महंगाई की रफ्तार थामने के लिए आखिरकार रिजर्व बैंक को अपना सबसे बड़ा हथियार चलाना ही पड़ा। करीब पौने चार साल बाद बुधवार को रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने रेपो दर 0.40 फीसद बढ़ाते हुए 4.40 फीसद कर दी। चौंकाने वाली बात यह है कि एमपीसी की यह बैठक बिना किसी पूर्व निर्धारित योजना के हुई। इसलिए समिति के इस फैसले से सबका हैरान होना लाजिमी है।

लेकिन यह फैसला कोई अचानक नहीं लिया गया। एमपीसी की पिछली दो-तीन बैठकों से लगातार इस बात के संकेत मिल रहे थे कि केंद्रीय बैंक कभी भी नीतिगत दरें बढ़ा सकता है। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास कहते भी रहे हैं कि नीतिगत दरों के मामले में उदार रुख को बहुत लंबे समय तक नहीं बनाए रखा जा सकता।

पिछले महीने एमपीसी की बैठक में उन्होंने साफ कहा था कि बैंक की प्राथमिकता महंगाई को थामना है। इसलिए जल्दी ही नीतिगत दरें बढ़ाई जा सकती हैं। नीतिगत दरों में बढ़ोतरी रिजर्व बैंक की मजबूरी इसलिए बन गई कि महंगाई की दर उसके छह फीसद के निर्धारित दायरे से भी ऊपर निकल गई है। ऐसे में रिजर्व बैंक कब तक चुप बैठता?

गौरतलब है कि महंगाई को लेकर लंबे समय से हाहाकार मचा है। खुदरा और थोक महंगाई दोनों नित नए रेकार्ड बना रहे हैं। खाद्य वस्तुओं और खाद्य तेलों सहित जिंसों और धातुओं के बाजार में भारी तेजी बनी हुई है। मार्च के महीने में ही महंगाई दर 6.95 फीसद पर पहुंच गई थी, जो सत्रह महीने में सबसे ज्यादा थी।

ऐसे में रिजर्व बैंक की यह जिम्मेदारी है कि वह खुदरा महंगाई दर को निर्धारित छह फीसद से ऊपर न जाने दे। इसीलिए अब एमपीसी के पास कोई चारा नहीं रह गया था, सिवाय इसके कि वह नीतिगत दरों में बढ़ोतरी का कठोर कदम उठाती। इसलिए भी कि अगर महंगाई इसी तरह बेकाबू होती रही तो अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ने लगेंगे।

हालांकि महंगाई बढ़ने के कई कारण हैं। दो साल तक कोविड महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था रसातल में चली गई। इसे पटरी पर लाने के लिए सरकार और केंद्रीय बैंक दोनों ही पहले से जूझ रहे हैं। हालात जैसे तैसे काबू में आने शुरू हुए तो रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ गया। इस वैश्विक संकट ने नए सिरे से मुश्किलें खड़ी कर दीं। सबसे ज्यादा मार कच्चे तेल के दामों से पड़ी।

भारत में आज महंगाई जिस रेकार्ड स्तर पर पहुंच गई है, उसका बड़ा कारण पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम हैं। आज भी पेट्रोल सौ रुपए से ऊपर बिक रहा है। मुश्किल यह है कि यूक्रेन संकट कितना लंबा खिंचेगा, कोई नहीं जानता। ऐसे में अगर महंगाई और बढ़ी तो देश नए संकट में फंस जाएगा।

इसीलिए एमपीसी ने लगे हाथ यह भी कह दिया कि वह अगले महीने यानी जून में भी नीतिगत दरों में और इजाफा कर सकती है। अब जिस तरह के हालात हैं उनमें रिजर्व बैंक ‘देखो और इंतजार करो’ की नीति पर नहीं चल सकता। यह तो निश्चित है कि नीतिगत दरें बढ़ने से व्यावसायिक बैंक भी कर्ज महंगा करेंगे। आर्थिक गतिविधियों पर इसका असर पड़ना तय है।

मांग में भी कमी आएगी। पर एमपीसी का यह कदम वक्त की जरूरत भी है। पिछले कुछ समय में अमेरिका सहित दूसरे देशों के केंद्रीय बैंकों ने भी महंगाई से निपटने के लिए दरें बढ़ाने जैसा कदम उठाया है। पिछले हफ्ते रिजर्व बैंक की मुद्रा और वित्त संबंधी जो रिपोर्ट आई है, उसमें भी साफ कहा गया है कि अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों में संतुलन साधने की जरूरत है। नीतिगत दरें बढ़ाने का फैसला इसी दिशा में बड़ा कदम है।