उत्तराखंड के अल्मोड़ा में सोमवार को हुए त्रासद बस हादसे से एक बार फिर यही साबित हुआ है कि आए दिन बड़ी दुर्घटनाओं के बावजूद हर स्तर पर लापरवाही बनी हुई है और कोई सबक लेना जरूरी नहीं समझा जाता। गौरतलब है कि पहाड़ की घुमावदार सड़कों से गुजरने वाली बस में क्षमता से ज्यादा यात्रियों को लाद लिया गया था। इसका नतीजा यह हुआ एक मोड़ पर बस असंतुलित होकर फिसली और डेढ़ सौ मीटर गहरी खाई में गिर गई। उसमें सवार कम से कम छत्तीस लोगों की जान चली गई और कई बुरी तरह घायल हो गए।
सड़कों पर अतिरिक्त इंतजाम करने की भी अनदेखी
खबरों के मुताबिक, बस पुरानी और खस्ताहाल थी। सवाल है कि क्या वह बस किसी छिपे तरीके या रास्ते से गुजर रही थी कि उसकी खराब हालत पर पुलिस या किसी जिम्मेदार व्यक्ति की नजर नहीं पड़ी और उसे रोकना जरूरी नहीं समझा गया? घटनास्थल से प्राप्त ब्योरों से ऐसा लगता है कि इस त्रासद हादसे के लिए न सिर्फ बस चालक या मालिक जिम्मेदार हैं, बल्कि पुलिस या प्रशासन के अधिकारियों ने भी अपने दायित्व से मुंह मोड़ लिया था।
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विचित्र है कि पहाड़ी इलाकों में काफी ऊंचाई पर बनी संकरी सड़कों के मद्देनजर खतरनाक या उच्च जोखिम वाली जगहों की पहचान करके वहां सुरक्षा के लिहाज से अतिरिक्त इंतजाम करने की भी अनदेखी की जाती है। अल्मोड़ा की सड़कें कुछ अधिक जोखिमभरी मानी जाती हैं, इसलिए उन पर अतिरिक्त सावधानी की दरकार होती है। जिस जगह बस खाई में गिर गई, अगर वहां ‘पैराफिट’ या ‘क्रैश बैरियर’ होता तो ऐसी त्रासदी से बच पाने की उम्मीद की जा सकती थी।
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मगर ज्यादा यात्रियों की वजह से बस असंतुलित हुई और चालक उसे संभाल नहीं पाया, बस सीधे खाई में जा गिरी। जबकि पहाड़ी इलाकों में सड़कों के किनारे जरूरी सुरक्षा घेरे को मजबूत और दुरुस्त रखने को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। मगर विडंबना है कि हर समय चौड़ी सड़कों और विकास का राग अलापती सरकारें हादसों की वास्तविक स्थितियों और वजहों से तब तक आंखें मूंदें रखती हैं, जब तक कोई बड़ा हादसा न हो जाए और उसमें नाहक ही लोगों की जान न चली जाए।