मानसून अभी लौट ही रहा था कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश से तबाही मच गई। इस मौसम में कई राज्यों में मूसलाधार बारिश और बाढ़ ने सैकड़ों नागरिकों का जीवन तो बेहाल किया ही, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं से निजी एवं सार्वजनिक संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा। कई लोगों की जान चली गईं। फसलों का भी नुकसान हुआ। दशकों बाद पंजाब ने सबसे बुरा दौर देखा। कोई दोराय नहीं कि जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव भारत में भी दिखने लगा है।

ऋतु चक्र बिगड़ने से अधिक गर्मी पड़ने के साथ अब बेतहाशा बारिश भी होने लगी है। इस बार उत्तराखंड में 1,343.2 मिलीमीटर बारिश हुई, जो कि सामान्य से बाईस फीसद अधिक है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश में 1,010.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। यह सामान्य से छियालीस फीसद अधिक रही। भारतीय मौसम विभाग ने पश्चिमी विक्षोभ के लगातार सक्रिय रहने को इस अतिरिक्त बारिश का कारण बताया है। मगर इस विक्षोभ की निरतंरता को समझने की जरूरत है।

पूर्वी और पश्चिमी हवाओं के टकराव से हिमाचल व उत्तराखंड में भारी वर्षा, बादल फटने से बाढ़ और तबाही

हालांकि, मध्य भारत में भी इस बार सामान्य से दस फीसद अधिक बारिश हुई है, लेकिन हिमालयी राज्यों में अधिक बारिश क्या प्रकृति की चेतावनी है, जिसकी हम लगातार उपेक्षा करते आए हैं। मौसम का मिजाज बिगड़ने की सबसे बड़ी वजह यह है कि मनुष्य प्रकृति को संरक्षित करने के बजाय उसे लगातार क्षति पहुंचा रहा है। अपनी सुविधा के लिए पहाड़ों को लगातार छलनी किया जा रहा है। शहरों से पर्यटन के लिए जाने वाले लोगों के लिए वहां एक के बाद एक निर्माण से भी स्थितियां गंभीर हुई हैं। रही-सही कसर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने पूरी कर दी है।

Blog: बारिश, भूस्खलन और बर्बादी, पहाड़ों में कुदरत का गुस्सा, जिम्मेदार कौन; क्या इंसान ने खुद बुला ली आफत?

नतीजा पहाड़ इतने कमजोर हो गए हैं कि भारी बारिश और बादल फटने पर वे खुद को संभाल नहीं पाते और फिर भयावह मंजर सामने आता है। मैदानों के रिहाइशी इलाके तो उजड़ते ही हैं, राजमार्ग तक बह जाते हैं। हम भले ही विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं, मगर अब इसकी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। ऐसे में प्रकृति के संरक्षण के लिए एक सीमा रेखा तो खींचनी ही होगी।