सार्वजनिक जीवन में बढ़ती भागीदारी के बीच आमतौर पर हर क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ी है, मगर सैन्य बलों में स्वास्थ्य जैसी कुछ खास सेवाओं को छोड़ दें, तो उनकी संख्या संतोषजनक नहीं थी। इसीलिए एक तरह से वहां असंतुलन दिखता रहा। हालांकि कुछ समय पहले इस क्षेत्र में महिलाओं को मौके देने को लेकर कई स्तर पर प्रयास शुरू हुए और अब उनके नतीजे आने शुरू हो गए हैं। खबर के मुताबिक, आजादी के पचहत्तर वर्षों के बाद अब पहली बार यह आंकड़ा सामने आया है कि मौजूदा वर्ष यानी 2023 में सेना ने कुल एक सौ अट्ठाईस महिलाओं की स्थायी नियुक्ति के साथ-साथ कर्नल जैसे उच्च पद के लिए उनका चयन किया है।
इसके लिए इस वर्ष कुल चार बार पदोन्नति बोर्ड का गठन किया गया और अब चयनित महिला अधिकारियों को सेना में युद्ध के मोर्चे को छोड़ कर बाकी अन्य शाखाओं में तैनात करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। गौरतलब है कि इसी वर्ष जनवरी में पदोन्नति बोर्ड ने एक सौ आठ महिलाओं को स्थायी नियुक्ति के साथ कर्नल पद के लिए चुना था। उसके बाद अब महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से सेना के उच्च पदों के ढांचे को समावेशी बनाने की दिशा में एक निरंतरता देखी जा सकती है।
जाहिर है, पिछले कुछ समय से सेना में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के मकसद से जो प्रक्रिया चल रही थी, उसमें इसे एक सकारात्मक उपलब्धि के तौर पर देखा जाएगा। दरअसल, सेना में कर्नल जैसे पद पर बदलती तस्वीर का मुख्य आधार करीब तीन वर्ष पहले सर्वोच्च न्यायालय का आया वह ऐतिहासिक फैसला है, जिसके तहत महिला अधिकारियों के लिए स्थायी आयोग की व्यवस्था की गई। इसके बाद ही सेना में महिलाओं की आगे की उन्नति और पदोन्नति का मार्ग खुला। इसी क्रम में महिलाओं के लिए नेतृत्व और उच्च प्रबंधन पाठ्यक्रम शुरू किया गया।
हालांकि अन्य लगभग सभी क्षेत्रों में मौका मिलने पर महिलाओं ने जिस तरह अपनी क्षमताएं साबित की हैं, उसके मद्देनजर सेना में भी उनके लिए अवसर बनने में कोई अड़चन आनी नहीं चाहिए थी। मगर कई वजहों से इससे संबंधित सवाल उठने पर नाहक ही टालमटोल होती रही। निश्चित रूप से इस मसले पर खड़ी होने वाली बाधाओं के पीछे सामाजिक धारणाओं पर आधारित एक गैरजरूरी पूर्वाग्रह रहा, जिसमें गलत दलीलों पर महिलाओं को कम करके आंका जाता रहा है।
इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी, 2020 में स्थिति को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया कि महिलाएं भी सेना में पुरुषों की तरह कमांड यानी किसी सैन्य टुकड़ी के नेतृत्व का दायित्व संभाल सकती हैं। शीर्ष अदालत ने सामाजिक धारणाओं के आधार पर महिलाओं को समान मौके न मिलने को परेशान करने वाला, समानता के खिलाफ और अस्वीकार्य बताया था। इस संदर्भ में अदालत ने यह भी कहा कि सेना की सभी महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन मिले, चाहे वे कितने भी समय से कार्यरत हों। केंद्र सरकार महिलाओं के बारे में मानसिकता बदले और सेना में समानता लाने के लिए कदम उठाए।
कहा जा सकता है कि जो अवसर महिलाओं को एक स्वाभाविक व्यवस्था के तहत मिलने चाहिए थे, उसके लिए सुप्रीम कोर्ट को आगे आना पड़ा। जबकि यह एक जगजाहिर तथ्य है कि सामान्य जीवन से लेकर शिक्षा या नौकरी के क्षेत्र में सेना तक के ढांचे में जहां भी महिलाओं को मौका मिला है, वहां की समग्र तस्वीर और कार्य की गुणवत्ता में बेहतरी आई है।