कुछ समय से आॅनलाइन कारोबार या इंटरनेट के जरिए वस्तुओं की खरीद-बिक्री का बाजार तेजी से बढ़ा है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि ई-कॉमर्स कंपनियां अपने विज्ञापनों में भारी रियायतें घोषित कर लोगों को आकर्षित करती हैं। लेकिन वैसी छूट के हिसाब और हकीकत के बारे में समझना मुश्किल नहीं है कि किसी वस्तु की कीमत में पचास फीसद की बढ़ोतरी कर दी जाए और उस पर पच्चीस फीसद की रियायत दे दी जाए। यानी एक तरह से वह वस्तु रियायती दर पर बेचे जाने के बावजूद अपनी वास्तविक कीमत से ज्यादा दर पर बेची गई। इसके अलावा, किसी उत्पाद की उपयोगिता की अवधि और बाकी ब्योरों के बारे में उपभोक्ता को तभी पता चलता था, जब खरीदी गई वस्तु उसके पास पहुंच जाती थी। यह एक तरह से ग्राहकों के साथ किया गया धोखा था, जिस पर निगरानी और लगाम के लिए कोई ठोस व्यवस्था अमल में नहीं थी। हालांकि बीते साल जून में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने विधि मापिकी (डिब्बाबंद सामग्री) नियम, 2011 में संशोधन के बाद ई-कॉमर्स कंपनियों को उसका पालन करने के लिए छह महीने का समय दिया था। लेकिन नए नियम की घोषणा के सात महीने के बाद भी ई-कॉमर्स कंपनियों ने उस पर पूरी तरह अमल करना अनिवार्य नहीं समझा।
लेकिन एक जनवरी से लागू नियम के तहत अब आॅनलाइन कारोबार करने वाली कंपनियों को किसी भी उत्पाद के अधिकतम खुदरा मूल्य के साथ उसके विनिर्माण, अनुपयोगी हो जाने की तारीख, शुद्ध मात्रा, देश और ग्राहक सेवा का पूरा ब्योरा मुहैया कराना होगा। यह विचित्र है कि किसी डिब्बाबंद सामान की अधिकतम खुदरा कीमत में अलग-अलग जगहों या ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर फर्क हो। इंटरनेट की पहुंच और उपयोग का दायरा बढ़ने के साथ बड़ी तादाद में लोग ई-कॉमर्स वेबसाइटों के जरिए खरीदारी करने लगे हैं। घर बैठे सामान मिल जाने की सुलभ व्यवस्था के प्रति लोगों का आकर्षण स्वाभाविक है। लेकिन उस पर उपलब्ध सामान की गुणवत्ता से लेकर कीमत तक के बारे में अभी उतनी जागरूकता नहीं आई है।
करीब साल भर पहले ‘लोकल सर्किल’ नामक संस्था के एक सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया था कि किसी वस्तु के अधिकतम खुदरा मूल्य को बढ़ा कर भारी छूट देने की बात की जाती है।
इस आकर्षण के प्रभाव में आकर सामान खरीदने वाले चौंतीस फीसद लोगों को यह समझ में भी नहीं आया कि उनके साथ कोई धोखा किया गया है, जबकि आॅनलाइन खरीदारी करने वाले पच्चीस फीसद लोग अपने साथ होने वाली गड़बड़ी से अनजान ही रहे। ऐसे तमाम उदाहरण सामने आए जिनमें किसी उपभोक्ता को खरीदारी के बाद जो सामान मिला, वह बेबसाइट पर मौजूद ब्योरे के मुताबिक नहीं था। कई बार कोई ऐसी वस्तु भी भेज दी गई, जिसकी उपयोगिता की तारीख समाप्त हो गई थी या बहुत नजदीक थी। उपभोक्ताओं के हितों के साथ यह खिलवाड़ है, जिसे रोकना जरूरी है।