सर्वोच्च न्यायालय की ओर से नियुक्त लोढ़ा समिति ने सोमवार को परेशानियों से घिरे बीसीसीआइ के लिए व्यापक बदलावों और भारी प्रशासनिक फेरबदल की सिफारिश की। इनमें मंत्रियों को पद हासिल करने से रोकना, पदाधिकारियों के लिए उम्र और कार्यकाल की मियाद का निर्धारण और सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता देना भी शामिल है। न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आरएम लोढ़ा की अगुवाई वाले तीन सदस्यीय पैनल ने कठोर सुधारों की शृंखला में सुझाव दिया है कि एक राज्य का प्रतिनिधित्व केवल एक इकाई करेगी। साथ ही समित ने संस्थानिक और शहर आधारित इकाइयों के मतदान अधिकार वापस लेने की सिफारिश की है।

समिति ने बीसीसीआइ के प्रशासनिक ढांचे के भी पुनर्गठन का सुझाव दिया है और बोर्ड के दैनिक कामकाज को देखने के लिए सीईओ के पद का प्रस्ताव रखा है जो नौ सदस्यीय सर्वोच्च परिषद के प्रति जवाबदेह होगा। सर्वोच्च न्यायालय में 159 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपने के बाद खचाखच भरे संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए लोढ़ा ने कहा कि उन्होंने बोर्ड अधिकारियों, क्रिकेटरों और अन्य हितधारकों के साथ 38 बैठकें कीं। सर्वोच्च न्यायालय यह फैसला करेगा कि बीसीसीआइ इन सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य है या नहीं।

लोढ़ा ने सिफारिशों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए कहा, पहली बात ढांचे और संविधान को लेकर है। अभी आप जानते हैं कि बीसीसीआइ के 30 पूर्णकालिक सदस्य हैं। इनमें से कुछ सदस्यों जैसे सेना, रेलवे आदि का कोई क्षेत्र नहीं है। इनमें से कुछ टूर्नामेंट में नहीं खेलते। कुछ राज्यों में कई सदस्य हैं जैसे कि महाराष्ट्र में तीन और गुजरात में तीन सदस्य है। हमने जो बातचीत की उनमें से कुछ को छोड़कर बाकी सभी इस पर सहमत थे कि बीसीसीआइ में एक राज्य से एक इकाई का प्रतिनिधित्व सही विचार होगा।

लोढ़ा समिति में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) अशोक भान और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आर वी रवींद्रन भी शामिल थे। समिति ने जो सबसे सनसनीखेज सिफारिश की है वह सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता देने की है। समिति का मानना है कि इससे खेल में भ्रष्टाचार को रोकने में मदद मिलेगी। समिति ने कहा है कि खिलाड़ियों और अधिकारियों को छोड़कर लोगों को पंजीकृत वेबसाइट पर सट्टा लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए। साथ ही बीसीसीआइ के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इस संस्था को सूचना का अधिकार (आरटीआइ) अधिनियम के तहत लाना जरूरी है। बोर्ड अपनी स्वायत्तता का हवाला देकर पूर्व में इसका पुरजोर विरोध करता रहा है।

न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, चूंकि बीसीसीआइ सार्वजनिक कार्यों से जुड़ा है, इसलिए लोगों को इसके कामकाज और सुविधाओं व अन्य गतिविधियों के बारे में जानने का अधिकार है और इसलिए हमारे विचार में कि क्या बीसीसीआइ पर आरटीआई अधिनियम लागू होता है या वह आरटीआइ के अधीन आता है, यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है। हमने सिफारिश की है कि विधायिका को बीसीसीआइ को आरटीआइ अधिनियम के तहत लाने के लिए गंभीरता से विचार करना चाहिए।

एक अन्य अहम फैसले में समिति ने पूर्व आइपीएल सीओओ सुंदर रमन को क्लीन चिट दी जिन पर सट्टेबाजों से संपर्क रखने के आरोप थे। पैनल ने कहा कि रमन पर अभियोग लगाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं थे। बीसीसीआइ पदाधिकारियों के लिए आयु और कार्यकाल की समयसीमा तय करने के बारे में समिति ने कहा कि बोर्ड के सदस्यों को तीन कार्यकाल से अधिक समय तक पद पर नहीं रहना चाहिए।

