जलवायु परिवर्तन का असर अब दुनिया की बड़ी झीलों पर भी नजर आने लगा है। एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि दुनिया की करीब आधी बड़ी झीलों का जलस्तर कम हो रहा है। ऐसे समय में जब पेयजल का गंभीर संकट महसूस किया जा रहा है और पानी के प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है, यह नया खुलासा और चिंता पैदा करता है। अमेरिका के वर्जीनिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने लगातार अट्ठाईस सालों तक अध्ययन करने और उपग्रह से ली गई लाखों तस्वीरों के आधार पर यह खुलासा किया है।

सरकारों और सामाजिक संगठनों के लिए चेतावनी है यह

झीलों का जलस्तर कम होने की बड़ी वजह मानव उपभोग और बढ़ती गर्मी बताई गई है। इस तरह सरकारों और जल संचय के लिए काम करने वाले सामाजिक संगठनों के लिए यह चेतावनी की घंटी है। झीलें एक प्रकार का प्राकृतिक जलाशय हैं, जिनके पानी का उपभोग पेयजल और उद्योगों आदि के काम में किया जाता है। जिस तरह नदियों का जलस्तर घटते जाने की वजह से दुनिया के अनेक शहरों में पेयजल का गहरा संकट पैदा हो गया है, उसी तरह झीलें अगर सिकुड़ती गईं, तो यह संकट और गंभीर होता जाएगा।

झीलों, जलाशयों और अन्य प्राकृतिक जलस्रोतों के सूखते जाने को लेकर लगातार अध्ययन होते रहे हैं, उनके आंकड़ों से वजहें भी स्पष्ट हैं। मगर उनके संरक्षण को लेकर जिन व्यावहारिक उपायों की अपेक्षा की जाती है, उन पर अमल नहीं हो पाता। झीलों का स्रोत आमतौर पर पहाड़ों से आने वाला पानी होता है। वह बर्फ के पिघलने या फिर वर्षाजल के रूप में संचित होता है। मगर जलवायु परिवर्तन की वजह से जिस तरह दुनिया भर में गर्मी बढ़ रही है, उसमें कई जगह पहाड़ों पर पहले की तरह बर्फ नहीं जमती और न पर्याप्त वर्षा होती है।

फिर उनसे जो पानी पैदा होता है, उसका अनुपात बिगड़ चुका है। बरसात की अवधि कम और बारिश की मात्रा कम या अधिक होने से या तो झीलों में पर्याप्त पानी जमा नहीं हो पाता या फिर बहुत कम समय में बहुत ज्यादा पानी इकट्ठा होकर नीचे की तरफ बह जाता है और फिर साल के बाकी दिनों में उनमें पानी न आने से उनका स्तर नीचे चला जाता है।

दूसरा कारण पहाड़ों पर लगातार बढ़ रही पर्यटन संबंधी और औद्योगिक-वाणिज्यिक गतिविधियां हैं। हमारे यहां उत्तराखंड के पहाड़ इसके बड़े उदाहरण हैं। वहां बड़े पैमाने पर शुरू हुई विकास परियोजनाओं की वजह से न सिर्फ पहाड़ों के धसकने और स्खलित होने की घटनाएं बढ़ी हैं, बल्कि अनेक प्राकृतिक जल स्रोतों पर संकट मंडराने लगा है। वहां की नदियों और पहाड़ी झरनों का मार्ग अवरुद्ध हुआ है। बहुत सारी झीलों के पानी का अतार्किक दोहन बढ़ा है। उनका बड़े पैमाने पर औद्योगिक इकाइयों के लिए इस्तेमाल होने लगा है।

यह भी उनके जल स्तर के घटने का बड़ा कारण है। पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने का एक नुकसान यह भी हुआ है कि झीलों में व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ी हैं, जिसके चलते उनमें कचरा जमा होता गया है। उनकी नियमित गाद निकालने की व्यवस्था न होने से वे उथली होती गई हैं। कई झीलों का पाट सिकुड़ता गया है। यह सरकारों की उपेक्षा का नतीजा तो है ही, सामाजिक संगठनों की उदासीनता का भी पता देता है। पहले सामुदायिक सतर्कता से प्राकृतिक जल स्रोतों की सुरक्षा सुनिश्चित होती थी, मगर अब वह परंपरा लगभग समाप्त हो गई है। झीलों की सेहत सुधारनी है, तो यह उदासीनता और उपेक्षा का भाव त्यागना होगा।