बिहार में भोजपुर जिले के बिहिया शहर में एक महिला को निर्वस्त्र करके बाजार में घुमाने की जो दहला देने वाली घटना सामने आई है, वह एक ओर समाज में फैलती भयावह अराजकता का उदाहरण है तो दूसरी ओर कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर राज्य सरकार की ढीली पड़ती लगाम का भी सबूत है। सोमवार को बिहिया में एक युवक का शव रेल की पटरी के पास मिला था। इसके बाद जमा हुए लोगों ने उसकी हत्या के लिए महज शक के आधार पर पास में स्थित घर की एक महिला को जिम्मेदार मान लिया और फिर लोगों ने महिला का घर आग के हवाले कर दिया, उसके कपड़े फाड़ डाले, बुरी तरह मारा-पीटा और सड़कों पर घुमाया। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि लोगों की अराजक भीड़ तीन घंटे से ज्यादा समय तक यह सब करती रही और लोगों के साथ-साथ वहां मौजूद पुलिसकर्मी भी तमाशाई बने रहे। बाद में जब भारी तादाद में पुलिस बल को बुलाया गया, तब जाकर महिला को छुड़ाया जा सका। सवाल है कि जब बड़ी संख्या में लोगों का जमावड़ा हो गया था, तो वहां मौजूद पुलिसकर्मी और उनके अधिकारियों के अलावा समय पर ज्यादा पुलिसबल की सहायता क्यों नहीं मुहैया कराई गई।
हैरानी की बात यह है कि नीतीश कुमार ने सत्ता में आने से पहले सबसे ज्यादा राज्य में कानून-व्यवस्था के नाकाम होने और ‘जंगलराज’ का हवाला दिया था और दावा किया था कि वे सब ठीक कर देंगे। लेकिन राज्य में अपराधों के ग्राफ में जिस तेजी से बढ़ोतरी हुई है, उससे उनके दावे जमीन पर बेहद लाचारी की हालत में दिखाई देते हैं। कई बार लगता है कि कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर सरकार नाकाम हो चुकी है। कुछ समय पहले राज्य के कई आश्रय-स्थलों में बच्चियों के खिलाफ यौन-हिंसा के जैसे मामलों का खुलासा हुआ और उनमें ऊंचे रसूख वाले लोगों के अलावा कुछ नेताओं के भी नाम आए हैं, वे यह बताने के लिए काफी हैं कि राज्य में कानून-व्यवस्था की क्या दशा है। बिहिया की ताजा घटना में आखिर लोगों को इस बात का भरोसा क्यों नहीं हुआ कि अगर युवक की हत्या हुई है तो उसकी जांच-पड़ताल और दोषियों को सजा दिलाने का काम पुलिस करेगी? किन वजहों से बड़ी संख्या में जुटे लोगों ने कानून अपने हाथ में ले लिया और महिला के साथ बर्बर बर्ताव किया? मामले के तूल पकड़ने के बाद एक दर्जन से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन बिहिया में जो हुआ, उसने हालात से निपटने की पुलिस की क्षमता पर सवाल खड़ा किया है।
यह पहलू भी बेहद चिंताजनक है कि हाल के दिनों में न केवल बिहार में, बल्कि दूसरी जगहों पर भी बच्चा चोरी या गोहत्या के शक में जमा हुए लोग भीड़ बन जा रहे हैं और पुलिस या कानूनी कार्रवाई पर भरोसा करने के बजाय किसी निर्दोष को भी बर्बरता से पीट-पीट कर मार डालने में संकोच नहीं कर रहे हैं। कुछ लोग अपनी किसी राय से इत्तिफाक नहीं रखने को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं और असहमति जताने वाले पर जानलेवा हमला कर बैठते हैं। पिछले कुछ समय से भीड़तंत्र की यह प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ी है और अब यह इसने एक गंभीर समस्या की शक्ल अख्तियार कर ली है। अगर इस तरह की घटनाओं पर काबू पाने के लिए व्यापक पैमाने पर तुरंत सख्त कदम नहीं उठाए गए और भीड़ में तब्दील होकर हिंसा करने वाले लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की गई तो आने वाले समय में इस अराजकता पर काबू पाना आसान नहीं होगा।