पिछले कुछ वर्षों से उत्तर प्रदेश में अपराध रोकने के लिए हर स्तर पर चौकसी बरतने और अपराधियों पर नकेल कसने का दावा किया जा रहा है। इस क्रम में कई बार इतनी तेजी देखी गई कि मामले की ठीक से पड़ताल करने में पर्याप्त गंभीरता नहीं बरती गई। गौरतलब है कि बरेली में एक व्यक्ति को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और उसे तीन वर्ष तक जेल में बंद रहना पड़ा। मगर विचित्र है कि जेल में बंद रहे शख्स पर जिस व्यक्ति की हत्या का आरोप था, वह जिंदा है।
ट्रेन में विवाद के बाद हत्या के आरोप के बाद एक शव पाया गया था और मृतक के परिजनों की पहचान के आधार पर ही आरोपी की गिरफ्तारी हुई थी। इस मामले का भी खुलासा नहीं होता, अगर जिंदा पाए गए व्यक्ति के परिजनों ने उसका वीडियो सोशल मीडिया पर जारी न किया होता। इसके बाद ही कथित हत्या के आरोप में बंद व्यक्ति की रिहाई हो सकी।
घटना की छानबीन और पड़ताल पर सवाल
किसी आपराधिक मामले की जांच को लेकर हर स्तर पर पुष्टि और सावधानी के साथ मामले का विश्लेषण न किया जाए तो उसके नतीजों का अंदाजा लगाया जा सकता है। सवाल है कि घटना की छानबीन या पड़ताल के क्रम में क्या कोई ऐसा तरीका अपनाया गया या गवाहों के दावे की जांच में कोई कोताही बरती गई, जिसकी वजह से नाहक ही किसी को तीन वर्ष जेल में काटना पड़ा। ऐसा लगता है कि हत्या जैसे जघन्य अपराध के मामले में जांच के क्रम में जिस अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है, उसमें कहीं न कहीं लापरवाही बरती गई।
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इस घटना में एक प्रश्न अब भी अनुत्तरित है कि जो शव ट्रेन की पटरियों के पास पाया गया था, वह किसका था और उसकी मौत कैसे हुई थी। दरअसल, उत्तर प्रदेश में अपराध पर काबू पाने के दावे में कई बार जैसी हड़बड़ी देखी जा रही है, उसमें इस तरह की लापरवाही सामान्य लगती है। यह छिपा नहीं है कि एक ओर सरकार अपराध और अपराधियों को खत्म करने का दावा कर रही है, दूसरी ओर आपराधिक घटनाएं बेलगाम बढ़ती दिख रही हैं।