नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विरोध और समर्थन का सिलसिला इस मुकाम तक पहुंच जाएगा कि विरोध रोकने के लिए समर्थन कर रहे लोग हथियार लेकर सड़क पर उतर आएंगे, शायद यह किसी ने सोचा भी न होगा। एक दिन पहले शाहीनबाग में चल रहे धरने के बीच एक हथियारबंद व्यक्ति घुस आया था और उसने धरने पर बैठे लोगों को धमकी दी। प्रदर्शनकारियों ने उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले किया। इसके अगले दिन यानी वृहस्पतिवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया से राजघाट तक शांतिपूर्वक पदयात्रा निकालने की तैयारी चल रही थी। उसी वक्त एक युवक पिस्तौल लहराते हुए आया और गोली चला दी। गनीमत है, गोली एक युवक की बांह में लगी और वह जख्मी भर हुआ।

जिस वक्त यह घटना घटी, वहां सैकड़ों पुलिस कर्मी तैनात थे। गोली चलाने वाले युवक ने वहां पहुंच कर वारदात को अंजाम देने का एलान फेसबुक पर पहले ही कर दिया था। यही नहीं, घटना स्थल पर पहुंच कर उसने अपने को लाइव यानी सीधा प्रसारित भी करना शुरू कर दिया था। वह ‘शाहीनबाग, खेल खत्म’ जैसे नारे लिख और बोल रहा था। वह जान पर खेल कर वहां पहुंचा था, इसलिए उसने अपने बाद अपने परिवार की हिफाजत की गुहार भी लगाई थी। मगर हैरानी की बात है कि हर वक्त मुस्तैदी का दावा करने वाली दिल्ली पुलिस वहां हाथ पर हाथ धरे खड़ी तमाशा देख रही थी।

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में करीब दो महीने से शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहे हैं। शाहीनबाग में महिलाओं का प्रदर्शन देश और दुनिया भर के लोगों का ध्यान खींच रहा है। बहुत सारे लोग उनके समर्थन में रोज जमा हो रहे हैं, तो बहुत सारे लोग उससे नाराज भी हैं। जाहिर है, पुलिस को वहां किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना होने की आशंका होनी चाहिए और वहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम की उससे अपेक्षा है। मगर एक व्यक्ति का पिस्तौल लेकर उस प्रदर्शन में घुस जाना और धमकाना पुलिस की तैयारियों पर सवाल खड़े करता है। इसी तरह राजघाट तक जाने वाली जिस पदयात्रा की तैयारी चल रही थी, उसके लिए पुलिस को पहले ही सूचित किया जा चुका था। पिछले कुछ दिनों से देश भर में ऐसे प्रदर्शनकारियों पर जिस तरह के हमले हो रहे हैं, उन्हें देखते हुए दिल्ली पुलिस को यहां किसी अप्रिय घटना की आशंका कैसे नहीं रही होगी! फिर कैसे कोई सिरफिरा फेसबुक पर सीधा प्रसारण करते हुए प्रदर्शनकारियों के बीच आकर गोली चला गया और पुलिस चुपचाप खड़ी देखती रही।

इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। पहले जामिया में प्रदर्शन के दौरान विश्वविद्यालय परिसर में घुस कर छात्र-छात्राओं पर बर्बरतापूर्वक लाठी चलाने को लेकर उसकी जवाबदेही रेखांकित हुई थी। उसके बाद जब जेएनयू में कुछ अज्ञात हमलावरों ने घुस कर घंटों मार-पीट की और पुलिस गेट पर खड़ी रही, उन्हें रोकने का प्रयास नहीं किया, तब भी उसकी नीयत पर अंगुलियां उठी थीं। अब जामिया के पास रैली की तैयारी कर रहे लोगों पर गोली चलने की घटना ने उसकी साख को चोट पहुंचाई है।

छिपा नहीं है कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों को धमकाने और उन पर हिंसक हमले करने वाले कौन हैं। किसी सरकारी फैसले का शांतिपूर्ण और तार्किक विरोध हर नागरिक का अधिकार है, उसे हिंसक तरीके से रोकने का प्रयास किसी भी तरीके से लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता। हालांकि ताजा घटना में पुलिस ने हमलावर युवक को हिरासत में ले लिया गया है, पर इसके लिए पुलिस अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकती।