इसमें कोई दोराय नहीं कि इंटरनेट की सुविधा ने दुनिया के दायरे को बहुत छोटा बना दिया है, लेकिन इसके समांतर एक सच यह भी है कि आभासी दुनिया में सोशल मीडिया के बहुतेरे मंचों पर सीमाओं से परे लोगों के बीच संवाद का विस्तार हुआ है, तो यथार्थ के धरातल पर लोग एक-दूसरे से दूर भी होते गए हैं।

यह बहुत संभव है कि आस-पड़ोस के बच्चे सोशल मीडिया के किसी मंच पर तो आपस में दोस्त हों, संवाद करते हों और साथ में कोई गेम खेलते हों, लेकिन वास्तव में वे कभी नहीं मिलते। यानी आभासी दुनिया में बच्चों का दायरा विस्तृत होता है, लेकिन यथार्थ के धरातल पर वे अकेले होते हैं। ऐसे में बिना आहट के एकाकीपन का दंश बच्चों के भीतर उतरता है, जो उन्हें आत्मघाती अवसाद के घेरे में ला दे सकता है। किसी एप के संजाल में फंसे बच्चों के मनोवैज्ञानिक परेशानियों का शिकार होने से लेकर आत्महत्या करने तक की खबरें आती रही हैं।

दुनिया भर में सोशल मीडिया पर अति-सक्रियता के मानसिक और शारीरिक दुष्प्रभावों के मद्देनजर बच्चों के लिए इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने या सीमित करने के सुझाव सामने आते रहे हैं। इस क्रम में आस्ट्रेलिया ने एक ठोस पहल करते हुए अपने यहां सोलह वर्ष से कम के बच्चों के लिए सोशल मीडिया के उपयोग पर बुधवार से पाबंदी लागू कर दी है। हालांकि संदेश भेजने और गेम खेलने वाले कुछ मंचों को इस प्रतिबंध से अलग रखा गया है।

आस्ट्रेलिया में इस सख्त नियम के लागू होने के बाद बच्चों को उनका बचपन वापस मिलने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रतिबंध के लागू होने का स्वरूप क्या है और क्या वास्तव में सोशल मीडिया के संजाल से बच्चे बच सकेंगे।

आज आधुनिक तकनीकी के दौर में इंटरनेट पर मौजूद किसी मंच पर पहुंचने के लिए कुछ बच्चे भी जिस तरह वैकल्पिक और उचित-अनुचित रास्ता निकाल लेते हैं, वैसे में पाबंदी कितनी कामयाब होगी, यह देखने की बात होगी। वहीं सोशल मीडिया के उपयोग के लिए निर्धारित उम्र के प्रमाण के तौर पर अगर किसी दस्तावेज की मांग की जाती है, तो उसकी संवेदनशीलता, सुरक्षा और दुरुपयोग को लेकर नए सवाल खड़े होंगे!

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