मोहन कक्षा में नया विद्यार्थी आया था। एकदम सीधा-सादा बच्चा था। उसके सीधे पन की कुछ बच्चे मजाक बनाया करते थे। मोहन ने कभी भी इनकी मजाक का जवाब नहीं दिया। वह बेहद सहजता से उनकी बातों को सुनता और नजरअंदाज कर देता था।
मोहन स्कूल में समय पर आता और सारी कक्षाएं मैं हाजिर रहता। उसके सीधेपन के कारण कोई भी उसका मित्र बनने को तैयार नहीं था। मोहन ने काफी कोशिश की कि उसके भी दोस्त बनें, लेकिन उन चालाक बच्चों में से किसी को अपना मित्र नहीं बना पाया।
मोहन का कोई दोस्त नहीं था, करता भी क्या? उसने सारा मन पढ़ाई में लगा रखा था । खेल के पीरियड में सब बच्चों के साथ खेल लेता था। बागवानी के पीरियड में फूलों और पत्तों से कुछ देर बात कर लेता था। कहने को उसके मित्रों में ये फूल और पत्ते ही थे।
कक्षा अध्यापक ने भी इस बात पर गौर किया कि कोई भी विद्यार्थी मोहन से बातचीत नहीं करता था। न ही उसे कोई अपने साथ रखता था। कई बार अध्यापकों ने भी अन्य बच्चों को समझाने का प्रयास किया। कुछ देर के लिए सब ठीक लगने लगता था। लेकिन दिल से उसे कोई भी अपना मित्र स्वीकार नहीं करता था। मोहन ने इन बातों को कभी दिल से नहीं लगाया। वह अपना ध्यान पढ़ाई और बागवानी में लगाता रहा। हां, मोहन की एक कमजोरी थी उसका खराब हस्तलेख।
मोहन ने सोचा कि क्यों न इस अवसर का फायदा उठाया जाए? कक्षा में जब भी खाली पीरियड होता वह किसी विषय की पुस्तक निकाल कर उसकी नकल करना प्रारंभ कर देता।
यह प्रकिया काफी दिनों तक चलती रही। जब वह किसी पाठ की नकल करता तो उसे वह ध्यान लगा कर पढ़ता और लिखता। लिखने के दौरान कई बार ऐसे शब्द आते थे जिनका अर्थ उसे पता नहीं होता था। वह उन शब्दों को अलग से नोट कर लेता था। शिक्षक के आने पर वह उन शब्दों के अर्थ उनसे पूछ लेता था। अन्य बच्चों ने उसके इस प्रयास का भी उपहास किया।
मोहन बड़ा दृढ़ संकल्पी और धैर्यवान बच्चा था। उसने कभी मजाक को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। अब वह पुस्तकालय से एक शब्दकोश भी निकलवा लाया था।
वह कठिन शब्दों को शब्दकोश में खोजने लगा। उसे एक ही शब्द के अनेक अर्थ मिलने लगे थे। इससे उसका शब्दकोश समृद्ध होने लगा था।
नकल के दौरान पाठ को ध्यान से पढ़ने से उसे सब याद रहने लगा था। कक्षा में शिक्षकों के प्रश्नों के उत्तर वह फटाफट देने लगा था।
दूसरे बच्चे अब आश्चर्यचकित होने लगे थे, जिसे वे भोंदू समझते थे, वह तो कक्षा में अब छाने लगा था। हर शिक्षक मोहन का प्रशंसक होने लगे थे।
स्कूल में हिंदी दिवस पर कई प्रतियोगिताओं का आयोजन हुआ। इनमें वाद-विवाद, सुंदर लेखन, शुद्ध लेखन, कविता लेखन और निबंध लेखन प्रतियोगिताएं प्रमुख थीं। सभी बच्चों ने इनमें बड़े उत्साह से भाग लिया। मोहन भी एक प्रतियोगी था। उसके लिए यह सब नया था। वह इसी साल जो स्कूल में आया था। उसे अभी कोई जानता भी नहीं था।
प्रतियोगिताएं प्रारंभ हुर्इं। अरे यह क्या, सभी लोग आश्चर्य चकित थे। कौन है ये मोहन ? कहां से आया? हर प्रतियोगिता में उसने अव्वल स्थान पाया।
कुछ ही दिनों बाद प्रथम तिमाही की परीक्षा हुई। सभी बच्चों ने इस के लिए खूब तैयारी की। मोहन के लिए यह इस स्कूल की पहली परीक्षा थी। वह बहुत गंभीरता से तैयारी में जुटा था। परीक्षा संपन्न हुई और कुछ दिनों बाद परिणाम घोषित किए गए।
मोहन ने यहां भी बाजी मारी। वह कक्षा में प्रथम ही नहीं, बल्कि सभी विषयों में विशेष योग्यता हासिल करने में सफल रहा।
प्राचार्य महोदय ने कक्षा में आकर उसकी इस सफलता पर बधाई दी और गले से लगा लिया। प्राचार्य ने जानना चाहा कि तुमने इतनी अच्छी तैयारी कैसे की? तुम्हारे हर विषय में शत-प्रतिशत अंक आए हैं और लिखावट भी बहुत सुंदर है। हम इन उत्तर पुस्तिकाओं को अवलोकनार्थ रखेंगे।
मोहन ने बहुत ही सहज भाव से इस सफलता का श्रेय अपने साथियों को दिया। उसके खाली समय का सदुपयोग लिखावट सुधारने के साथ ही शब्दकोश में वृद्धि और पाठ को याद करने के लिए किया। अन्य छात्र-छात्राएं शर्मिंदा तो थीं, लेकिन अब सभी उसके दोस्त बन गए थे। ०