बरसात के मौसम में जलभराव और उमस भरी गर्मी की वजह से सांप अपने बिल से बाहर निकलकर सुरक्षित ठिकाने ढ़ूंढ़ने लगते हैं और इस कारण सर्पदंश की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर में हर साल लगभग पैंतालीस से चौवन लाख लोग सर्पदंश का शिकार होते हैं, जिनमें से करीब एक लाख अड़तीस हजार लोगों की मौत हो जाती है। सर्पदंश के अधिकांश मामले अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में सामने आते हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में सालाना तीस से चालीस लाख सर्पदंश की घटनाएं होती हैं, जिनमें से करीब पचास हजार लोगों की मौत हो जाती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में पाए जाने वाले सत्तर फीसद सांप या तो जहरीले नहीं होते हैं, या फिर उनका विष मनुष्य के शरीर को गंभीर नुकसान नहीं पहुंचाता है। इसके बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन का दावा है कि सर्पदंश से वैश्विक स्तर पर हर वर्ष होने वाली मौतों में से करीब चालीस फीसद भारत में होती हैं।

जाहिर है कि भारत में सामाजिक और सरकारी स्तर पर जागरूकता का अभाव और व्यवस्थागत खामियां व्याप्त हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों में आज भी सर्पदंश से पीड़ित को तत्काल अस्पताल ले जाने के बजाय झाड़-फूंक के लिए ओझा के पास ले जाने की घटनाएं आम हैं। बाद में जब पीड़ित को अस्पताल ले जाया जाता है, तब तक इलाज में देरी हो जाती है। यह भी देखा गया है कि सर्पदंश के बाद पीड़ित व्यक्ति बहुत ज्यादा घबरा जाता है और कई बार हृदयाघात से उसकी मौत हो जाती है। यों आस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने सर्पदंश के इलाज के लिए एक नई कारगर दवा बनाने का दावा कर दुनिया में एक नई उम्मीद जगाई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह दवा न केवल मनुष्य के शरीर में सांप के जहर के फैलने की गति को धीमा कर सकती है, बल्कि यह ऊतक एवं कोशिका के क्षय को रोकने में भी सक्षम है। मगर अपने देश के सरकारी अस्पतालों में सर्प विष-रोधी दवा की कमी से संबंधित खबरें अक्सर आती रहती हैं। ऐसी स्थिति में मरीज को समय पर दवा नहीं मिलने से उसकी मौत स्वाभाविक है। सरकार को इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है।