भाजपा ने जहां गुजरात का अपना गढ़ बचाए रखा, वहीं हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के हाथ से निकल गया। हिमाचल का नतीजा 1985 से कायम एक लीक पर आया है, जहां हर बार सत्तारूढ़ पार्टी को विपक्ष में बैठने का जनादेश मिलता है। कई कारणों से गुजरात पर ही सारे देश की नजर थी। एक तो यह हिमाचल की तुलना में काफी बड़ा राज्य है। दूसरे, यह प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष, दोनों का गृहराज्य है। तीसरे, गुजरात भाजपा का सबसे मजबूत गढ़ है जहां वह बाईस साल से लगातार सत्ता में रही है। भाजपा और मोदी, दोनों को यह डर रहा होगा कि अगर वे गुजरात को गंवा बैठे, तो बाकी देश में भी इसका गहरा राजनीतिक असर पड़ेगा। इसी कारण मोदी गुजरात में इस तरह लीन रहे जैसे कोई मुख्यमंत्री अपने राज्य का चुनाव लड़ता है। इससे पहले, शायद ही किसी प्रधानमंत्री ने किसी राज्य के चुनाव में अपने को इस कदर झोंका हो। और अंत में, मोदी ने भाजपा की नैया पार लगा दी। लेकिन गुजरात में भाजपा को जो जीत मिली उसमें कोई चमक नहीं है। यह कहना ज्यादा सही होगा कि वहां भाजपा हारते-हारते बची है। जिस राज्य के चुनाव को मोदी और शाह बहुत आसान मान बैठे थे और एक सौ बयासी सीटों वाली विधानसभा में इस बार डेढ़ सौ से अधिक सीटें लाने का लक्ष्य बड़े शान से प्रचारित कर रहे थे, वहां भाजपा को बहुमत की रेखा पार कराने में उनके दम फूल गए।
दूसरी तरफ गुजरात में इस बार भी कांग्रेस हार तो गई, लेकिन उसने भाजपा को कड़ी टक्कर दी; सीटें और वोट प्रतिशत, दोनों में उसने मजे का इजाफा किया है। फिर, यह पहला चुनाव है जिसमें राहुल गांधी भाजपा के लिए चुनौती की तरह उभरे। लोगों तक पहुंच बनाने की अपनी क्षमता उन्होंने साबित की। यह दिलचस्प है कि जिस गुजरात मॉडल का भाजपा और मोदी दम भरते आ रहे थे, उसे चुनावी मुद््दा बनाने से वे बचते रहे। बाईस साल के भाजपा के कामकाज पर कांग्रेस मुखर थी, जबकि मोदी खुद को ही मुद््दा बनाने में लगे रहे। यह भी नाकाफी लगा तो वे पाकिस्तान को घसीट लाए। प्रधानमंत्री की बेहद सक्रियता और लगातार मौजूदगी से चुनाव प्रचार का स्तर उठना चाहिए था, पर हुआ इससे भिन्न। हां, यह जरूर है कि मोदी ने जिस तरह खुद को प्रचार में झोंके रखा उससे भाजपा की गाड़ी बेपटरी होने से बच गई। मोदी गुजरात के ही हैं, और प्रधानमंत्री हैं, साथ ही वे भाजपा के सबसे भीड़-खींचू नेता हैं, उनकी भाषण शैली भी ज्यादा लोक लुभावन है। पर साफ है कि जहां भाजपा शासन के खिलाफ कई तबकों में और खासकर ग्रामीण गुजरात में व्यापक असंतोष था, वहीं मोदी का जादू पहले से कम हुआ है।
जन असंतोष को वोटों में तब्दील करने में कांग्रेस की तरफ से काफी कसर रह गई। वह बहुत देर से सक्रिय हुई, और फिर प्रांतीय स्तर पर उसके पास कर्नाटक के सिद्धरमैया जैसा कोई कद््दावर नेता नहीं था जो महीनों से लगातार आगे बढ़ कर भाजपा से लोहा लेता। गुजरात में कांग्रेस राहुल गांधी पर निर्भर थी, और फिर हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी जैसे उन युवा चेहरों पर, जो हाल तक राजनीति के दायरे से बाहर थे। नतीजे आने के बाद मोदी ने कहा कि गुजरात में बाईस साल बाद भाजपा का छठी बार सत्ता में आना एक विश्व रिकार्ड है। विश्व की बात छोड़ दें, पश्चिम बंगाल में लगातार चौंतीस साल वाम मोर्चे की सरकार रही। बहरहाल, भाजपा के गुजरात गढ़ में दरार पड़ चुकी है और अब इसे वह अपराजेय मान कर नहीं चल सकती।