शरणार्थियों के मुद्दे पर अमेरिका थोड़ा नरम पड़ा लगता है। उसने फिलहाल उन ग्यारह देशों से आने वाले शरणार्थियों को फिर से पनाह देने का फैसला किया है, जिन पर पिछले साल पाबंदी लगा दी गई थी। हालांकि अब इन्हें और कड़ी जांच से गुजरना होगा। सत्ता में आते ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शरणार्थियों के मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया था। उनका मानना रहा है कि शरणार्थी अमेरिका के लिए बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं और देश में अपराध की बड़ी वजह भी यही हैं। ट्रंप के निशाने पर खासकर मुसलिम देशों से आने वाले शरणार्थी थे। पिछले साल उन्होंने ग्यारह देशों से आने वाले शरणार्थियों के अमेरिका में घुसने पर पाबंदी लगा दी थी। इन देशों में दस मुसलिम देश और एक उत्तर कोरिया था। मुसलिम देशों में मिस्र, ईरान, लीबिया, दक्षिण सूडान, इराक, माली, सोमालिया और सीरिया शामिल हैं। इन देशों को अमेरिका ने ‘उच्च जोखिम’ वाली श्रेणी में रखा है।

दरअसल अमेरिका आज भी 9/11 के आतंकी हमले को भूला नहीं है। उसके बाद ही अमेरिका ने आतंकवाद के खिलाफ महाअभियान छेड़ा और दुनिया को इससे मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया। पिछले साल भी एक उज्बेक नागरिक ने भीड़ पर ट्रक चढ़ा कर कई लोगों को मार डाला था। यह हमलावर आइएसआइएस से जुड़ा था। उसके बाद पाकिस्तान का नाम लेते हुए अमेरिकी सांसद पीटर किंग ने कहा था कि अगर उस देश से कोई व्यक्ति आता है जिस देश में आतंकवादी बड़ी संख्या में मौजूद हैं, तो उसकी और कड़ी जांच होनी चाहिए। ऐसे हमलों से अमेरिकी समाज और प्रशासन में यह धारणा गहरे पैठ गई है कि आतंकवाद की मूल वजह मुसलिम देश ही हैं। इसलिए मिस्र, सूडान, इराक जैसे संकटग्रस्त मुसलिम देशों से आने वाला हर शरणार्थी अमेरिका की निगाह में संदिग्ध है। वही अपराध फैला रहा है और दूसरी समस्याओं की जड़ बन रहा है।

ट्रंप ने राष्ट्रपति चुनाव में जो बड़े मुद्दे जनता के सामने रखे थे उनमें शरणार्थियों का मुद्दा भी था। उन्होंने भरोसा दिलाया था कि वे सत्ता में आते ही शरणार्थियों के घुसने पर पाबंदी लगाएंगे। राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने जनवरी, 2017 में शरणार्थी नीति घोषित की थी। इसके बाद ही चुनिंदा मुसलिम देशों के नागरिकों के अमेरिका में घुसने पर रोक लगी। हालांकि निचली अदालत ने इसे अनुचित करार दिया था, पर बाद में वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बताते हुए ट्रंप को राहत दी। अब अमेरिका उत्तर कोरिया और दस मुसलिम देशों के शरणार्थियों को आने तो देगा, लेकिन पूरी कड़ी निगरानी के बाद ही। इन देशों से आने वालों को बेहद कड़ी जांच से गुजरना होगा। तभी इन्हें शरणार्थी होने का दर्जा और उसके फायदे मिल पाएंगे।

अमेरिका के आंतरिक सुरक्षा मंत्री क्रिस्टजेन नील्सन का कहना है कि हमारे लिए अब यह जानना बेहद जरूरी है कि कौन अमेरिका में प्रवेश कर रहा है। इसका इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि कौन किस धर्म या देश का है, यह मामला अमेरिका की सुरक्षा को और पुख्ता करने से जुड़ा है। बराक ओबामा ने अपने कार्यकाल के आखिर में अमेरिका में शरणार्थियों के प्रवेश की सीमा एक लाख दस हजार तय की थी, जिसे ट्रंप ने घटा कर पहले तिरपन हजार और फिर वर्ष 2018 के लिए पैंतालीस हजार कर दिया था। 1980 के बाद यह पहला मौका है, जब शरणार्थियों की संख्या इतनी सीमित कर दी गई।