न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा कि अध्यक्ष तीन साल के दो कार्यकाल में रह सकता है कि लेकिन अन्य पदाधिकारी तीन कार्यकाल तक रह सकते हैं। सभी पदाधिकारियों के लिए प्रत्येक कार्यकाल के बीच अंतर अनिवार्य होगा। न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, बीसीसीआइ के पदाधिकारियों के संबंध में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, संयुक्त सचिव और कोषाध्यक्ष के लिए कुछ पात्रता मानदंड तय किए गए हैं जैसे कि वह भारतीय होना चाहिए , वह 70 साल से अधिक उम्र का नहीं होना चाहिए, वह दिवालिया नहीं होना चाहिए, वह मंत्री या सरकारी नौकरी में नहीं होना चाहिए और जिसने नौ साल की संचयी अवधि के लिए बीसीसीआइ में कोई पद नहीं संभाला हो।

लोढ़ा ने कहा, ‘वर्तमान व्यवस्था में बीसीसीआइ अध्यक्ष के पास तीन मत होते हैं। पहला राज्य संघ के प्रतिनिधि के रूप में जो कि बीसीसीआइ का पूर्ण सदस्य है, दूसरा नियम पांच (आइ) के तहत बैठक के अध्यक्ष के रूप में और तीसरा नियम-21 के तहत बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत। बीसीसीआइ के स्थानीय सदस्य के प्रतिनिधि के तौर पर अध्यक्ष का मत और बराबरी की स्थिति में निर्णायक मत निष्पक्ष और जायज हंै, लेकिन बैठक के अध्यक्ष के तौर पर अतिरिक्त मत का प्रावधान खत्म करने की जरूरत है।

बीसीसीआइ के संवैधानिक ढांचे में प्रस्तावित सुधारों के हिस्से के रूप में पैनल ने कहा कि बोर्ड के हर दिन के कामकाज को एक सीइओ को देखना चाहिए। पैनल ने कहा कि खिलाड़ियों का संघ भी होना चाहिए जिससे बोर्ड के कामकाज में खिलाड़ी भी अपनी बात रख सकें। न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, बीसीसीआइ के लिए एक सर्वोच्च परिषद होनी चाहिए जिसमें नौ सदस्य हों। इनमें से पांच सदस्य निर्वाचित, दो खिलाड़ी संघ के प्रतिनिधि और एक महिला होनी चाहिए। बीसीसीआइ के दैनंदिनी प्रबंधन को सीईओ देखेगा। उनकी मदद के लिए छह पेशेवर प्रबंधक होंगे और सीईओ और प्रबंधकों की टीम सर्वोच्च परिषद के प्रति जवाबदेह होगी।

लोढ़ा ने कहा कि खिलाड़ियों के संघ का गठन एक संचालन समिति करेगी जिसकी अगुवाई पूर्व गृह सचिव जी के पिल्लई करेंगे और इसमें पूर्व क्रिकेटर मोहिंदर अमरनाथ और अनिल कुंबले व पूर्व महिला क्रिकेटर डायना एडुल्जी शामिल होंगे। समिति ने कहा कि खिलाड़ियों के संघ में उन सभी को शामिल किया जाएगा जिन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेली हो।

लोढ़ा ने कहा कि खिलाड़ी संघ महज नाम के लिए नहीं होगा और वह यह सुनिश्चित करेगा कि वर्तमान और पूर्व क्रिकेटर बोर्ड में अपनी बात रख सकें। उन्होंने कहा, महिला और पुरुषों में अधिकतर खिलाड़ियों, जिन्होंने प्रथम श्रेणी मैच खेले हों और जो प्रतिस्पर्धी क्रिकेट से संन्यास ले चुके हों, वे इस संघ में शामिल होंगे। इस संस्था को कार्य आबंटित किए जाएंगे और इसे बीसीसीआइ की वित्तीय मदद से गठित और संचालित किया जाएगा। हालांकि वे कृपापात्र के रूप में काम नहीं करेंगे। इसका मकसद खेल के विकास और बेहतरी के लिए खिलाड़ियों को अपनी बात रखने की अनुमति देना, उन्हें अपनी विशेषज्ञता और कौशल का इस्तेमाल करना है।

