इसी वर्ष अप्रैल की शुरुआत में संसद से पारित होने के बाद वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 अस्तित्व में आया, तभी से इसके कुछ प्रावधानों को लेकर मुसलिम समुदाय के भीतर कई असहमतियां पैदा हुई थीं और इस पर रोक की मांग की जा रही थी। प्रतिक्रियाओं के समांतर जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में गया, तब यह उम्मीद जगी कि इस कानून पर उभरी असहमतियों पर कोई स्पष्टता कायम हो सकेगी।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम से जुड़े मामले पर जो अंतरिम फैसला दिया, उस पर प्रभावित पक्षों की सकारात्मक प्रतिक्रिया इस पर उभरे विवाद को सुलझाने में मददगार साबित हो सकती है। अदालत ने वक्फ कानून पर रोक लगाने की मांग को मानने से तो इनकार कर दिया, लेकिन अधिनियम के कुछ ऐसे प्रावधानों पर रोक लगा दी, जिन्हें याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी थी। निश्चित रूप से इसके किसी निष्कर्ष तक पहुंचने में शायद वक्त लगेगा, मगर इस मुद्दे पर जिस स्तर के तीखे मतभेद खड़े हो गए थे, उसमें शीर्ष अदालत का फैसला विवाद को अंतिम तौर पर खत्म करने की दिशा में सहायक साबित हो सकता है।
वक्फ अधिनियम 2025: जानिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की 7 बड़ी बातें
गौरतलब है कि वक्फ संशोधन अधिनियम में सबसे बड़ी आपत्ति जिलाधिकारी को सौंपे गए अधिकार पर जताई गई थी। इसमें वक्फ बोर्ड के सर्वे का अधिकार खत्म कर दिया गया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने अधिनियम की उस धारा पर रोक लगा दी है, जिसमें जिलाधिकारी को यह तय करने का अधिकार दिया गया था कि कोई घोषित वक्फ संपत्ति सरकारी संपत्ति है या नहीं। अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि केंद्रीय वक्फ बोर्ड में चार और राज्य के बोर्ड में तीन से ज्यादा गैर-मुसलिम सदस्य नहीं होने चाहिए। फिलहाल केंद्रीय बोर्ड में बाईस और राज्य के वक्फ बोर्डों में कुल ग्यारह सदस्य होते हैं। इसी तरह, एक अहम निर्देश के तहत अदालत ने उस प्रावधान पर भी नए नियम बनने तक के लिए रोक लगा दी, जिसके तहत पांच वर्ष से इस्लाम का अनुयायी रहा व्यक्ति ही अपनी संपत्ति वक्फ को दान कर सकता था।
जाहिर है, सुप्रीम कोर्ट ने इस बेहद संवेदनशील मसले पर फैसला देते हुए काफी हद तक संतुलित रुख अख्तियार किया। यही वजह है कि एक ओर इस अंतरिम निर्णय को मुसलिम पक्ष ने राहत देने वाला बताया है, वहीं इस अधिनियम के समर्थन में हस्तक्षेप करने वाले याचिकाकर्ताओं ने भी संतोष जताया और केंद्र सरकार भी स्वाभाविक रूप से खुश है कि अदालत ने इस पूरे कानून पर रोक नहीं लगाई। इसके बावजूद, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि वक्फ संशोधन अधिनियम को अंतिम रूप देने से पहले अगर संबंधित पक्षों से भी इस कानून के सभी संवेदनशील पहलुओं पर व्यापक विचार-विमर्श किया जाता, उठाई गई आपत्तियों का निराकरण किया जाता तो क्या इसे अदालत के कठघरे में ले जाने से नहीं बचाया जा सकता था!
दरअसल, देश के लोकतांत्रिक ढांचे में यह उम्मीद की जाती है कि कोई भी कानून बनाने या उसमें बदलाव लाने के दौरान उन तबकों-समूहों की राय ली जाएगी, उनका ध्यान रखा जाएगा और उन प्रश्नों को हल किया जाएगा, जिनकी वजह से विवाद की स्थिति बनती है। इसके लिए अदालती हस्तक्षेप की नौबत नहीं आनी चाहिए। बहरहाल, वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल स्थिति स्पष्ट कर दी है और उम्मीद की जानी चाहिए कि अब इससे संबंधित अन्य पहलुओं पर एक व्यापक सहमति बनेगी।