन ने का यह भी कहना है कि मुंबई विश्वविद्यालय के कुलपति ने उनके साथ न तो कोई बैठक की है और न ही इस संबंध में कोई राय मांगी है।
मुंबई में गैर-सरकारी कॉलेजों के एसोसिएशन ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को पत्र लिखकर कोविड -19 संकट के मद्देनजर टर्मिनल और अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने में असमर्थता व्यक्त की है।
यूजीसी ने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) को बताया है कि 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश 'छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा' के लिए जारी किया गया था।
याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कई विश्वविद्यालयों के पास तो परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित करने के लिए आवश्यक आईटी इंफ्रास्ट्रक्टर ही नहीं है। साथ ही, भौतिक रूप से परीक्षाएं कोविड-19 के कारण आयोजित नहीं की जा सकती हैं।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का समर्थन किया है क्योंकि यह महसूस किया कि सीखने की एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है।
याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। यूजीसी ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाओं के आयोजन के निर्देश दिये थे, वहीं 6 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये थे।
इस समय करीब 390 विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं। मेहता ने कहा, ‘किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि चूंकि यह न्यायालय इस मामले पर विचार कर रहा है तो इसे पर रोक लगा दी जायेगी। छात्रों को अपनी पढ़ाई जारी रखनी चाहिए।’
केंद्र और यूजीसी की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को सूचित किया कि गृह मंत्रालय के दृष्टिकोण से वह न्यायालय को अवगत कराएंगे। मेहता ने कहा कि वे अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को लेकर चिंतित है क्योंकि देश में आठ सौ से ज्यादा विश्वविद्यालयों में से 209 ने परीक्षा प्रक्रिया पूरी कर ली है।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए सुनवाई के दौरान कहा कि वह इस विषय पर कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं कर रहे हैं। इसके साथ ही पीठ ने इस मामले को 10 अगस्त के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
यूजीसी ने शीर्ष अदालत से कहा कि किसी को भी इस गफलत में नहीं रहना चाहिए कि उच्चतम न्यायालय इस मसले पर विचार कर रहा है, तो अंतिम साल और सेमेस्टर की परीक्षा पर रोक लग जाएगी।
उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी के बीच अंतिम वर्ष की परीक्षाएं सितंबर में कराने सबंधी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दिशा-निर्देश रद्द करने के लिए दायर याचिका पर कोई भी अंतरिम आदेश देने से इनकार कर दिया।
याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कई विश्वविद्यालयों के पास तो परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित करने के लिए आवश्यक आईटी इंफ्रास्ट्रक्टर ही नहीं है। साथ ही, भौतिक रूप से परीक्षाएं कोविड-19 के कारण आयोजित नहीं की जा सकती हैं।
सितंबर के अंत तक देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा (Final Year Exams) करवाने के यूजीसी (UGC) के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज फिर से सुनवाई हुई. याचिकर्ता की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट से कहा कि अप्रैल के महीने में जारी हुई गाइडलाइन्स को यूजीसी (UGC) ने जुलाई के महीने में बदल दिया है. इस पर कोर्ट ने कहा कि यूजीसी को ऐसा करने का अधिकार है और वो ऐसा कर सकते हैं।
दायर याचिकाओं में कोरोना को लेकर छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनजर परीक्षा आयोजित ना करवाने की मांग की गई है। याचिकाओं में 6 जुलाई को जारी किए गए यूजीसी के दिशानिर्देशों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निर्देश जारी करने की मांग की गई है।
यूजीसी ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया। जिसमें कहा गया कि फाइनल ईयर की परीक्षाएं 30 सितंबर तक आयोजित करवाने का मकसद छात्रों का भविष्य संभालना है ताकि छात्रों की अगले साल की पढ़ाई में देरी ना हो। देशभर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने UGC को जवाब देने के लिए कहा था।
वकील ने कहा कि लेकिन बहुत से लोग स्थानीय हालात या बीमारी के चलते ऑफलाइन परीक्षा नहीं दे पाएंगे। फिर कोर्ट ने कहा कि उन्हें बाद में परीक्षा देने का विकल्प देने से और भ्रम फैलेगा लेकिन ये तो छात्रों के हित में नजर आता है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट कमेटी की तरफ से लिए गए फैसले की कॉपी रिकॉर्ड पर रखने को कहा है।
सुनवाई में वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बहुत से विश्विद्यालयों में ऑनलाइन परीक्षा के लिए जरूरी सुविधाएं नहीं हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऑफलाइन का भी विकल्प है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से संबंधित देशभर के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में फाइनल ईयर की परीक्षाएं 30 सितंबर तक आयोजित करवाने के मामले में सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 10 अगस्त के लिए टाल दी। यूजीसी ने कहा कि किसी को भी इस धारणा में नहीं रहना चाहिए कि ये मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है इसीलिए कोर्ट ने परीक्षा रोक दी है. छात्रों को अपनी पढ़ाई की तैयारी जारी रखनी चाहिए।
याचिकर्ताओं में COVID-19 पॉजिटिव का एक छात्र भी शामिल है। छात्र ने कहा, "ऐसे कई अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जो या तो खुद या उनके परिवार के सदस्य COVID-19 पॉजिटिव हैं। ऐसे छात्रों को 30 सितंबर, 2020 तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना, अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है."
