विश्व प्रसिद्ध भारत के महान अध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद की आज जयंती है। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। उनकी जयंती को भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। साल 1984 में भारत सरकार की ओर से इसकी घोषणा की गई थी। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उन्होंने पढ़ाई-लिखाई के साथ अध्यात्म में भी उच्च दीक्षा हासिल की और भारतीय संस्कृति के परचम को वैश्विक पटल पर लाने का काम किया। उन्होंने साल 1893 में शिकागो में आयोजित हुई विश्व धर्म संसद में दमदार भाषण दिया था जिसके बाद उन्हें पूरी दुनिया जानने लगी थी।

कलकत्ता में हुई स्कूलिंग

इस आर्टिकल में हम स्वामी विवेकानंद जी की एजुकेशन के बारे में जानेंगे। कलकत्ता में जन्म के बाद उनकी स्कूलिंग वहीं से हुई थी। स्वामी विवेकानंद जब 8 साल के थे तब उनका एडमिशन कलकत्ता में स्कूल ईश्वरचंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन में हुआ था। इस स्कूल में स्वामी विवेकानंद ने 1877 तक पढ़ाई की थी। इसके बाद उनका परिवार मध्य प्रदेश के रायपुर (आज यह रायपुर छत्तीसगढ़ में है) आ गया।

स्वामी विवेकानंद रायपुर में नहीं पढ़ पाए

रायपुर शिफ्ट होने के बाद विवेकानंद जी की पढ़ाई बंद हो गई। बताया जाता है कि रायपुर जैसे रिमोट इलाके में उनके घर के आसपास कोई स्कूल नहीं था तो नरेंद्र नाथ दत्त उस समय पढ़ने नहीं जाते थे लेकिन कई पढ़े-लिखे लोगों के घर उनका आना-जाना था, जिनकी उनकी खूब बातें होती थीं। कलकत्ता से स्कूलिंग करने के बाद स्वामी विवेकानंद अपनी शिक्षा को तर्कवाद, ईसाई धर्म और विज्ञान जैसी अवधारणाओं से अवगत कराया गया। इस समय तक, सामाजिक परिवर्तन विवेकानंद के दर्शन का केंद्र बन चुका था और वे ब्रह्मो समाज (ब्रह्मा का समाज) में शामिल हो गए थे, जो बाल विवाह और निरक्षरता को समाप्त करने और महिलाओं और निचली जातियों के सदस्यों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए काम करता था।

कलकत्ता से पूरी हुई आगे की पढ़ाई

स्वामी विवेकानंद की एक बायोग्राफी में कहा गया है कि नरेंद्र नाथ दत्त अपने परिवार के साथ साल 1879 में कलकत्ता लौट आए थे। उसके बाद उन्होंने अपने पुराने स्कूल मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन में एडमिशन लिया। यहीं से उन्होंने हाईस्कूल फर्स्ट डिवीजन में पास की। इसके बाद उन्होंने कलकत्ता के ही प्रेसिडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया। उन्होंने यहां से एक साल बाद ही पढ़ाई छोड़ दी। फिर उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला लिया। यहां से उन्होंने फिलॉस्फी की पढ़ाई की। साल 1881 में उन्होंने FA पास की। साल 1885 में इसी कॉलेज से बीए की डिग्री पूरी की।

कैसे बने अध्यात्मिक गुरु?

स्वामी विवेकानंद ने पढ़ाई पूरी करने के बाद सभी धर्मों की अंतर्निहित एकता को करीब से समझने लगे। विवेकानंद के गुरू रामकृष्ण परमहंस थे। पहली बार दोनों की मुलाकात साल 1881 में कलकत्ता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर में हुई थी। इस मंदिर में रामकृष्ण परमहंस माता काली की पूजा किया करते थे। रामकृष्ण परमहंस से स्वामी विवेकानंद ने सवाल किया कि क्या आपने भगवान को देखा है? तब परमहंस ने इसका हंसते हुए जवाब दिया कि हां मैंने देखा है। मैं भगवान को उतना ही साफ देख रहा हूं जितने कि तुम्हें देख सकता हूं। फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें तुमसे ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं। रामकृष्ण परमहंस से प्रभावित होकर मात्र 25 वर्ष की आयु में उन्होंने सबकुछ त्याग दिया और सन्यासी बन गए।

इसके बाद स्वामी विवेकानंद धीरे-धीरे धार्मिक कार्यों में अधिक शामिल होने लगे। अध्यात्मिक गुरु के रूप में स्वामी को पहचान शिकागो में हुए धर्म सम्मेलन से मिली। इस कार्यक्रम में उनके भाषण ने पूरी दुनिया को अपना कायल बना दिया। उन्होंने इस कार्यक्रम में साधारण कपड़े पहनकर सभी को तालियां बनाने के लिए मजबूर कर दिया था।

राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने के पीछे का क्या है इतिहास?

राष्ट्रीय युवा दिवस को स्वामी विवेकानंद जी के जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का खास उद्देश्य यही है कि स्वामी विवेकानन्द जी के विचार और उनके कार्यों को युवाओं के बीच पहुंचाया जाए। देश का युवा उनके बारे में जाने और उनके बारे में पढ़े। इस दिन देशभर में स्कूल, विद्यालयों, कॉलेज सहित विभिन्न संस्थानों में कई कार्यक्रम, भाषण प्रतियोगिता आदि का आयोजन होता है। इसके साथ ही इस दिन शहरों में रैलियां आदि भी निकाली जाती हैं ताकी ज्यादा से ज्यादा विवेकानंद के विचारों को युवाओं तक पहुंचाया जा सके।

स्वामी विवेकानंद को अपनी मृत्यु का पहले से पता था!

स्वामी विवेकानंद को पहले से इस बात का अनुमान था कि उनका निधन 40 साल की आयु से ही पहले हो जाएगा। परिणामस्वरूप 4 जुलाई, 1902 को ध्यान करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी। बताया जाता है कि वे महासमाधि पर पहुंच गए थे और गंगा के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया था।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं ने न केवल युवाओं को बल्कि पूरे विश्व को प्रेरित किया। उन्होंने भारत की राष्ट्रीय एकता की सच्ची नींव रखी। उन्होंने हमें दिखाया कि इतने सारे मतभेदों के बावजूद कैसे सह-अस्तित्व में रहा जाए। वे पूर्वी और पश्चिमी संस्कृतियों के बीच एक आभासी पुल बनाने में प्रभावी थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति को बड़े पैमाने पर दुनिया से अलग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।