नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों के बावजूद अगर यमुना की हालत और खराब होती जा रही है तो इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा? यह छिपी बात नहीं है कि यमुना का प्रदूषण दूर करने के लिए सरकार और संबंधित महकमों ने जितने भी प्रयास किए हैं, अमूमन वे सभी नाकाम दिखते हैं। आखिर क्या वजह है कि इस मद में भारी राशि खर्च किए जाने और यमुना को स्वच्छ बनाने के तमाम दावों के उलट यह नदी आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है? दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की एक ताजा रपट में बताया गया है कि सितंबर महीने में यमुना में प्रदूषण अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।
रपट में यह तथ्य भी दर्ज किया गया है कि फरवरी, 2022 के बाद यह प्रदूषण का उच्चतम स्तर है जब अशोधित जलमल का एक प्रमुख संकेतक ‘फीगल कोलिफार्म जीवाणु’ का स्तर तिरसठ लाख पाया गया। यह स्थिति तब है जब इस वर्ष अपेक्षया अच्छी बरसात से जल प्रवाह और उसमें आक्सीजन की मात्रा में बढ़ोतरी हुई और इसमें खतरनाक जीवाणुओं के बह जाने की उम्मीद की गई थी। मगर उनका स्तर उच्च बना रहा।
दिल्ली में है यमुना सबसे ज्यादा प्रदूषित
विचित्र है कि यमुना को स्वच्छ बनाने पर सबसे ज्यादा जोर दिल्ली में दिया जाता है, लेकिन यह सबसे ज्यादा इसी महानगर में प्रदूषित पाई जाती है। अन्य शहरों से गुजरते हुए भी यमुना का यही हाल हो जाता है। अलग-अलग शहरों में औद्योगिक अपशिष्ट से लेकर सीवर आदि की गंदगी इस नदी में बहाए जाने पर रोक लगाने को लेकर अब तक की घोषणाओं की हकीकत यह है कि इस वर्ष ज्यादा बारिश के बावजूद यमुना में प्रदूषण का स्तर सबसे ज्यादा पाया गया।
संपादकीय: भीड़भाड़ वाली जगहों से खत्म नहीं हो रहा हादसों का सिलसिला, एयर शो के दौरान हुई अनहोनी
दिल्ली के बड़े हिस्से में पेयजल की आपूर्ति इसी नदी के पानी को शोधित कर की जाती है। मगर दिल्ली में अधिकांश नाले, पड़ोसी राज्यों के कीटनाशक और औद्योगिक अपशिष्ट जिस तरह यमुना में मिल जाते हैं, वैसे में इससे तैयार पेयजल के जोखिम का अंदाजा लगाया जा सकता है। सवाल है कि अरबों रुपए की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के बावजूद इस नदी पर अस्तित्व का संकट क्यों खड़ा है और यह और ज्यादा प्रदूषित क्यों होती जा रही है!