फाइनल ईयर की परीक्षाओं को लेकर यूजीसी की गाइडलाइंस के आने के बाद से लगातार इसका विरोध हो रहा है। छात्र सोशल मीडिया पर फाइनल ईयर की परीक्षाओं का लगातार विरोध करते आ रहे हैं। इसके अलावा, कई नेता और अभिभावक भी यूजीसी के फैसले का विरोध कर रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार को पत्र लिखकर परीक्षा रद्द करने की मांग कर चुके हैं। साथ ही कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भी परीक्षा का विरोध किया है।
यूजीसी ने फाइनल ईयर की परीक्षाओं के आयोजन का समर्थन किया है क्योंकि यह महसूस किया कि सीखने की एक गतिशील प्रक्रिया है और परीक्षा के माध्यम से किसी के ज्ञान को आंकने का एकमात्र तरीका है। सुप्रीम कोर्ट आज इस मामले की सुनवाई करने वाला है।
याचिकाकर्ता छात्र आंतरिक अंक और पिछले मूल्यांकन के आधार पर परीक्षाओं को रद्द करने और डिग्री और मार्कशीट जारी करने की मांग कर रहे हैं।
याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। यूजीसी ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाओं के आयोजन के निर्देश दिये थे, वहीं 6 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये थे।
याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा कि कई विश्वविद्यालयों के पास तो परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित करने के लिए आवश्यक आईटी इंफ्रास्ट्रक्टर ही नहीं है। साथ ही, भौतिक रूप से परीक्षाएं कोविड-19 के कारण आयोजित नहीं की जा सकती हैं।
अंतिम वर्ष की परीक्षाओं की अनिवार्यता को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई 10 अगस्त 2020 तक के लिए टाल दी गयी है। सॉलिसिटर जरनल तुषार मेहता को कहा गया है कि गृह मंत्रालय का पक्ष स्पष्ट करें। इसके लिए 7 अगस्त तक एफिडेविट सबमिट करनी है।
पिछली सुनवाई में देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने UGC को परीक्षा रद्द करने/ स्थगित करने पर जवाब देने के लिए कहा था. UGC ने कोर्ट में कहा था कि अधिकांश जगह परीक्षाएं हो चुकी हैं या होने वाली हैं.
पिछली सुनवाई में देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने UGC को परीक्षा रद्द करने/ स्थगित करने पर जवाब देने के लिए कहा था. UGC ने कोर्ट में कहा था कि अधिकांश जगह परीक्षाएं हो चुकी हैं या होने वाली हैं.
आयोग का कहना है कि फाइनल ईयर के एग्जाम बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। कॉलेज या यूनिवर्सिटी अपनी सुविधा के आधार पर ऑनलाइन या ऑफलाइन किसी भी माध्यम में परीक्षा आयोजित कर सकते हैं।
सिंघवी ने कहा कि बहुत से लोग स्थानीय हालात या बीमारी के चलते ऑफलाइन परीक्षा नहीं दे पाएंगे। उन्हें बाद में परीक्षा देने का विकल्प देने से और भ्रम फैलेगा। सिंघवी की इस दलील पर कोर्ट ने कहा कि ये फैसला तो छात्रों के हित में ही दिखाई दे रहा है। फाइनल ईयर की परीक्षाओं पर अब सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 10 अगस्त तक के लिए टाल दी है।
यूजीसी ने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) को बताया है कि 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश 'छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा' के लिए जारी किया गया था।
याचिकर्ताओं में COVID-19 पॉजिटिव का एक छात्र भी शामिल है। छात्र ने कहा, "ऐसे कई अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जो या तो खुद या उनके परिवार के सदस्य COVID-19 पॉजिटिव हैं। ऐसे छात्रों को 30 सितंबर, 2020 तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना, अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है."
याचिकाओं में 6 जुलाई को जारी किए गए यूजीसी के दिशा निर्देशों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निर्देश जारी करने की मांग की गई. 6 जुलाई को जारी हुए यूजीसी ( UGC)) के दिशानिर्देशों में सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश दिया गया था।
ॉसुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कोरोना को लेकर छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनजर परीक्षा आयोजित न करने की अपील की गई है. युवा सेना की तरफ से कहा गया है कि देश में कोरोना के कारण स्थिति बिगड़ रही है और यह परीक्षा आयोजित करने के लिए अनुकूल नहीं है.
पिछली सुनवाई में देश भर के विश्वविद्यालयों में फाइनल ईयर परीक्षा करवाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने UGC को परीक्षा रद्द करने/ स्थगित करने पर जवाब देने के लिए कहा था. UGC ने कोर्ट में कहा था कि अधिकांश जगह परीक्षाएं हो चुकी हैं या होने वाली हैं.
UGC ने कोर्ट से सभी याचिकाओं को खारिज करने की मांग हलफनामा में की थी. UGC ने कहा था कि टर्मिनल परीक्षा का आयोजन एक "समय-संवेदनशील" मुद्दा है और HRD के दिशा- निर्देशों का पालन करके विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श के बाद ये परीक्षाएं कराने निर्णय लिया गया था.
टर्मिनल वर्ष के दौरान अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए परीक्षाएं आयोजित कर के उनके द्वारा अध्ययन किए गए "विशेष इलेक्टिव पाठ्यक्रमों” का परीक्षण करना आवश्यक है. यूजीसी ने अपने जवाब में याचिकर्ताओं और विभिन्न राज्य सरकार की चिंताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित किया था।