बजट आया और निकल गया। आंकड़ों में विशेषज्ञों की दिलचस्पी होती है लेकिन उनसे जनता बोर होती है। इसीलिए बजट लंबी बहसों का विषय न बन सका। लेकिन हर चैनल के पास उसके लिए अपना शीर्षक था जिसे देकर वे दर्शक-जनता को बताते चलते थे कि इस बजट का ऊंट किस करवट बैठेगा!
बजट पर टाइम्स नाउ की लाइन रही: किसान और गरीब का पक्षधर बजट! एनडीटीवी बजट पर उतना नहीं रीझता दिखा। उसने लाइन दी: किसानों की गो्रथ को तेज करने वाला बजट! इंडिया टुडे की लाइन रही: इंडिया की जगह भारत पर केंद्रित बजट! एबीपी पर रविशंकर प्रसाद ने लाइन दी: सूट-बूट की नहीं, सूझ-बूझ की सरकार! एक चैनल पर लिखा दिखा: गमछे और धोती की सरकार!
इंडिया टुडे ने वित्त विशेषज्ञों से बजट की रेटिंग करवाई जो दिलचस्प रही। कुछ ने उसे फर्स्टक्लास में पास किया तो कुछ ने डिंस्टिंक्शन तक दिया, लेकिन एकाध कंजूस परीक्षक ने जीरो या माइनस जीरो देकर अपनी बात कही।
बजट कवरेज की एक कमी यह दिखी कि आंकडेÞबाज विशेषज्ञों की प्रतिंिक्रयाएं पर्याप्त दिखीं लेकिन जो बजट की मार सहते हैं वे चेहरे बहुत नहंीं दिखे। अपने चैनल ऐसे अवसरों पर जनता को अक्सर खारिज कर देते हैं।
इसके बाद इशरत की कहानी जबर्दस्त तरीके से लौटी। टाइम्स नाउ ने इस कहानी को सबसे ज्यादा समय तक बताया उसे न्यूज का एजंडा तय करने वाला बताया। पुराने बडेÞ अफसर पिल्लई से प्रेमा श्रीदेवी का साक्षात्कार उससे पहले राजेंद्र्र कुमार की बातें और फिर अंत में मणि की बातें वाकई चौंकाने वाली थीं और शपथपत्र में पूर्व गृहमंत्री चिदंबरम द्वारा किए गए परिवर्तन पर उंगली रखती थीं। निशाना साफ था और लगने लगा कि पूर्व गृहमंत्री तो गए काम से। लेकिन कैसा जिगरा है उनका कि चेहरे पर एक शिकन तक नहीं और लीजिए एसआईटी के अध्किारी वर्माजी चैनलों में हाजिर और कहानी का दूसरा पाठ शुरू हो गया। इंडिया टुडे पर वर्मा ने बताया कि मैं मुख्य जांच अध्किारी था। इशरत की हत्या पूर्व नियोजित थी (प्री मेडीटेटेड)! इशरत आतंकवादी थी, इसका पक्का प्रमाण नहीं है और मैंने किसी को नहीं सताया; यानी मणिजी ने जो आरोप लगाया था कि जलती सिगरेट से मेरी पैंट जलाई गई थी वह सच नहीं है! सिगरेट से जलाई गई वह पैंट टाइम्स नाउ पर बार-बार दिखाई गई थी।
टाइम्स नाउ द्वारा पेश की गई इशरत की कहानी दूसरे चैनलों में दूसरे ट्विस्ट लेने लगी। कहानी रंग बदलने लगी। टाइम्स नाउ पर एक प्रवक्ता का आग्रह रहा कि इशरत केस की फाइलें फिर से खोली जाएं और शपथपत्र में से कौन-सा हिस्सा पूर्व गृहमंत्री ने कथित रूप में हटाया, इसकी जांच नए सिरे से होनी चाहिए!
सत्य हमारे चैनलों पर इसी तरह लुढ़कता हुआ नजर-सा नजर आता है। किस चैनल द्वारा पेश की जा रही कहानी कितनी सच है या झूठ, इसका पता लगाना मुश्किल। जांच हो तो जांच के सच का पता लगाना मुश्किल, क्योंकि आज हर बात ‘केंटेस्टेड’ रहती है!