आइपीएल, जो कि 2013 के स्पाट फिक्सिंग मामले के सामने आने के बाद साख के संकट से जूझ रहा है, के बारे में पैनल ने इसकी संचालन परिषद में बदलावों की सिफारिश की है। न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, आइपीएल के संदर्भ में सिफारिश यह है कि मुख्य संचालन संस्था को संचालन परिषद के रूप में जाना जाएगा जिसमें नौ सदस्य होंगे। बीसीसीआइ के सचिव और कोषाध्यक्ष इस आइपीएल संचालन परिषद के पदेन सदस्य होंगे। उन्होंने कहा, आइपीएल संचालन परिषद के दो अन्य सदस्य पूर्ण सदस्यों द्वारा नामित-निर्वाचित होंगे। बाकी पांच सदस्यों में से दो फ्रेंचाइजी द्वारा नामित, एक खिलाड़ी संघ का प्रतिनिधि और एक प्रतिनिधि भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से नामित होगा।

उन्होंने कहा, ‘आइपीएल से संबंधित सभी फैसले आइपीएल संचालन परिषद करेगी जिसमें वित्तीय मसलों से जुड़े फैसले भी शामिल हैं। हालांकि संचालन परिषद बीसीसीआइ की आम सभा के प्रति जवादेह होगी। इसलिए आइपीएल संचालन परिषद के लिए सीमित स्वायत्तता की पेशकश की गई है।’ समिति ने इसके साथ ही सिफारिश की कि एक व्यक्ति एक समय में बीसीसीआइ पदाधिकारी और राज्य संघ का पदाधिकारी दोनों पदों पर आसीन नहीं हो सकता है।

पैनल ने इसके साथ ही सुझाव दिया कि राज्य संघों को दिए जाने वाले अनुदान पर उचित निगरानी रखनी होगी। न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, हमने राज्य संघों के ढांचे और संविधान में एकरूपता की सिफारिश की है जैसे कि संघ का कोई आजीवन सदस्य या नौ साल से अधिक समय तक सदस्य नहीं होना चाहिए, राज्य संघों में सामाजिक और क्रिकेट गतिविधियों का पृथक्करण और प्राक्सी मतदान नहीं होना चाहिए। इनके कामकाज में पारदर्शिता लाने के लिए उनके खातों का लेखा परीक्षण बीसीसीआइ को करना चाहिए। उन्होंने कहा, उन्हें हितों के टकराव के संकल्प, आचार संहिता की व्यवस्था, व्यवहार और भ्रष्टाचार जैसे मसलों पर बीसीसीआइ के दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए। राज्य संघों द्वारा निर्देशों का किसी भी तरह से उल्लंघन पर वे बीसीसीआइ से मिलने वाली छूट और अनुदान के हक से वंचित हो सकते हैं।

समिति ने आचारनीति अधिकारी के कार्यालय के गठन की भी सिफारिश की जो हितों के टकराव से संबंधित मसलों को सुलझाने के लिए जिम्मेदार होगा। इसके अलावा पैनल ने बोर्ड के चुनाव कराने के लिए निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति की भी सिफारिश की।
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, हमने उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश को आचारनीति अधिकारी नियुक्त करने की सिफारिश की है। इसके अलावा निर्वाचन अधिकारी का पद सृजित करने का भी प्रस्ताव रखा है जो पदाधिकारियों के चुनावों से जुड़ी पूरी निर्वाचन प्रक्रिया को देखेगा। इसमें मतदाताओं की सूची को तैयार करना, प्रकाशन और पदाधिकारियों की पात्रता से जुड़े विवाद शामिल हैं।

उन्होंने कहा, निर्वाचन अधिकारी का नामांकन चुनावों से कम से कम दो सप्ताह पहले करना होगा और इस तरह का अधिकारी पूर्व चुनाव आयुक्त होना चाहिए। इसके अलावा पैनल ने कहा कि अंदरूनी टकरावों से निपटने के लिए बोर्ड का लोकपाल भी होना चाहिए। बोर्ड ने पिछले साल नवंबर में एपी शाह की नियुक्ति करके यह सुझाव पहले ही मान लिया है।

* मंत्री कोई पद हासिल नहीं करें
* सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता दी जाए
* आइपीएल संचालन परिषद में बदलाव की सिफारिश
* एक राज्य की नुमाइंदगी केवल एकइकाई करे
* बीसीसीआइ के लिए सीईओ पद का प्रस्ताव
* बोर्ड को आरटीआइ के तहत लाने का सुझाव