ब्रह्मदीप अलूने

इस समय पाकिस्तान में श्रीलंका जैसे हालात हो गए हैं। हालांकि पाकिस्तान के राजनीतिक हालात इससे बिल्कुल अलग हैं। यहां सरकार को अपदस्थ कर कभी भी सेना व्यवस्था को अपने हाथ में ले सकती है। जाहिर है, अगर बदहाल पाकिस्तान में सैन्य शासन फिर से लागू होता है तो भारत के लिए स्थितियां ज्यादा चुनौतीपूर्ण बन सकती हैं।

राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक बदहाली और आतंकी घटनाओं से बेहाल पाकिस्तान का संकट गहराता जा रहा है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ देश के संकट और चुनौतियों से जनता को आगाह तो कर रहे हैं, लेकिन समस्याओं से उबारने की कोई ठोस योजना प्रस्तुत करने में वे लगातार नाकाम रहे हैं। रोजमर्रा की चीजों की बेतहाशा बढ़ती कीमतों से आम जनता बेहाल है और सरकार के प्रति लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है।

विदेशी मुद्रा लगभग खत्म होने की कगार पर है। कई कारखानों का सामान पाकिस्तान के बंदरगाहों पर पड़ा है, लेकिन उसे छुड़ाने के लिए व्यापारियों को बैंकों से डालर नहीं मिल पा रहे हैं। यह स्थिति पाकिस्तान की बदहाली बयान करती है। रूस-यूक्रेन युद्ध की मार पाकिस्तान पर भी पड़ी है, इसकी वजह से दुनिया में तेल की कीमतें बढ़ी हैं। पाकिस्तान पेट्रोलियम उत्पादों के लिए आयात पर निर्भर है। तेल की बढ़ती कीमतों के कारण खाने-पीने का सामान बेहद महंगा हो गया है। पाकिस्तान का सैन्य खर्च बहुत अधिक है। यहां बुनियादी ढांचे पर खर्च भी कर्ज में लिए धन से किया जाता है।

पाकिस्तान अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है, ऐसे समय में सभी राजनीतिक पार्टियों को मिलजुलकर समस्याओं का समाधान करना चाहिए। मगर वहां राजनीतिक प्रतिरोध की भावना प्रबल है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ दर्ज विभिन्न मामलों में फौजदारी कानून के तहत कार्रवाई शुरू हो गई है। उन पर प्रदर्शन, तोड़फोड़, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, सरकारी कार्यों में बाधा डालने, सरकारी उपहार लेने और जज को धमकी देने जैसे कई मामले दर्ज हैं। उन पर आतंकवाद निरोधक कानून की धाराएं भी लगाई गई हैं।

इन सब कार्रवाइयों को राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देखा जा रहा है। पिछले साल सत्ता खोने से नाराज इमरान खान तुरंत आम चुनाव करना चाहते हैं और इससे देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है। उनका दावा है कि उन्हें पद से हटाना संवैधानिक रूप से गलत था। जबकि पाकिस्तान की मौजूदा सरकार वक्त से पहले चुनाव की मांग ठुकराती रही है।

आंतरिक अव्यवस्था से जूझते पाकिस्तान के पड़ोसी देशों से संबंध भी बद से बदतर हो चले हैं। भारत को लेकर उसकी विद्वेषपूर्ण नीति में कोई बदलाव नहीं आया है और कश्मीर पर पाकिस्तानी नेताओं का विषवमन बदस्तूर जारी है। अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान में आंतरिक सुरक्षा को लेकर संकट गहरा गया है।

अफगानिस्तान के लोग और तालिबान अंग्रेजों द्वारा खींची गई डूरंड रेखा को नहीं मानते। पाकिस्तान से अफगानिस्तान में डालर की तस्करी हो रही है। इस वजह से पाकिस्तानी रुपया और कमजोर हो रहा है। हाल के दिनों में पाक-अफगान सीमा पर दोनों देशों के बीच हिंसक संघर्ष बढ़े हैं। वहीं तालिबान से दोस्ताना संबंध रखने वाले एक चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने पाकिस्तान के कई इलाकों में आतंकी हमले किए हैं।

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान पिछले चौदह सालों से देश में कड़े इस्लामी कानून लागू करने के लिए लड़ रहा है। देश में अल्पसंख्यकों, महिलाओं और उदारवादियों पर हमले करता रहा है। वह अफगानिस्तान से लगे सरहदी इलाकों में अपना वर्चस्व बढ़ाने में लगा है इसलिए वह इन इलाकों में पाकिस्तान की फौज की तैनाती हटाना चाहता है। पाकिस्तान की फौज से उसका टकराव होता रहता है।

