लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी अब्दुल रहमान मक्की को चीन ने वैश्विक आतंकी घोषित होने से जिस तरह बचा लिया, उससे आतंकवाद को लेकर उसकी नीति के बारे में कोई संशय बाकी नहीं रह जाता है। भले चीन कहता रहा हो कि वह आतंकवाद के खिलाफ जंग में दूसरे देशों के साथ है, लेकिन हकीकत यह है कि वह आतंकवाद फैलाने वाले देशों और संगठनों को न केवल हवा दे रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उनका खुला समर्थन भी कर रहा है। गौरतलब है कि मक्की को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए भारत और अमेरिका ने एक जून को सुरक्षा परिषद में जो साझा प्रस्ताव रखा था, उसे चीन ने वीटो कर दिया। इसका मतलब तो यही हुआ कि चीन मक्की के पक्ष में खड़ा है और उसे आतंकवादी नहीं मानता।

मक्की को समर्थन देने का मतलब पाकिस्तान की आतंकवाद नीति की वकालत करना है। जबकि दुनिया देख रही है कि पिछले कई दशकों से पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ बन हुआ है और कई आतंकवादी संगठन उसकीजमीन से अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। हालांकि चीन और पाकिस्तान का गठजोड़ किसी से छिपा नहीं है। पाकिस्तान में चीन के गहरे आर्थिक हित हैं। ऐसे में अगर वह पाकिस्तान की आतंकवाद की नीति को खुला समर्थन दे रहा है तो इसमें हैरानी की बात नहीं।

चीन के इस कदम से आतंकवाद के खिलाफ भारत की मुहिम को धक्का तो लगा है, पर इससे एक बार फिर उसका असली चेहरा सामने आ गया। ऐसा नहीं कि मक्की की करतूतों से चीन अनजान है। मक्की मुंबई हमले के साजिशकर्ता और इसे अंजाम देने वाले लश्कर के सरगना हाफिज सईद का करीबी रिश्तेदार है। वह जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों के लिए पैसा जुटाने और साजिश रचने, नौजवानों को आतंकी हिंसा के लिए उकसाने के काम करता रहा है। कई आतंकी मामलों में उसे पाकिस्तानी अदालत से सजा भी हो चुकी है।

फिर भी चीन उसे आतंकी मानने को तैयार नहीं है तो जाहिर है कि वह खुद आतंकवाद का समर्थक है। गौरतलब यह भी है कि अमेरिका ने भी मक्की पर बीस लाख डालर का इनाम घोषित कर रखा है। आश्चर्य की बात तो यह कि अफगानिस्तान की सरकार में मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी को भी अमेरिका ने इनामी आतंकी घोषित किया हुआ है। लेकिन ये सारे आतंकी सरगना न सिर्फ दुनिया के आतंकवाद प्रभावित देशों को बल्कि संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक निकाय को अगर ठेंगा दिखा रहे हैं तो इसके पीछे निश्चित ही चीन और पाकिस्तान जैसे इनके रहनुमाओं की मेहरबानी है।

हाल में ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, तीन और दक्षिण अफ्रीका) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में भी आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता के साथ उठा था। बैठक में चीन ने सभी सदस्य देशों के साथ आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का वादा किया था। हालांकि पहले भी चीन ऐसे दिखावटी संकल्प जाहिर करता रहा है। लेकिन ब्रिक्स बैठक के अगले दिन ही सुरक्षा परिषद में उसने मक्की का मामला आते ही अपना असली चेहरा दिखा दिया। भले ही चीन इसके पीछे तकनीकी और प्रक्रियागत कारण बता रहा हो, लेकिन भारत को लेकर उसका जो रुख है, वह जगजाहिर है। याद किया जाना चाहिए कि 2019 में भी भारत ने संयुक्त राष्ट्र में जैश ए मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने का प्रस्ताव पेश किया था और तब भी चीन ने इसे कामयाब नहीं होने दिया था। ऐसे में कैसे माना जाए कि चीन आतंकवाद के खिलाफ कभी किसी का साथ देगा?