कन्हैया की कहानी भी इसी तरह लौटी। जेएनयू छात्र यूनियन और कन्हैया जीते। पुलिस हारी। सरकार हारी। कन्हैया हीरो। बाकी जीरो। न्यायालय ने अंतरिम जमानत दे दी।
कन्हैया को अंतरिम जमानत मिलने की कहानी को पहले निधि ने अपने लेफ्ट राइट सेंटर में बहस का विषय बनाया। जमानत पर छूटने के आदेश पर निधि को एक आशंका रही कि कहीं यह केस ‘बैक फायर’ कर गया है? जवाब में हाजिर भाजपा के बाबुल सुप्रियो ने फरमाया कि हम अभी से कैसे मान लें कि पुलिस एकदम झूठ बोल रही है। अभी बहुत-से प्रमाण हो सकते हैं। पत्रकार आरती जैरथ ने कहा कि यह कैसे हुआ कि जेएनयू की उस घटना के कवरेज के लिए सिर्फ दो चैनलों को आने दिया गया और उन्हीं के वीडियो ‘बदल दिए गए’ निकले। उसके बाद कन्हैया की वकील वृंदा ग्रोवर ने मोरचा संभाला।
इस बीच टाइम्स नाउ पर पद्मजा ने कन्हैया प्रकरण पर रिपोर्ट की और बहस कराई। इस बहस की खासियत था अदालत का वह आदेश जिसे पढ़ कर सुनवाया गया, जिसने कन्हैया की जमानत को नए संदर्भ दिए। बताया गया कि कन्हैया को अंतरिम जमानत देते वक्त अदालत ने कन्हैया और जेएनयू को चेताया भी है। विस्तार से पढेÞ गए आदेश में कन्हैया की जमानत के साथ कई नसीहतें भी रहीं जिनमें कहा गया था कि राष्ट्र-विरोधी तत्त्वों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता! छात्रों को अपने अंदर झांकना चाहिए और आत्म-परीक्षण करना चाहिए। जेएनयू को चाहिए कि छात्रों को सही मार्ग चलाए। ऐसे में ‘रिमेडियल मैजर’ यानी ‘उपचारात्मक उपाय’ जरूरी है ताकि ऐसी घटनाएं न दुहर सकें! यह गेंगरीन की तरह है। जब दवाई से ठीक नहीं होता तो काटना पड़ता है।…
कन्हैया की जमानत का मुद्दा बरखा जी भी लेकर आर्इं लेकिन बरखा दत्त जी क्या करें, जब उनका गला वाकई खराब हो और पैनल में दो-दो हैवीवेट फाइटर मौजूद हों! भाजपा के संबित पात्रा और ‘आप’ के आशुतोष का वह संवाद इतना ‘आत्मीय’ और ‘द्वंद्वात्मक’ रहा कि जब दोनों महानुभाव एक दूसरे के बोलने के ऊपर बोलने पर अड़े रहे और टाइम खोटा होता रहा तो आजिज आकर बरखा जी को कहना पड़ा: अगर आप लोग चुप नहीं हुए तो मैं शो छोड़ कर चली जाऊंगी, सुमित्रा महाजन की तरह! कैसे झगड़ालू दिन आ गए हैं कि एंकर अपना ही शो छोड़ कर जाने की धमकी देने को मजबूर होने लगे हैं?
बुधवार की शाम लगा कि टाइम्स नाउ का दिल अचानक राहुल के लोकसभा के भाषण पर मुग्ध हो गया कि अपना बहस वाला कार्यक्रम रोक कर उनको लोकसभा में बोलते लाइव दिखाने लगा। राहुल ने अपनी व्यंग्यात्मक शैली के जरिए सत्तापक्ष पर कई बार चुटकियां कसीं। काले धन को गोरा करने की सरकार की ब्यूटी एंड लवली क्रीम योजना की, जेटली की खिल्ली उड़ाई। जेटली ने भी राहुल को बख्शा नहीं। ऐसी चुटकियां ही संसद की जान होती हैं।
हरियाणा के जाट आंदोलन का उपसंहार आंदोलन को बदनाम करने के लिए काफी दिखा। कई चैनल खेतों में पडेÞ स्त्रियों के अंत:वस्त्र और बहिर्वस्त्र दिखा कर गैंगरेप के सुराग ढूंढ़ने लगे। दो ट्रक ड्राइवरों ने बताया कि उनने स्त्रियों को खेतों में ले जाते देखा है। एक चैनल ने दिल्ली की एक लड़की की एफआईआर की बाबत भी बताया लेकिन कहानी आगे नहीं बढ़ पाई! खबर अचानक मर गई! क्यों?