केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद (सीबीएसई) की परीक्षा में बीते कुछ वर्षाें में काफी बदलाव देखने को मिले। अब सीबीएसई ने ‘ओपन बुक परीक्षा’ को अपनाने की पेशकश की है। ज्यादातर विद्यार्थियों के लिए यह प्रक्रिया बिलकुल नई है और उन्हें इसके बारे में कुछ भी नहीं पता है। कई देशों में 18वीं सदी में ही ‘ओपन बुक परीक्षा’ की शुरुआत हो गई थी।

‘ओपन बुक परीक्षा’ को उसके नाम से ही समझा जा सकता है। इसका साफ मतलब है कि इस प्रक्रिया में विद्यार्थी किताबें खोलकर परीक्षा दे सकते हैं। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के इस एलान के बाद से विद्यार्थी काफी खुश हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल में इसका मतलब क्या है? क्या पूरे पेपर में आप किताबें खोलकर जवाब ढूंढ सकते हैं?

योजना के बारे में जानें

सीबीएसई ने 9वीं से 12वीं कक्षा के लिए ये ‘ओपन बुक परीक्षा’ की योजना बनाई है। इस परीक्षा का आयोजन नवंबर-दिसंबर में कुछ चुनिंदा स्कूलों में किया जाएगा। 9वीं और 10वीं कक्षा के लिए ये परीक्षा अंग्रेजी, गणित और विज्ञान जैसे विषयों के लिए होगी। वहीं 11वीं और 12वीं कक्षा के लिए ये अंग्रेजी, गणित और जीवविज्ञान के लिए होगी। इसके लिए सीबीएसई ने दिल्ली विश्वविद्यालय की मदद मांगी है। ओपन बुक परीक्षा में विद्यार्थियों को प्रश्नों के उत्तर देने के लिए अपनी पुस्तकों और नोट्स का उल्लेख करने की अनुमति होती है।

हूबहू लिखने पर नहीं मिलेंगे अंक

‘ओपन बुक परीक्षा’ में नोट्स से शिक्षक के लिखाए गए पैराग्राफ को ज्यों का त्यों लिखने या किसी भी अध्ययन सामग्री से जवाब हूबहू लिखने के अंक नहीं मिलते हैं। इसमें विद्यार्थी को तब अंक मिलते हैं, जब वह उन नोट्स या अध्ययन सामग्री को अच्छी-तरह से समझकर अपनी भाषा में जवाब लिखे। इसका मतलब है कि आपको पता होना चाहिए कि वह सवाल कहां से पूछा गया है, उसकी अवधारणा क्या है साथ ही उसे अपने शब्दों में लिख पाने की कला भी आनी चाहिए।

अब रटने से नहीं चलेगा काम

कई विद्यार्थी रट्टा मारकर परीक्षा देते हैं। उन्हें वही तरीका आसान लगता है। वह किसी विषय को समझने के बजाय उसे रटकर चले जाते हैं, लेकिन इस तरह की परीक्षा से बच्चों को रट्टामार पढ़ाई से छुटकारा मिल सकता है। ओपन बुक परीक्षा होने से विद्यार्थी विषय की अवधारणा को समझने पर जोर देंगे। कहीं फंसने पर वह अपने शिक्षकों, अभिभावकों या वरिष्ठों की मदद लेंगे। इस तरह से परीक्षा में प्रश्न सीधे नहीं होते हैं, बल्कि छात्रों को तय सिद्धांतों को लागू करने की जगह पर विश्लेषणात्मक क्षमता के आधार पर जवाब देना होगा। इसका उद्देश्य यह जांचना है कि छात्र क्या समझ रहा है।