देश के कई राज्यों में मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का काम जारी है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसे अंजाम देने वाले बूथ स्तरीय अधिकारियों यानी बीएलओ के सामने अब भी कई तरह की चुनौतियां और मुश्किलें पेश आ रही हैं। कुछ राज्यों से ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि काम से उपजे तनाव और दबाव की वजह से परेशान होकर कई बीएलओ ने आत्महत्या कर ली या फिर नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

इस मसले को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए निर्वाचन आयोग को काम के तनाव को कम करने के लिए कुछ निर्देश दिए थे। फिर भी हालत यह है कि देश के कई इलाकों में बीएलओ को लगातार दबाव के बीच काम करना पड़ रहा है। मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने के लिए लोगों के घरों में आखिर उन्हें ही जाना पड़ता है, जहां कभी उन्हें अलग-अलग कारणों से धमकी देने की खबरें आई हैं। वहीं सीमित अवधि में काम निपटाने का तनाव भी उन्हें मुश्किल में डाल रहा है।

इसके मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बीएलओ और अन्य अधिकारियों को ‘धमकी’ दिए जाने के मामले को गंभीरता से लिया और आयोग से कहा कि वह ऐसी घटनाओं को अदालत के संज्ञान में लाए, अन्यथा अराजकता फैल जाएगी।

निर्वाचन आयोग के तहत चल रहे मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के काम का प्रारूप पहले ही ऐसा तय किया जाना चाहिए था, जिससे काम करने वाले व्यक्ति से लेकर आम जनता तक को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। मगर इसके लिए शीर्ष अदालत को आयोग को काम करने के तरीके के बारे में बताना पड़ता है। इस बीच आयोग ने पुनरीक्षण अभियान के लिए एक सप्ताह का समय बढ़ाया, लेकिन इतने व्यापक काम को बहुत कम समय में पूरा करने का दबाव बनाया जाएगा, तो उसमें चूक की आशंका बनी रहेगी।

सवाल है कि आखिर निर्वाचन आयोग ने कामकाज का यह कैसा प्रारूप तैयार किया है कि मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण का सारा बोझ प्रकारांतर से बीएलओ को ही उठाना पड़ रहा है। ज्यादा काम की वजह से अगर कोई चूक होती है तो एक ओर उन्हें आयोग की ओर से कार्रवाई का डर रहता है, तो दूसरी ओर आम नागरिक भी उनसे ही सवाल करते हैं।