हालांकि करिअर के शुरुआती पड़ाव पर विद्यार्थियों के मन में यह दुविधा कहीं न कहीं अवश्य रहती है कि उसे चिकित्सा के क्षेत्र में जाना चाहिए या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में। एक डेढ़ दशक के दौरान उभरे एक नए क्षेत्र ने विद्यार्थियों की इस दुविधा को काफी हद तक कम कर दिया है।

इसका नाम है बायोटेक्नोलाजी। बायोटेक्नोलाजी यानी चिकित्सा और इंजीनियरिंग का मिश्रण। यह विद्यार्थियों को जहां जीव और वनस्पति विज्ञान की रोमांचकारी दुनिया में भ्रमण कराता है। वहीं, तकनीकी और प्रौद्योगिकी की नित्य बदलती दुनिया उसे हमेशा नया करने का अवसर प्रदान करती है। जीव विज्ञान और प्रगतिशील प्रौद्योगिकी का यह मेल अनुवांशिक अभियांत्रिकी के रूप में एक ऐसे विभाग का सृजन करता है जो सजीव प्राणियों के डीएनए कोड में मौजूद अनुवांशिकी को अत्याधुनिक तकनीक के जरिए परिवर्तित कर संभावित बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाता है।

अनुवांशिक अभियांत्रिकी क्या है

अनुवांशिक अभियांत्रिकी मुख्यत: शोध आधारित क्षेत्र है, जिसका इस्तेमाल चिकित्सा, पर्यावरण और कृषि के क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर किया जाता है। अनुवांशिक तकनीक के जरिए जीन में परिवर्तन कर पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं और इंसानों में बीमारियों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित की जाती है। अनुवांशिक रूप से परिष्कृत (जीएम) फसलों की खेती को दुनिया भर में बढ़ावा दिए जाने के कारण इस क्षेत्र में रोजगार के असीमित अवसर पैदा हुए हैं।

इस तकनीक के जरिए फसलों में ऐसे गुणों को विकसित किया जाता है जो उन्हें ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के दुष्प्रभावों को झेलने और कीटाणुओं व कीट पतंगों के हमलों को झेलने में सक्षम बनाते हैं। इस तकनीक के कारण पौधे बाढ़ और सूखे की मार को झेलने में सक्षम हो जाते हैं। इसके अलावा उनमें वांछित पोषक तत्वों की मात्रा को भी बढ़ाया और अवांछित तत्वों को कम भी किया जा सकता है। कृत्रिम तकनीक की मदद से डीएनए संरचना और डीएनए के प्रत्यारोपण से नई किस्मों या नई प्रजातियों का विकास भी किया जाता है।

अनुवांशिक अभियंता

हाल के समय में अनुवांशिक अभियंताओं की मांग भारत सहित पूरे विश्व में भी तेजी से बढ़ी है। रोजगार के अवसर मुख्य रूप से चिकित्सा, फार्मास्युटिकल, कृषि, निजी व सरकारी शोध और विकास केंद्र में होते हैं। इसके अलावा बायोटेक प्रयोगशालाओं में शोध, ऊर्जा एवं पर्यावरण उद्योग, पशुपालन, डेयरी, खेती आदि के क्षेत्र में भी रोजगार के भरपूर अवसर पैदा हुए हैं। विभिन्न कालेजों और विश्वविद्यालयों में अनुवांशिक अभियांत्रिकी का पाठ्यक्रम शुरू होने के कारण शिक्षण व प्रशिक्षण के क्षेत्र में भी अनंत संभावनाओं के द्वार खुले हैं।

इस क्षेत्र में करिअर कैसे बनाएं

अनुवांशिक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए अनुवांशिकी या इससे जुड़े क्षेत्रों जैसे- बायोटेक्नोलाजी, माइक्रोबायोलाजी, मालीक्युलर बायोलाजी आदि विषय में स्नातक, स्नातकोत्तर उपाधि आवश्यक होती है। बायोटेक्नोलाजी में स्नातक या स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान अनुवांशिकी में विशेषज्ञता हासिल की जा सकती है। इसके अलावा विद्यार्थी स्नातक स्तर पर बीई (अनुवांशिक प्रौद्योगिकी, बीटेक (अनुवांशिक प्रौद्योगिकी) और बीएससी (अनुवांशिक प्रौद्योगिकी) पाठ्यक्रम कर सकते हैं।

इसी तरह स्नातकोत्तर स्तर पर एमई (अनुवांशिक प्रौद्योगिकी), एमटेक (अनुवांशिक प्रौद्योगिकी) और एमएससी (अनुवांशिक प्रौद्योगिकी) कर सकते हैं। विद्यार्थी नैदानिक अनुवांशिकी, अनुवांशिक प्रमेय, आणविक अनुवांशिकी और क्लासिकल अनुवांशिकी में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं।

योग्यता

स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए उम्मीदवार का विज्ञान विषय से बारहवीं पास होना जरूरी है। देश के ज्यादातर कालेज और विश्वविद्यालय संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) मुख्य के आधार पर दाखिला देते हैं। वहीं, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए मान्यता प्राप्त संस्थान से अनुवांशिक अभियांत्रिकी में स्नातक डिग्री आवश्यक होती है। अधिकांश कालेज ‘गेट’ स्कोर के आधार पर दाखिला देते हैं। कुछ विश्वविद्यालय और कालेज बीटेक, एमटेक इंटीग्रेटेड पाठ्यक्रम में प्रवेश का मौका देते हैं।

यहां से करें पढ़ाई

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली,अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास,भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर,डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एवं निदान केंद्र, हैदराबाद,पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना,भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गुवाहाटी, राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, बिहार, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी।

  • अविनाश चंद्रा (लोकनीति के जानकार)