राधिका नागरथ
उन्नीसवीं शताब्दी में परमहंस रामकृष्ण देव की पत्नी शारदा देवी भी उनकी लीला में सहधर्मनी के रूप में बंगाल के एक छोटे से गांव जयरामबाटी में पैदा हुईं। रामकृष्ण परमहंस ने कहा था, वे शारदा सरस्वती हैं। ज्ञान देने के लिए आई हैं। वे मेरी शक्ति हैं। स्वामी विवेकानंद ने मां शारदा को जीती जागती दुर्गा की संज्ञा दी थी।

शारदा के पिता रामचंद्र मुखोपाध्याय राम मंत्र के उपासक थे। शारदा की मां श्यामासुंदरी देवी बहुत प्रेम से लोगों को खिलातीं और देखभाल करती थीं। शारदा के जन्म के बारे में एक अद्भुत कथा है। एक बार शहर गांव में अपने मायके में रहते समय श्यामासुंदरी देवी श्रीफल के वृक्ष के नीचे बैठ गईं। अचानक झनझनाहट हुई और पास ही बेल वृक्ष की शाखा से उतरकर एक छोटी बालिका ने अपने कोमल हाथों से श्यामासुंदरी का गला पकड़ लिया और मूर्छित होकर गिर पड़ीं। कितनी देर इसी अवस्था में रही उनको ज्ञात नहीं हुआ। जब उनके परिवार वाले उनको पूछते हुए आए, उन्हें सचेत किया तो उन्हें अनुभव हुआ, वही नन्हीं बालिका उनके गर्भ में प्रविष्ट हो गई।

रामकृष्णदेव बहुत ज्यादा भक्ति में लीन रहते थे। जब परिवार के लोगों ने उनको विवाह बंधन में बांधने के लिए कहा तो उन्होंने कहा जयरामबाटी के रामचंद्र मुखर्जी के घर जाकर देखो, वहां मेरे लिए कन्या चिन्हित करके रखी है। रामकृष्ण ने शारदा की प्रशंसा करते हुए कहा था कि यदि वह इतनी पवित्र ना होतीं, मुझ पर आक्रमण कर बैठतीं तो कौन कह सकता है कि मेरे संयम का बांध टूट कर देह बुद्धि आ जाती।

उन्होंने काली पूजा के दिन त्रिपुर सुंदरी के रूप में जगदंबा की आराधना करने की इच्छा की। चौकी सजाई गई और 16 वर्ष की शारदा अवचेतन अवस्था में आ गईं। मंत्र मंत्रमुग्ध वे उनके सम्मुख बैठ गईं। नारायणी रूप में शारदा देवी को प्रणाम कर पूरी पूजा संपन्न की।

जब शारदा 22 साल की हो गईं तो एक बार गंगा स्नान के मौके पर लोग कोलकाता जा रहे थे तो उन्होंने कहा कि वे भी दक्षिणेश्वर जाकर ठाकुर के दर्शन करेंगे। शारदा को उन यात्रियों के साथ में उसकी जंगल के कीचड़ वाले रास्ते से जाना था तो वे धीरे चल रही थीं तो उन्होंने कहा कि आप लोग निकल जाएं। बारिश होने लगी। इतने में डकैत आ गए तो उन्होंने पूछा तुम्हारे साथ कोई नहीं है। शारदा ने सब कुछ सच बताया और पास में जो कुछ कपड़े पैसे थे उनके सामने रख दिए।

शारदा ने उत्तर दिया, पिताजी क्या आपने मुझे पहचाना नहीं है। मैं आपकी बेटी शारदा हूं और आपके जमाई दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में पुजारी हैं। उनके पास जा रही हूं और मैं अकेली कहां हूं मेरे पिताजी और यह भाई साथ है। मुखिया के चेहरे के भाव बदल गए और सभी डकैत शर्मिंदा हो गए। एक आध्यात्मिक साधक को मां के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।

उनके जीवन से हम देख पाते हैं कि कैसे व्यक्ति गृहस्थ में रहते हुए भी एक शुद्ध और आसक्ति रहित जीवन व्यतीत कर सकता है जबकि वह पूरी मानवता के लिए प्रेम रखता है। मां बहुत विशाल हृदय आई थीं जब सिस्टर निवेदिता, सारा बोल और जोसेफिन मैक्लाउड सबसे पहले उनके साथ मिलीं तो मां सब बंधन छोड़ कर उनके साथ खाने बैठीं। वे सबको मेरी बेटी कहकर पुकारतीं।