करीब एक महीने पहले जब अमेरिका ने आप्रवासन नीति में एक बड़ा बदलाव करते हुए एच1बी वीजा और उसके लिए शुल्क में भारी फेरबदल कर दिया था, तभी से जमीनी स्तर पर उसके असर और खुद अमेरिका को प्रकारांतर से उससे होने वाले नुकसानों को लेकर आशंकाएं जताई जाने लगी थीं। हालांकि तब भी यह उम्मीद की गई थी कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बीते कुछ समय से अमेरिका के हित के नाम पर जिस तरह के फैसले कर रहे हैं, उसमें संभव है कि एच1बी वीजा के संबंध में घोषित नए नियमों की जटिलता और उसके व्यापक असर को देखते हुए फिर किसी बदलाव की गुंजाइश बने।
जब एच1बी वीजा के लिए एक लाख डालर शुल्क लगाने की घोषणा हुई, तो उस पर खासा विवाद शुरू हो गया और इस फैसले के लिए दुनिया भर में ट्रंप की आलोचना होने लगी, तब इस फैसले में बदलाव करके कुछ राहत दी गई कि नया शुल्क नए आवेदकों के लिए होगा। यह वहां वर्षों या दशकों से रह रहे अन्य देशों के प्रवासियों लिए थोड़ी राहत की बात थी, लेकिन इसे लेकर कई आशंकाएं बनी रहीं कि आने वाले दिनों में इसका व्यवहार में कैसा असर पड़ेगा।
एक समस्या यह भी खड़ी हुई थी कि शुल्क की घोषणा तो कर दी गई, लेकिन उसमें किसी तरह की छूट आदि के बारे में स्पष्ट नहीं किया गया था। यही वजह थी कि इस नए नियम से प्रभावित होने वाले लोगों के बीच असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। अब ट्रंप प्रशासन ने इस संबंध में कुछ बिंदुओं को स्पष्ट किया है कि किन्हें यह शुल्क देना होगा, उसे चुकाने की प्रक्रिया क्या होगी और इसमें छूट के लिए आवेदन कैसे किए जा सकेंगे। अमेरिकी नागरिकता तथा आव्रजन सेवा यानी यूएससीआइएस की ओर जारी नए दिशानिर्देशों के तहत यह शुल्क सभी आवेदकों को नहीं देना होगा।
जिन आवेदकों ने अपनी स्थिति में बदलाव कराने या अमेरिका में प्रवास या अपनी वीजा अवधि बढ़वाने का आवेदन किया है, उन्हें भी यह अतिरिक्त शुल्क नहीं लगेगा। इस आदेश में एच1बी वीजा धारक के अमेरिका में आने-जाने पर प्रतिबंध नहीं है। इसका व्यवहार में असर इस रूप में सामने आएगा कि अगर कोई आवेदक किसी दूसरे वीजा, मसलन अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए एफ1वीजा, अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एल1वीजा पर अमेरिका में दाखिल होता है और वहीं रहते हुए एच1वीजा हासिल करता है, तो उसे नया अतिरिक्त शुल्क नहीं देना होगा।
इस नई घोषणा के बाद वहां एच1बी वीजा के दायरे में आने वाले एक बड़े वर्ग और खासतौर पर भारत से वहां गए लोगों के बीच काफी राहत महसूस की जा रही है। गौरतलब है कि इस वीजा के लिए सबसे ज्यादा भारत के ही लोग आवेदन करते हैं। पिछले वर्ष कुल स्वीकृत एच1बी वीजाधारकों में से सत्तर फीसद भारतीय मूल के कर्मचारी थे।
यों भी, भारत से अमेरिका जाने वाले पेशेवरों की संख्या अन्य देशों के लोगों के मुकाबले ज्यादा है। दरअसल, यह समूचा विवाद अमेरिका में अन्य देशों से पहुंचे पेशेवरों से जुड़ा मसला है, जो स्थानीयता और अमेरिकियों के बीच अवसरों के मुद्दे से जोड़ दिया गया है। मगर समय के साथ खुली अर्थव्यवस्था के एक ढांचे के रूप में विकसित होती दुनिया में अमेरिका को उदार रुख अपनाते हुए एक ठोस नीति तक पहुंचना चाहिए। सिर्फ बाहरी माने जाने वाले लोगों पर शिकंजा कस कर या उन्हें बाहर करने का अभियान चला कर वह अमेरिकियों का भला नहीं कर सकता।