पाकिस्तान की मौजूदा सरकार टीटीपी से रिश्तों को लेकर इमरान खान पर निशाना साध रही है। शाहबाज शरीफ का कहना है कि इमरान खान ने ही सरहदी इलाकों में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों को बसाया, जो अब नासूर बन गए हैं। टीटीपी के लिए अफगान एक सुरक्षित ठिकाना है और उसके आतंकी अक्सर पाकिस्तान सेना और पुलिस पर हमले करके अफगानिस्तान में छिप जाते हैं।

यह भी दिलचस्प है कि आतंकी संगठनों को समर्थन को लेकर पाकिस्तान के राजनीतिक दलों जैसी ही स्थिति सेना में भी है। पाकिस्तानी सेना में आला अफसरों के कई गुट बने हुए हैं और उनमें आपसी हितों को लेकर जबर्दस्त टकराव है। सेना के भीतर लड़ने वाले गुट एक-दूसरे के खिलाफ टीटीपी का इस्तेमाल करते हैं। जनरल बाजवा के सैन्य प्रमुख के पद से हटते ही टीटीपी द्वारा पाकिस्तान में आतंकी हमलों की शुरुआत महज संयोग नहीं, बल्कि सैन्य अफसरों में फूट को उजागर करती है।

आर्थिक संकट से जूझते पाकिस्तान में चीन का विरोध भी बढ़ता जा रहा है। चीनी इंजीनियरों और नागरिकों पर वहां हमले बढ़ने से पाकिस्तान का यह प्रमुख सहयोगी नाराज है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की कई परियोजनाओं का काम इस समय रोक दिया गया है। सीपीईसी को चीन के ‘बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव’ का बेहद अहम पहलू माना जाता है। इसका मकसद मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप से नए जमीनी और समुद्री संपर्क बढ़ाना है। पाकिस्तान की सरकार इस परियोजना को पाकिस्तान के भविष्य की योजना बताती है, जिसमें सड़कें, रेल लाइनें, बिजलीघर और औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करना शामिल है।

पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सोने, तांबे और गैस के बड़े भंडार हैं और चीन की इन पर नजर है। बलूचिस्तान में पाकिस्तान का गहरा विरोध है और वे अपनी पहचान को पाकिस्तान से अलग कर देखते हैं। बलूचिस्तान के लोगों का कहना है कि पाकिस्तान आर्थिक कठिनाइयों से गुजर रहा है। उसे पैसे की जरूरत है और वह इस मुश्किल को हल करने के लिए हमारा इलाका चीन को बेचने की कोशिश कर रहा है।

आतंकवादी और खासकर दक्षिणी पश्चिमी बलूचिस्तान सूबे के उग्रवादी चीन को बार-बार इन परियोजनाओं से बाज आने और पाकिस्तान से चले जाने या फिर अंजाम भुगतने की धमकियां देते रहे हैं। पहले पाकिस्तान की फौज ने सीपीईसी की सुरक्षा की गारंटी ली थी, लेकिन अब न तो पाकिस्तान की फौज का रुख सकारात्मक है और न ही चीनियों को उनकी सुरक्षा पर भरोसा रहा है।

बलूचिस्तान के साथ ही अब तो पूरे पाकिस्तान के लोगों में चीन को लेकर बैचेनी बढ़ गई है। पाकिस्तान के आर्थिक और राजनीतिक विश्लेषक साफ कहते हैं कि चीनी कर्ज की ब्याज दर बहुत ज्यादा होने से पाकिस्तान कर्ज का समय पर भुगतान कर पाने में नाकाम रहेगा। इससे चीन पाकिस्तान की संप्रभुता को प्रभावित कर सकता है। पाकिस्तान का पढ़ा-लिखा तबका भी चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की शर्तों को लेकर संशय में है।

उनका मानना है कि इस अदूरदर्शी परियोजना ने पहले ही नकदी के संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के इर्द-गिर्द कर्ज का एक और जाल बुन डाला है और उसकी लंबे समय से चली आ रही वित्तीय मुश्किलों को बढ़ाने का काम किया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने एक रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तान पर लदे विदेशी कर्ज का तीस फीसद अकेले चीन का है। वास्तव में पाकिस्तान पर कर्ज के बोझ में चीन के बैंकों की हिस्सेदारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के ऋण से भी अधिक है।

इस समय पाकिस्तान में श्रीलंका जैसे हालात हो गए हैं। हालांकि पाकिस्तान के राजनीतिक हालात इससे बिल्कुल अलग हैं। यहां सरकार को अपदस्थ कर कभी भी सेना व्यवस्था को अपने हाथ में ले सकती है। जाहिर है, अगर बदहाल पाकिस्तान में सैन्य शासन फिर से लागू होता है तो भारत के लिए स्थितियां ज्यादा चुनौतीपूर्ण बन सकती हैं। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान में जब भी सैन्य शासन रहा है, भारत के साथ उसका तनाव चरम पर होता है। सीमा पर अकारण गोलाबारी, आतंकी घुसपैठ और कश्मीर में आतंकी हमलों की आशंका बढ़ जाती है।