राधिका नागरथ

हर धर्म में तीर्थ यात्रा का महत्त्व कहा गया है। तीर्थ यात्रा न केवल मनोरम दृश्यों द्वारा इंद्रिय सुख की अनुभूति कराती है अपितु यह श्रद्धा से निष्ठा का एक अद्भुत सफर है। व्यक्ति जब कोई भी तीर्थ यात्रा करने के लिए निकलता है तो वह पूर्णता उस शक्ति पर निर्भर रहता है जो इस सृष्टि को चला रही है। उसे पूर्ण विश्वास हो जाता है कि तीर्थ को जाते हुए उसका हर कदम उसके प्रभु की कृपा से ही सही पड़ रहा है वरना इतने ऊंचे पहाड़ों पर सहर्ष पैदल चल कर, चुनौतियां का सामना करते हुए देव दर्शन करना एक साधारण यात्रा नहीं होती। हमारे देश में भी कितने ही तीर्थ यात्रा स्थल हिमालय पर्वत पर हैं जो लाखों लोगों को आकर्षित करते हैं।

इस मई में चार धाम यात्रा भी यात्रियों के लिए खोल दी गई जिसमें मुझे भी केदारनाथ की यात्रा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। छह मई को केदार बाबा के पट खुले और मैं उन सौभाग्यशाली तीर्थयात्रियों में थी जिनको बाबा का दर्शन हुआ तीर्थ यात्रा का क्या महत्त्व है, वहां पहुंचे कुछ संत ऐसा बतलाते हैं कि यह श्रद्धा से निष्ठा का सफर है। चिन्मय मिशन दिल्ली से जुड़ी ब्रह्मचारिणी रंजना बतलाती है कि वह जब केदारनाथ की तीर्थ यात्रा में दो किलोमीटर ही चल पाई थी तो घोड़े वाला, पालकी वाला सब उनसे कह रहे थे कि आप नहीं चल पाएगी, आप घोड़े पर सवार हो जाइए। पर उनका दृढ़ निश्चय और उस प्रभु सत्ता पर दृढ़ विश्वास उनको ऊपर 18 किलोमीटर तक ले कर गया।

इसलिए तीर्थ यात्रा का बहुत महत्त्व है और यह यात्रा हमारे जीवन में दृढ़ता लाती हैं, हमारे आंतरिक रूपांतरण में बहुत मदद करती है। हमारे आसपास बिखरे असंभव को देखकर उस व्याप्त सत्ता पर और भी विश्वास दृढ़ होता है। अब केदारनाथ धाम को ही लीजिए। आज तक भी लोग यह नहीं जान पाए हैं कि इतनी समुद्र तल से कितनी ऊंचाई पर कैसे उस जमाने में हजारों वर्ष पूर्व उन पत्थरों को तराश कर मंदिर बनाया गया होगा जब कोई रास्ते नहीं थे, मशीनें नहीं थीं।

और वहां जाकर उन देव मंदिर की अट्टालिकाओं को देख सहज ही व्यक्ति उस प्रभुसत्ता के आगे नतमस्तक हो जाता है। बहुत बार जब पैदल चलने में व्यक्ति अपने को असक्षम पाता है तो वह अपने विश्वास से हर सांस में प्रभु नाम लेते हुए, अपनी यात्रा पूर्ण कर पाता है और ऐसा अक्सर अनुभव होता है कि जैसे ही धारावत् मंत्र टूटता है तो इंसान की सांस फूलने लगती है उसे लगता है कि वह मंजिल तक नहीं पहुंच पाएगा, इसलिए निरंतरता ही अपने भीतर की ओर तीर्थ यात्रा ही सिखाती है।

तीर्थ यात्रा का प्रचलन तो युगों युगों से है हर धर्म में है किंतु इसे पर्यटन के रूप में देखना उस तीर्थ की मर्यादा का भी उल्लंघन है और व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति लक्ष्य से काफी दूर हो जाता है। यात्रा के बाद व्यक्ति अपना धैर्य व विश्वास सुदृढ़ कर अनेकों अनुभवों के साथ घर लौटता है। वे जीवन के बहुत से उन पहलुओं को छू जाता है जो वह अपने घर की चारदीवारी में कभी भी न महसूस कर सकता है ना देख सकता है और ना ही लिख सकता है। तीर्थ यात्रा व्यक्ति को अधिक समझदार बना देते हैं। जीवन के अनछुए पहलुओं को उजागर कर जिंदगी में आने वाली मुश्किलों से लड़ने की ताकत बना देते हैं और बहुत सी चीजों को अनदेखा कर आगे गुजर जाने की प्रेरणा देती है।